Article 309 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-05 15:35:51
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 309
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 309
अनुच्छेद 309 भारतीय संविधान के भाग XIV (संघ और राज्यों के अधीन सेवाएँ) में आता है। यह संघ और राज्यों के अधीन सेवाओं की भर्ती और सेवा शर्तें (Recruitment and conditions of service of persons serving the Union or a State) से संबंधित है। यह प्रावधान केंद्र और राज्य सरकारों को सिविल सेवाओं की भर्ती और सेवा शर्तों के लिए नियम बनाने की शक्ति देता है।
परंतु यह राष्ट्रपति या, जैसा कि मामला हो, किसी राज्य के राज्यपाल के लिए विधिपूर्ण होगा कि वह संघ या राज्य के अधीन सेवा करने वाले व्यक्तियों की भर्ती और सेवा शर्तों को विनियमित करने के लिए नियम बनाएँ, जब तक कि संसद या राज्य विधानमंडल द्वारा इस संबंध में कोई अधिनियम न बनाया जाए।
उद्देश्य: अनुच्छेद 309 का उद्देश्य केंद्र और राज्य सरकारों को सिविल सेवाओं (जैसे, IAS, IPS, राज्य सिविल सेवाएँ) की भर्ती और सेवा शर्तों (वेतन, पदोन्नति, बर्खास्तगी आदि) के लिए नियम बनाने की शक्ति प्रदान करना है। यह शक्ति संसद या राज्य विधानमंडल द्वारा कानून के माध्यम से या राष्ट्रपति और राज्यपाल द्वारा नियमों के माध्यम से प्रयोग की जा सकती है। इसका लक्ष्य प्रशासनिक दक्षता, सेवा नियमों में एकरूपता, और संघीय ढांचे में केंद्र-राज्य संतुलन सुनिश्चित करना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 309 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ।
यह भारत सरकार अधिनियम, 1935 (धारा 241) से प्रेरित था, जिसमें सिविल सेवाओं के लिए नियम बनाने की व्यवस्था थी।
भारतीय संदर्भ: स्वतंत्रता के बाद, भारत को एक सुव्यवस्थित सिविल सेवा ढांचे की आवश्यकता थी ताकि प्रशासन प्रभावी हो। अनुच्छेद 309 ने केंद्र और राज्यों को यह शक्ति दी।
प्रासंगिकता: 2025 में, यह प्रावधान सिविल सेवाओं (IAS, IPS, IFS) और डिजिटल प्रशासन में भर्ती और सेवा शर्तों के लिए महत्वपूर्ण है।
अनुच्छेद 309 के प्रमुख तत्व: संसद और विधानमंडल की शक्ति: संसद केंद्र सरकार की सिविल सेवाओं (जैसे, अखिल भारतीय सेवाएँ) के लिए भर्ती और सेवा शर्तों को नियंत्रित करने वाले कानून बना सकती है। राज्य विधानमंडल अपने राज्य की सिविल सेवाओं के लिए समान कानून बना सकता है। उदाहरण: अखिल भारतीय सेवा अधिनियम, 1951।
राष्ट्रपति और राज्यपाल की शक्ति: जब तक संसद या राज्य विधानमंडल द्वारा कोई कानून न बनाया जाए, राष्ट्रपति (केंद्र के लिए) और राज्यपाल (राज्य के लिए) नियम बना सकते हैं। ये नियम भर्ती, वेतन, पदोन्नति, अनुशासन आदि को नियंत्रित करते हैं। उदाहरण: 2025 में, IAS भर्ती नियम राष्ट्रपति द्वारा।
संविधान के अधीन: ये नियम और कानून संविधान के अन्य प्रावधानों, जैसे अनुच्छेद 14 (समानता), अनुच्छेद 16 (नियुक्ति में समान अवसर), और अनुच्छेद 311 (सिविल सेवकों की बर्खास्तगी पर सुरक्षा) के अधीन हैं। उदाहरण: नियमों की संवैधानिकता पर कोर्ट की जाँच।
न्यायिक समीक्षा: भर्ती और सेवा शर्तों के नियमों की वैधता को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। कोर्ट यह सुनिश्चित करता है कि नियम संवैधानिक और निष्पक्ष हों। उदाहरण: भर्ती में भेदभाव के खिलाफ याचिका।
महत्व: प्रशासनिक दक्षता: सिविल सेवाओं का सुचारू संचालन। एकरूपता: भर्ती और सेवा शर्तों में मानकीकरण। संघीय ढांचा: केंद्र और राज्यों के बीच संतुलन। न्यायिक समीक्षा: नियमों की वैधता पर निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: भर्ती और सेवा शर्तें: संसद/विधानमंडल द्वारा कानून। नियम: राष्ट्रपति/राज्यपाल द्वारा। संवैधानिकता: अन्य प्रावधानों के अधीन। न्यायिक निगरानी: नियमों की वैधता।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950-1960 के दशक: अखिल भारतीय सेवाओं के लिए नियम। 2000 के दशक: राज्य सिविल सेवाओं के लिए नियम। 2025 स्थिति: डिजिटल प्रशासन और साइबर सुरक्षा के लिए विशेष भर्ती।
चुनौतियाँ और विवाद: केंद्र-राज्य विवाद: नियमों की स्वायत्तता पर असहमति। न्यायिक समीक्षा: भर्ती और सेवा शर्तों की वैधता। सुधार की माँग: सिविल सेवा नियमों का आधुनिकीकरण।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 308:
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jp Singh
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