Article 308 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-05 15:34:08
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 308
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 308
अनुच्छेद 308 भारतीय संविधान के भाग XIV (संघ और राज्यों के अधीन सेवाएँ) में आता है। यह इस भाग में प्रयुक्त शब्दों की परिभाषा (Interpretation) से संबंधित है। यह प्रावधान भाग XIV (अनुच्छेद 308 से 323) में उपयोग किए गए शब्दों, जैसे "राज्य", को परिभाषित करता है ताकि इस भाग के प्रावधानों को स्पष्ट रूप से समझा जा सके।
"इस भाग में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, 'राज्य' में केंद्रशासित प्रदेश शामिल नहीं है।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 308 का उद्देश्य भाग XIV (संघ और राज्यों के अधीन सेवाएँ) में उपयोग किए गए शब्द "राज्य" की परिभाषा को स्पष्ट करना है। यह सुनिश्चित करता है कि इस भाग के प्रावधान (जैसे, सिविल सेवाएँ, भर्ती, सेवा शर्तें) केवल संघ और राज्यों पर लागू हों, न कि केंद्रशासित प्रदेशों पर, जब तक कि संदर्भ में अन्यथा न हो। इसका लक्ष्य प्रशासनिक स्पष्टता, संघीय ढांचे में एकरूपता, और सेवा नियमों की व्याख्या को सरल बनाना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 308 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। यह भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित था, जिसमें सिविल सेवाओं के लिए समान परिभाषाएँ थीं। भारतीय संदर्भ: स्वतंत्रता के बाद, भारत में केंद्र और राज्यों के लिए सिविल सेवाओं का एक ढांचा स्थापित करने की आवश्यकता थी। अनुच्छेद 308 ने इस ढांचे को स्पष्ट किया। प्रासंगिकता: 2025 में, यह प्रावधान संघ और राज्यों की सिविल सेवाओं (जैसे, IAS, IPS, और राज्य सिविल सेवाएँ) के लिए नियमों और भर्ती प्रक्रियाओं को समझने में महत्वपूर्ण है।
अनुच्छेद 308 के प्रमुख तत्व: "राज्य" की परिभाषा: इस भाग में, "राज्य" का अर्थ केवल संविधान के तहत परिभाषित राज्य (सातवीं अनुसूची में उल्लिखित) है और इसमें केंद्रशासित प्रदेश शामिल नहीं हैं। यह केंद्रशासित प्रदेशों को भाग XIV के प्रावधानों (जैसे, सेवा शर्तें, लोक सेवा आयोग) से बाहर रखता है, जब तक कि संदर्भ में स्पष्ट रूप से शामिल न किया जाए। उदाहरण: 2025 में, उत्तर प्रदेश की सिविल सेवाएँ अनुच्छेद 308 के दायरे में हैं, लेकिन दिल्ली (केंद्रशासित प्रदेश) की सेवाएँ नहीं।
संदर्भ आधारित व्याख्या: यदि संदर्भ में केंद्रशासित प्रदेशों को शामिल करने की आवश्यकता हो, तो "राज्य" की परिभाषा में बदलाव हो सकता है। यह लचीलापन प्रशासनिक आवश्यकताओं को पूरा करता है। उदाहरण: विशेष कानून द्वारा दिल्ली की सेवाओं को शामिल करना।
न्यायिक समीक्षा: "राज्य" की परिभाषा और इसके दायरे की व्याख्या को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। कोर्ट यह सुनिश्चित करता है कि प्रावधान संवैधानिक ढांचे के अनुरूप हों। उदाहरण: सेवा नियमों की व्याख्या पर कोर्ट का निर्णय।
महत्व: प्रशासनिक स्पष्टता: सिविल सेवाओं के लिए परिभाषा का एकरूपता। संघीय ढांचा: केंद्र और राज्यों के बीच स्पष्ट विभाजन। सेवा नियम: भर्ती और सेवा शर्तों का प्रबंधन। न्यायिक समीक्षा: परिभाषा और नियमों की वैधता पर निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: परिभाषा: "राज्य" में केंद्रशासित प्रदेश नहीं। लचीलापन: संदर्भ आधारित व्याख्या। कानूनी ढांचा: भाग XIV का आधार। न्यायिक निगरानी: व्याख्या की वैधता।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950-1960 के दशक: IAS और IPS जैसी सेवाओं के लिए नियम। 2000 के दशक: राज्य लोक सेवा आयोगों की स्थापना। 2025 स्थिति: सिविल सेवाओं और डिजिटल प्रशासन में नियम।
चुनौतियाँ और विवाद: केंद्र-राज्य विवाद: केंद्रशासित प्रदेशों के लिए नियमों की व्याख्या। न्यायिक समीक्षा: परिभाषा की वैधता पर कोर्ट की जाँच। प्रशासनिक जटिलता: केंद्रशासित प्रदेशों में सेवा नियम।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 309: सेवा नियमों का निर्माण। अनुच्छेद 310: सेवा की अवधि। अनुच्छेद 311: सिविल सेवकों की बर्खास्तगी पर सुरक्षा। अनुच्छेद 312: अखिल भारतीय सेवाएँ।
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