Article 312 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-05 16:23:53
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 312
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 312
अनुच्छेद 312 भारतीय संविधान के भाग XIV (संघ और राज्यों के अधीन सेवाएँ) में आता है। यह अखिल भारतीय सेवाओं (All India Services) से संबंधित है। यह प्रावधान संसद को अखिल भारतीय सेवाएँ (जैसे, IAS, IPS, IFS) बनाने और उनके लिए नियम बनाने की शक्ति देता है, साथ ही यह सुनिश्चित करता है कि इन सेवाओं की स्थापना के लिए राज्यसभा की सहमति आवश्यक हो।
"(1) इस संविधान में अन्यथा उपबंधित के सिवाय, यदि राज्यसभा ने अपने कुल सदस्यों के दो-तिहाई या अधिक के बहुमत से यह संकल्प पारित किया हो कि राष्ट्रीय हित में अखिल भारतीय सेवाएँ बनाना आवश्यक है, तो संसद, कानून द्वारा, ऐसी सेवाओं के सृजन और उनके लिए नियम बनाने की शक्ति रखेगी।
(2) इस संविधान के प्रारंभ के समय विद्यमान भारतीय प्रशासनिक सेवा और भारतीय पुलिस सेवा को अखिल भारतीय सेवाएँ माना जाएगा।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 312 का उद्देश्य संसद को अखिल भारतीय सेवाएँ (All India Services) बनाने और उनके लिए नियम बनाने की शक्ति देना है, जो केंद्र और राज्यों दोनों के अधीन कार्य करती हैं। यह सुनिश्चित करता है कि ऐसी सेवाएँ राष्ट्रीय हित में हों और उनकी स्थापना में राज्यसभा की सहमति हो, ताकि संघीय ढांचे में राज्यों की भूमिका बनी रहे। इसका लक्ष्य प्रशासनिक एकरूपता, राष्ट्रीय एकता, और संघीय ढांचे में केंद्र-राज्य संतुलन को बढ़ावा देना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 312 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। यह भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित था, जिसमें भारतीय सिविल सेवा (ICS) और भारतीय पुलिस सेवा जैसी सेवाएँ थीं। भारतीय संदर्भ: स्वतंत्रता के बाद, भारत को केंद्र और राज्यों के बीच प्रशासनिक एकता के लिए अखिल भारतीय सेवाओं की आवश्यकता थी। अनुच्छेद 312 ने IAS और IPS को संवैधानिक आधार दिया और नई सेवाएँ बनाने की शक्ति प्रदान की।
प्रासंगिकता: 2025 में, यह प्रावधान IAS, IPS, और IFS जैसी सेवाओं के लिए महत्वपूर्ण है, साथ ही डिजिटल प्रशासन और साइबर सुरक्षा जैसे नए क्षेत्रों में नई सेवाएँ बनाने की संभावना के लिए भी।
अनुच्छेद 312 के प्रमुख तत्व: खंड (1): अखिल भारतीय सेवाओं का सृजन: संसद को कानून द्वारा अखिल भारतीय सेवाएँ बनाने और उनके लिए नियम बनाने की शक्ति है। यह तब संभव है, जब राज्यसभा अपने कुल सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से संकल्प पारित करे कि ऐसी सेवाएँ राष्ट्रीय हित में आवश्यक हैं। उदाहरण: भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) और भारतीय पुलिस सेवा (IPS)।
खंड (2): मौजूदा सेवाएँ: संविधान लागू होने के समय (26 जनवरी 1950) विद्यमान भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) और भारतीय पुलिस सेवा (IPS) को अखिल भारतीय सेवाएँ माना जाता है। बाद में, भारतीय वन सेवा (IFS) को 1966 में अखिल भारतीय सेवा के रूप में जोड़ा गया। उदाहरण: 2025 में, IAS और IPS केंद्र और राज्यों में प्रशासन की रीढ़ हैं।
राज्यसभा की भूमिका: राज्यसभा की सहमति (दो-तिहाई बहुमत) यह सुनिश्चित करती है कि राज्यों की आवाज नई सेवाओं के सृजन में शामिल हो। यह संघीय ढांचे को मजबूत करता है। उदाहरण: नई सेवा (जैसे, साइबर सुरक्षा सेवा) के लिए राज्यसभा का संकल्प।
न्यायिक समीक्षा: अखिल भारतीय सेवाओं के नियमों और उनके सृजन की वैधता को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। कोर्ट यह सुनिश्चित करता है कि नियम संवैधानिक हों। उदाहरण: IAS नियमों की वैधता पर कोर्ट का निर्णय।
महत्व: प्रशासनिक एकता: केंद्र और राज्यों में एकरूप प्रशासन। राष्ट्रीय हित: अखिल भारतीय सेवाएँ राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देती हैं। संघीय ढांचा: राज्यसभा की सहमति से केंद्र-राज्य संतुलन। न्यायिक समीक्षा: नियमों और सृजन की वैधता पर निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: सृजन: अखिल भारतीय सेवाएँ। राज्यसभा: दो-तिहाई बहुमत। कानूनी ढांचा: संसद का कानून। न्यायिक निगरानी: नियमों की वैधता।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950-1960 के दशक: IAS और IPS की स्थापना और नियम। 1966: भारतीय वन सेवा (IFS) का सृजन। 2025 स्थिति: साइबर सुरक्षा और डिजिटल प्रशासन के लिए नई सेवा की माँग।
चुनौतियाँ और विवाद: केंद्र-राज्य विवाद: IAS/IPS अधिकारियों की नियुक्ति और स्थानांतरण पर असहमति। न्यायिक समीक्षा: नियमों की वैधता पर कोर्ट की जाँच। सुधार की माँग: नई सेवाओं का सृजन और आधुनिकीकरण।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 308: "राज्य" की परिभाषा। अनुच्छेद 309: भर्ती और सेवा शर्तें। अनुच्छेद 310: सेवा की अवधि। अनुच्छेद 311: बर्खास्तगी पर सुरक्षा।
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