Article 320 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-05 17:04:55
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 320
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 320
अनुच्छेद 320 भारतीय संविधान के भाग XIV (संघ और राज्यों के अधीन सेवाएँ) में आता है। यह लोक सेवा आयोगों के कार्य (Functions of Public Service Commissions) से संबंधित है। यह प्रावधान संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) और राज्य लोक सेवा आयोग (SPSC) के कार्यों को परिभाषित करता है, जिसमें सिविल सेवाओं की भर्ती, परीक्षा, और अनुशासनात्मक मामलों में उनकी भूमिका शामिल है।
"(1) संघ लोक सेवा आयोग और राज्य लोक सेवा आयोग का यह कर्तव्य होगा कि वे संघ और राज्यों के अधीन सेवाओं और पदों पर नियुक्तियों के लिए परीक्षाएँ आयोजित करें।
(2) आयोगों से निम्नलिखित मामलों में परामर्श लिया जाएगा:
(क) नियुक्तियों, पदोन्नति, और स्थानांतरण के लिए।
(ख) अनुशासनात्मक मामलों में।
(ग) सिविल सेवकों के दावों और पुनर्विचार याचिकाओं में।
(3) सरकार, आयोग की सिफारिशों से विचलन कर सकती है, लेकिन इसके कारणों को लिखित में दर्ज करना होगा।
(4) आयोग के कार्यों को विनियमित करने के लिए संसद या राज्य विधानमंडल कानून बना सकते हैं।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 320 का उद्देश्य UPSC और SPSC के कार्यों को परिभाषित करना है ताकि सिविल सेवाओं (जैसे, IAS, IPS, PCS) की भर्ती और अनुशासनात्मक प्रक्रियाएँ निष्पक्ष, पारदर्शी, और योग्यता आधारित हों। यह सुनिश्चित करता है कि आयोग स्वतंत्र रूप से कार्य करें और सरकार उनकी सिफारिशों का सम्मान करे। इसका लक्ष्य प्रशासनिक निष्पक्षता, स्वायत्तता, और संघीय ढांचे में केंद्र-राज्य संतुलन को बनाए रखना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 320 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। यह भारत सरकार अधिनियम, 1935 (धारा 266) से प्रेरित था, जिसमें पब्लिक सर्विस कमीशन के कार्यों को परिभाषित किया गया था। भारतीय संदर्भ: स्वतंत्रता के बाद, भारत को सिविल सेवाओं की भर्ती और प्रबंधन के लिए स्वतंत्र और निष्पक्ष प्रणाली की आवश्यकता थी। अनुच्छेद 320 ने UPSC और SPSC को यह जिम्मेदारी दी।
प्रासंगिकता: 2025 में, यह प्रावधान UPSC और SPSC के माध्यम से IAS, IPS, और PCS जैसी सेवाओं की भर्ती और डिजिटल प्रशासन जैसे नए क्षेत्रों में विशेषज्ञों की नियुक्ति के लिए महत्वपूर्ण है।
अनुच्छेद 320 के प्रमुख तत्व
खंड (1): भर्ती और परीक्षाएँ: UPSC और SPSC का कर्तव्य है कि वे संघ और राज्यों के अधीन सिविल सेवाओं और पदों के लिए परीक्षाएँ आयोजित करें। यह योग्यता आधारित भर्ती सुनिश्चित करता है। उदाहरण: UPSC द्वारा सिविल सेवा परीक्षा 2025। UPPSC द्वारा PCS भर्ती।
खंड (2): परामर्श: आयोगों से निम्नलिखित मामलों में परामर्श लिया जाएगा: नियुक्तियाँ, पदोन्नति, और स्थानांतरण: सिविल सेवकों के लिए। अनुशासनात्मक मामले: जैसे, बर्खास्तगी या दंड। दावे और याचिकाएँ: सिविल सेवकों के नुकसान या पुनर्विचार के दावे। उदाहरण: IAS अधिकारी की पदोन्नति पर UPSC से परामर्श।
खंड (3): सिफारिशों का पालन: सरकार को आयोग की सिफारिशों का पालन करना चाहिए, लेकिन यदि वह विचलन करती है, तो लिखित कारण दर्ज करने होंगे। यह पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करता है। उदाहरण: SPSC की सिफारिश को अस्वीकार करने पर राज्य सरकार द्वारा कारण।
खंड (4): नियम: संसद या राज्य विधानमंडल आयोगों के कार्यों को विनियमित करने के लिए कानून बना सकते हैं। यह कार्यप्रणाली में एकरूपता लाता है। उदाहरण: UPSC के लिए नियमों का कानून।
न्यायिक समीक्षा: आयोगों के निर्णय और सरकार के विचलन को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। कोर्ट यह सुनिश्चित करता है कि प्रक्रिया निष्पक्ष और संवैधानिक हो। उदाहरण: UPSC सिफारिश के उल्लंघन पर कोर्ट का निर्णय।
महत्व: निष्पक्ष भर्ती: योग्यता और पारदर्शिता आधारित चयन। स्वायत्तता: आयोगों की स्वतंत्रता। संघीय ढांचा: केंद्र और राज्यों के बीच संतुलन। न्यायिक समीक्षा: प्रक्रिया की वैधता पर निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: परीक्षाएँ: भर्ती के लिए। परामर्श: नियुक्ति और अनुशासन। विचलन: लिखित कारण। न्यायिक निगरानी: वैधता की जाँच।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950-1960 के दशक: UPSC द्वारा IAS/IPS भर्ती। 2000 के दशक: SPSC द्वारा अनुशासनात्मक कार्रवाई। 2025 स्थिति: डिजिटल प्रशासन और साइबर विशेषज्ञों की भर्ती।
चुनौतियाँ और विवाद: पेपर लीक: परीक्षा प्रक्रिया में अनियमितताएँ। केंद्र-राज्य विवाद: सिफारिशों पर असहमति। न्यायिक समीक्षा: प्रक्रिया की वैधता पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 315: लोक सेवा आयोग की स्थापना। अनुच्छेद 316: सदस्यों की नियुक्ति। अनुच्छेद 317: बर्खास्तगी और निलंबन। अनुच्छेद 318: नियम बनाने की शक्ति।
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jp Singh
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