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Article 307 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-05 15:32:07
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 307

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 307
अनुच्छेद 307 भारतीय संविधान के भाग XIII (भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर व्यापार, वाणिज्य और समागम) में आता है। यह वाणिज्य आयोग की नियुक्ति (Appointment of authority for carrying out the purposes of Articles 301 to 304) से संबंधित है। यह प्रावधान संसद को एक प्राधिकरण (वाणिज्य आयोग) की स्थापना करने की शक्ति देता है, जो अनुच्छेद 301 से 304 के उद्देश्यों को लागू करने के लिए जिम्मेदार हो।
"संसद, कानून द्वारा, अनुच्छेद 301 से 304 के उपबंधों के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए एक प्राधिकरण की नियुक्ति कर सकती है और उसे ऐसी शक्तियाँ और कर्तव्य प्रदान कर सकती है, जो वह आवश्यक समझे।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 307 का उद्देश्य संसद को एक वाणिज्य आयोग या प्राधिकरण स्थापित करने की शक्ति देना है, जो भारत के भीतर व्यापार, वाणिज्य, और समागम से संबंधित प्रावधानों (अनुच्छेद 301-304) को लागू करे। यह प्राधिकरण व्यापार की स्वतंत्रता, भेदभाव पर रोक, और उचित प्रतिबंधों के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करता है। इसका लक्ष्य आर्थिक एकता, निष्पक्ष व्यापार, और संघीय ढांचे में केंद्र-राज्य संतुलन को बढ़ावा देना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 307 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ।
यह ऑस्ट्रेलियाई संविधान से प्रेरित था, जिसमें अंतर-राज्य व्यापार के लिए एक समान प्राधिकरण (Inter-State Commission) की व्यवस्था थी।
भारतीय संदर्भ: स्वतंत्रता के बाद, भारत में अंतर-राज्य व्यापार और वाणिज्य को नियंत्रित करने के लिए एक केंद्रीकृत प्राधिकरण की आवश्यकता थी। अनुच्छेद 307 ने संसद को यह शक्ति दी।
प्रासंगिकता: 2025 में, यह प्रावधान GST परिषद, डिजिटल व्यापार नियमन, और अंतर-राज्य व्यापार नीतियों के लिए प्रासंगिक है, हालांकि वर्तमान में कोई विशेष वाणिज्य आयोग स्थापित नहीं है।
अनुच्छेद 307 के प्रमुख तत्व: प्राधिकरण की नियुक्ति: संसद कानून बनाकर एक प्राधिकरण (वाणिज्य आयोग) स्थापित कर सकती है। इस प्राधिकरण को अनुच्छेद 301 (व्यापार की स्वतंत्रता), 302 (संसद द्वारा प्रतिबंध), 303 (भेदभाव पर रोक), और 304 (राज्यों द्वारा प्रतिबंध) के उद्देश्यों को लागू करने की जिम्मेदारी दी जा सकती है। उदाहरण: सैद्धांतिक रूप से, संसद GST या डिजिटल व्यापार के लिए एक नियामक प्राधिकरण बना सकती है।
शक्तियाँ और कर्तव्य: संसद प्राधिकरण को ऐसी शक्तियाँ और कर्तव्य प्रदान कर सकती है, जो वह आवश्यक समझे। यह प्राधिकरण व्यापारिक विवादों, प्रतिबंधों की निगरानी, और आर्थिक नीतियों के कार्यान्वयन में सहायक हो सकता है। उदाहरण: अंतर-राज्य व्यापार विवादों का समाधान।
न्यायिक समीक्षा: प्राधिकरण के कार्यों और निर्णयों की वैधता को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। कोर्ट यह सुनिश्चित करता है कि प्राधिकरण संवैधानिक सीमाओं के भीतर कार्य करे। उदाहरण: प्राधिकरण के निर्णय की संवैधानिकता की जाँच।
महत्व: आर्थिक एकता: राष्ट्रीय बाजार और व्यापार की स्वतंत्रता। नियामक ढांचा: व्यापार नीतियों का कार्यान्वयन। संघीय ढांचा: केंद्र और राज्यों के बीच संतुलन। न्यायिक समीक्षा: प्राधिकरण की वैधता पर निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: प्राधिकरण: वाणिज्य आयोग की स्थापना। शक्तियाँ: संसद द्वारा निर्धारित। कानूनी ढांचा: संसद का कानून। न्यायिक निगरानी: संवैधानिकता की जाँच।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950-1960 के दशक: अंतर-राज्य व्यापार के लिए कोई औपचारिक आयोग नहीं बना। 2000 के दशक: GST परिषद की स्थापना (अनुच्छेद 279A) ने कुछ हद तक अनुच्छेद 307 के उद्देश्य को पूरा किया। 2025 स्थिति: डिजिटल व्यापार और GST के लिए नियामक ढांचा।
चुनौतियाँ और विवाद: प्राधिकरण की अनुपस्थिति: वर्तमान में कोई विशिष्ट वाणिज्य आयोग नहीं है। केंद्र-राज्य विवाद: व्यापार नीतियों पर असहमति। न्यायिक समीक्षा: प्राधिकरण के कार्यों की वैधता।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 301: व्यापार की स्वतंत्रता। अनुच्छेद 302: संसद द्वारा प्रतिबंध। अनुच्छेद 303: भेदभाव पर रोक। अनुच्छेद 304: राज्यों द्वारा प्रतिबंध।
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