Article 313 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-05 16:25:19
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 313
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 313
अनुच्छेद 313 भारतीय संविधान के भाग XIV (संघ और राज्यों के अधीन सेवाएँ) में आता है। यह संविधान लागू होने से पहले के कुछ कानूनों की निरंतरता (Transitional provisions) से संबंधित है। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि संविधान लागू होने (26 जनवरी 1950) से पहले के सिविल सेवाओं से संबंधित कानून और नियम तब तक प्रभावी रहें, जब तक कि उन्हें संशोधित या निरस्त न किया जाए।
"जब तक इस संविधान के अधीन अन्यथा उपबंध न किया जाए, इस संविधान के प्रारंभ के समय विद्यमान और संघ या किसी राज्य के अधीन सिविल सेवाओं से संबंधित सभी कानून तब तक प्रभावी रहेंगे, जब तक कि सक्षम विधानमंडल या अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा उन्हें संशोधित, परिवर्तित, या निरस्त न किया जाए।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 313 का उद्देश्य संविधान लागू होने (26 जनवरी 1950) से पहले के सिविल सेवाओं से संबंधित कानूनों और नियमों को निरंतरता प्रदान करना है। यह सुनिश्चित करता है कि स्वतंत्रता के बाद प्रशासनिक व्यवस्था में कोई रिक्तता न हो और पुराने नियम तब तक लागू रहें, जब तक नए नियम या कानून न बनाए जाएँ। इसका लक्ष्य观ी प्रशासनिक स्थिरता, सेवा नियमों की निरंतरता, और संघीय ढांचे में केंद्र-राज्य संतुलन को बनाए रखना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 313 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ।
यह भारत सरकार अधिनियम, 1935 और अन्य औपनिवेशिक कानूनों से प्रेरित था, जो सिविल सेवाओं को नियंत्रित करते थे। भारतीय संदर्भ: स्वतंत्रता के बाद, भारत को औपनिवेशिक काल के नियमों (जैसे, भारतीय सिविल सेवा नियम) को बनाए रखने की आवश्यकता थी ताकि प्रशासनिक व्यवस्था सुचारू रहे। अनुच्छेद 313 ने इस निरंतरता को संवैधानिक आधार दिया। प्रासंगिकता: 2025 में, यह प्रावधान ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह पुराने नियमों को बनाए रखने में मदद करता है, हालांकि अब अधिकांश नियम नए कानूनों (जैसे, अखिल भारतीय सेवा अधिनियम, 1951) द्वारा प्रतिस्थापित हो चुके हैं।
अनुच्छेद 313 के प्रमुख तत्व: मौजूदा कानूनों की निरंतरता: 26 जनवरी 1950 को लागू सिविल सेवा संबंधी कानून और नियम तब तक प्रभावी रहते हैं, जब तक उन्हें संसद, राज्य विधानमंडल, या अन्य सक्षम प्राधिकारी (जैसे, राष्ट्रपति या राज्यपाल) द्वारा संशोधित या निरस्त न किया जाए। यह भारतीय सिविल सेवा (ICS) और अन्य औपनिवेशिक नियमों को शामिल करता है। उदाहरण: ICS नियम, जो IAS में परिवर्तित हुए।
संशोधन या निरस्तीकरण: संसद या राज्य विधानमंडल नए कानून बना सकते हैं, और राष्ट्रपति या राज्यपाल नए नियम बना सकते हैं, जो पुराने नियमों को बदल दें। यह अनुच्छेद 309 (भर्ती और सेवा शर्तों के नियम) के साथ मिलकर काम करता है। उदाहरण: 1951 में अखिल भारतीय सेवा नियम।
न्यायिक समीक्षा: पुराने नियमों की वैधता और उनके संशोधन को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। कोर्ट यह सुनिश्चित करता है कि नियम संवैधानिक हों। उदाहरण: पुराने नियमों के उल्लंघन पर कोर्ट का निर्णय।
महत्व: प्रशासनिक निरंतरता: स्वतंत्रता के बाद प्रशासनिक व्यवस्था में रिक्तता से बचाव। संघीय ढांचा: केंद्र और राज्यों के बीच संतुलन। सेवा नियम: सिविल सेवाओं की स्थिरता। न्यायिक समीक्षा: नियमों की वैधता पर निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: निरंतरता: पुराने कानून प्रभावी। संशोधन: संसद/प्राधिकारी की शक्ति। कानूनी ढांचा: सिविल सेवा नियम। न्यायिक निगरानी: वैधता की जाँच।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950-1960 के दशक: ICS से IAS और IPS में परिवर्तन। 2000 के दशक: नए नियमों द्वारा पुराने नियमों का प्रतिस्थापन। 2025 स्थिति: डिजिटल प्रशासन के लिए नए नियम।
चुनौतियाँ और विवाद: संशोधन में देरी: पुराने नियमों को अपडेट करने में समय। केंद्र-राज्य विवाद: नियमों की व्याख्या पर असहमति। न्यायिक समीक्षा: नियमों की वैधता पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 308: "राज्य" की परिभाषा। अनुच्छेद 309: भर्ती और सेवा शर्तें। अनुच्छेद 310: सेवा की अवधि। अनुच्छेद 311: बर्खास्तगी पर सुरक्षा।
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jp Singh
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