Article 319 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-05 17:01:20
searchkre.com@gmail.com /
8392828781
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 319
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 319
अनुच्छेद 319 भारतीय संविधान के भाग XIV (संघ और राज्यों के अधीन सेवाएँ) में आता है। यह लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की बाद की नियुक्तियों पर अयोग्यता (Prohibition as to the holding of offices by members of Commission on ceasing to be such members) से संबंधित है। यह प्रावधान संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) और राज्य लोक सेवा आयोग (SPSC) के अध्यक्ष और सदस्यों के कार्यकाल समाप्त होने के बाद कुछ पदों पर नियुक्ति पर प्रतिबंध लगाता है ताकि उनकी स्वतंत्रता और निष्पक्षता बनी रहे।
"लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या सदस्य, अपने कार्यकाल की समाप्ति के बाद, निम्नलिखित को छोड़कर, भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन किसी अन्य पद पर नियुक्ति के लिए पात्र नहीं होंगे:
(क) UPSC का सदस्य, यदि वह पहले SPSC का अध्यक्ष था।
(ख) UPSC का अध्यक्ष, यदि वह पहले UPSC या SPSC का सदस्य था।
(ग) SPSC का अध्यक्ष या सदस्य, यदि वह पहले किसी अन्य SPSC का अध्यक्ष या सदस्य था।
(घ) यदि राष्ट्रपति विशेष रूप से अनुमति दे, तो कोई अन्य पद।"
द्देश्य: अनुच्छेद 319 का उद्देश्य UPSC और SPSC के अध्यक्ष और सदस्यों की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को बनाए रखने के लिए उनके कार्यकाल समाप्त होने के बाद सरकारी पदों पर नियुक्ति पर प्रतिबंध लगाना है। यह सुनिश्चित करता है कि आयोग के सदस्य अपने कार्यकाल के दौरान स्वतंत्र रहें और सरकार से पक्षपात या प्रभाव से बचें। इसका लक्ष्य प्रशासनिक निष्पक्षता, स्वायत्तता, और संघीय ढांचे में केंद्र-राज्य संतुलन को सुनिश्चित करना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 319 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। यह भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित था, जिसमें पब्लिक सर्विस कमीशन के सदस्यों की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए समान प्रावधान थे।
भारतीय संदर्भ: स्वतंत्रता के बाद, लोक सेवा आयोगों को राजनीतिक प्रभाव से मुक्त रखने की आवश्यकता थी। अनुच्छेद 319 ने बाद की नियुक्तियों पर प्रतिबंध लगाकर उनकी स्वायत्तता को मजबूत किया।
प्रासंगिकता: 2025 में, यह प्रावधान UPSC और SPSC की स्वतंत्रता को बनाए रखने और सिविल सेवा भर्ती (जैसे, IAS, IPS, PCS) में निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
अनुच्छेद 319 के प्रमुख तत्व
नियुक्ति पर प्रतिबंध: UPSC या SPSC के अध्यक्ष या सदस्य, कार्यकाल समाप्त होने के बाद, भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन किसी अन्य लाभकारी पद पर नियुक्ति के लिए सामान्य रूप से पात्र नहीं होंगे। यह प्रतिबंध उनकी स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है। उदाहरण: UPSC के पूर्व अध्यक्ष को मंत्रालय में सचिव पद पर नियुक्ति नहीं।
पवाद: निम्नलिखित मामलों में नियुक्ति की अनुमति है: UPSC सदस्य: यदि वह पहले SPSC का अध्यक्ष था। UPSC अध्यक्ष: यदि वह पहले UPSC या SPSC का सदस्य था। SPSC अध्यक्ष/सदस्य: यदि वह पहले किसी अन्य SPSC का अध्यक्ष/सदस्य था। राष्ट्रपति की अनुमति: विशेष मामलों में राष्ट्रपति द्वारा अनुमति। उदाहरण: SPSC अध्यक्ष का UPSC सदस्य के रूप में नियुक्त होना।
राष्ट्रपति की शक्ति: राष्ट्रपति विशेष मामलों में अन्य पदों पर नियुक्ति की अनुमति दे सकते हैं। यह लचीलापन असाधारण परिस्थितियों के लिए है। उदाहरण: विशेषज्ञता के आधार पर विशेष अनुमति।
न्यायिक समीक्षा: नियुक्ति या प्रतिबंध से संबंधित निर्णयों को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। कोर्ट यह सुनिश्चित करता है कि प्रक्रिया संवैधानिक और निष्पक्ष हो। उदाहरण: अनुचित नियुक्ति को कोर्ट द्वारा रद्द करना।
महत्व: स्वायत्तता: लोक सेवा आयोगों की स्वतंत्रता और निष्पक्षता। निष्पक्ष भर्ती: भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता। संघीय ढांचा: केंद्र और राज्यों के बीच संतुलन। न्यायिक समीक्षा: नियुक्तियों की वैधता पर निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: प्रतिबंध: बाद की सरकारी नियुक्तियाँ। अपवाद: विशिष्ट आयोग पद। राष्ट्रपति: विशेष अनुमति। न्यायिक निगरानी: वैधता की जाँच।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950-1960 के दशक: UPSC/SPSC की स्वतंत्रता स्थापित। 2000 के दशक: SPSC सदस्यों की नियुक्ति पर विवाद। 2025 स्थिति: डिजिटल भर्ती में स्वतंत्रता की आवश्यकता।
चुनौतियाँ और विवाद: राजनीतिक प्रभाव: अपवादों में कथित हस्तक्षेप। न्यायिक समीक्षा: नियुक्तियों की वैधता पर कोर्ट की जाँच। सुधार की माँग: आयोगों की स्वतंत्रता को मजबूत करना।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 315: लोक सेवा आयोग की स्थापना। अनुच्छेद 316: सदस्यों की नियुक्ति। अनुच्छेद 317: बर्खास्तगी और निलंबन। अनुच्छेद 318: नियम बनाने की शक्ति।
Conclusion
Thanks For Read
jp Singh
searchkre.com@gmail.com
8392828781