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Article 317 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-05 16:50:57
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 317

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 317
अनुच्छेद 317 भारतीय संविधान के भाग XIV (संघ और राज्यों के अधीन सेवाएँ) में आता है। यह लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की बर्खास्तगी और निलंबन (Removal and suspension of a member of a Public Service Commission) से संबंधित है। यह प्रावधान संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) और राज्य लोक सेवा आयोग (SPSC) के अध्यक्ष और सदस्यों को हटाने या निलंबित करने की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है ताकि उनकी स्वतंत्रता और निष्पक्षता बनी रहे।
"(1) संघ लोक सेवा आयोग या राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या किसी अन्य सदस्य को केवल निम्नलिखित आधारों पर राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है:
(क) यदि वह दिवालिया घोषित हो;
(ख) यदि वह अपने कार्यकाल के दौरान किसी लाभकारी पद पर नियुक्त हो या कोई बाहरी रोजगार करे;
(ग) यदि वह दुराचार (misbehaviour) के कारण उच्चतम न्यायालय की जाँच के बाद दोषी पाया जाए।
(2) राष्ट्रपति, उच्चतम न्यायालय को जाँच के लिए संदर्भित कर सकते हैं, और उच्चतम न्यायालय की सलाह पर बर्खास्तगी का आदेश दे सकते हैं।
(3) राष्ट्रपति, जाँच के दौरान, सदस्य को निलंबित कर सकते हैं।
(4) संयुक्त लोक सेवा आयोग के मामले में, राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित प्रक्रिया लागू होगी।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 317 का उद्देश्य UPSC और SPSC के अध्यक्ष और सदस्यों को हटाने या निलंबित करने की प्रक्रिया को कड़ाई से नियंत्रित करना है ताकि उनकी स्वतंत्रता और निष्पक्षता बनी रहे। यह सुनिश्चित करता है कि आयोग के सदस्यों को केवल गंभीर आधारों (जैसे, दुराचार, दिवालियापन) पर ही हटाया जाए, और वह भी उच्चतम न्यायालय की जाँच के बाद। इसका लक्ष्य प्रशासनिक स्वायत्तता, निष्पक्ष भर्ती प्रक्रिया, और संघीय ढांचे में केंद्र-राज्य संतुलन को बनाए रखना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 317 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। यह भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित था, जिसमें पब्लिक सर्विस कमीशन के सदस्यों की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए समान प्रावधान थे। भारतीय संदर्भ: स्वतंत्रता के बाद, लोक सेवा आयोगों को राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त रखने की आवश्यकता थी। अनुच्छेद 317 ने बर्खास्तगी की कठोर प्रक्रिया के माध्यम से उनकी स्वायत्तता को संरक्षित किया।
प्रासंगिकता: 2025 में, यह प्रावधान UPSC और SPSC की स्वतंत्रता को बनाए रखने और सिविल सेवा भर्ती (जैसे, IAS, IPS, PCS) में निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
अनुच्छेद 317 के प्रमुख तत्व: खंड (1): बर्खास्तगी के आधार: UPSC या SPSC के अध्यक्ष या सदस्य को केवल निम्नलिखित आधारों पर राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है: दिवालियापन: यदि व्यक्ति को अदालत द्वारा दिवालिया घोषित किया जाए।
लाभकारी रोजगार: यदि वह अपने कार्यकाल के दौरान कोई बाहरी रोजगार या लाभकारी पद स्वीकार करता हो।
दुराचार: यदि वह उच्चतम न्यायालय की जाँच में दुराचार का दोषी पाया जाए। उदाहरण: UPSC सदस्य का निजी कंपनी में रोजगार स्वीकार करना।
खंड (2): उच्चतम न्यायालय की जाँच: दुराचार के मामले में, राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय को जाँच के लिए संदर्भित करते हैं। उच्चतम न्यायालय की सलाह के आधार पर ही बर्खास्तगी का आदेश दिया जा सकता है। यह आयोग की स्वतंत्रता को मजबूत करता है। उदाहरण: दुराचार के आरोप पर उच्चतम न्यायालय द्वारा जाँच।
खंड (3): निलंबन: जाँच के दौरान, राष्ट्रपति संबंधित सदस्य को निलंबित कर सकते हैं। यह जाँच की निष्पक्षता सुनिश्चित करता है। उदाहरण: SPSC सदस्य का जाँच के दौरान निलंबन।
खंड (4): संयुक्त आयोग: संयुक्त लोक सेवा आयोग के लिए बर्खास्तगी की प्रक्रिया राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित की जाती है। उदाहरण: पूर्वोत्तर राज्यों के संयुक्त आयोग में बर्खास्तगी।
न्यायिक समीक्षा: बर्खास्तगी या निलंबन के निर्णय को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। कोर्ट यह सुनिश्चित करता है कि प्रक्रिया संवैधानिक और निष्पक्ष हो। उदाहरण: अनुचित बर्खास्तगी को कोर्ट द्वारा रद्द करना।
महत्व: स्वतंत्रता: लोक सेवा आयोगों की स्वायत्तता और राजनीतिक हस्तक्षेप से सुरक्षा। निष्पक्षता: भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता। संघीय ढांचा: केंद्र और राज्यों के बीच संतुलन। न्यायिक समीक्षा: बर्खास्तगी की वैधता पर निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: बर्खास्तगी: कठोर आधार और प्रक्रिया। उच्चतम न्यायालय: दुराचार की जाँच। निलंबन: जाँच के दौरान। न्यायिक निगरानी: प्रक्रिया की वैधता।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950-1960 के दशक: UPSC/SPSC की स्वतंत्रता स्थापित। 2000 के दशक: SPSC सदस्यों पर दुराचार के आरोप। 2025 स्थिति: भर्ती में पारदर्शिता के लिए स्वतंत्रता।
चुनौतियाँ और विवाद: राजनीतिक दबाव: बर्खास्तगी में कथित हस्तक्षेप। जाँच में देरी: उच्चतम न्यायालय की प्रक्रिया में समय। न्यायिक समीक्षा: बर्खास्तगी की वैधता पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 315: लोक सेवा आयोग की स्थापना। अनुच्छेद 316: सदस्यों की नियुक्ति। अनुच्छेद 318: नियम बनाने की शक्ति। अनुच्छेद 319: सदस्यों की अयोग्य
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