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Article 305 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-05 15:29:43
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 305
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 305
अनुच्छेद 305 भारतीय संविधान के भाग XIII (भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर व्यापार, वाणिज्य और समागम) में आता है। यह राज्य के एकाधिकार और कुछ व्यापारिक गतिविधियों को संरक्षण (Saving of existing laws and laws providing for State monopolies) से संबंधित है। यह प्रावधान अनुच्छेद 301 और 303 के तहत व्यापार की स्वतंत्रता पर लागू प्रतिबंधों से कुछ मौजूदा कानूनों और राज्य के एकाधिकार को छूट देता है।
"अनुच्छेद 301 और 303 के उपबंध इस संविधान के प्रारंभ के समय लागू कानूनों को प्रभावित नहीं करेंगे, और न ही संसद या राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए किसी कानून को, जो यह निर्धारित करता हो कि केंद्र या राज्य सरकार कोई व्यापार, व्यवसाय, उद्योग, या सेवा अपने नियंत्रण में ले सकती है, चाहे वह पूर्ण एकाधिकार हो या आंशिक रूप से निजी व्यक्तियों को छोड़कर।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 305 का उद्देश्य अनुच्छेद 301 (व्यापार की स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 303 (भेदभाव पर रोक) के प्रभाव से कुछ मौजूदा कानूनों और राज्य के एकाधिकार को संरक्षित करना है। यह केंद्र और राज्यों को कुछ व्यापार, व्यवसाय, उद्योग, या सेवाओं में एकाधिकार स्थापित करने की शक्ति देता है, जो सार्वजनिक हित में हो। इसका लक्ष्य सार्वजनिक हित, आर्थिक नियोजन, और संघीय ढांचे में केंद्र-राज्य संतुलन को सुनिश्चित करना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 305 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ।
42वां संशोधन (1976) ने इसे संशोधित कर राज्य के एकाधिकार को मजबूत किया, जो समाजवादी नीतियों के अनुरूप था।
भारतीय संदर्भ: स्वतंत्रता के बाद, भारत ने समाजवादी आर्थिक मॉडल अपनाया, जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (PSUs) और राज्य एकाधिकार महत्वपूर्ण थे। अनुच्छेद 305 ने इसे संवैधानिक समर्थन दिया।
प्रासंगिकता: 2025 में, यह प्रावधान सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (जैसे, ONGC, BSNL) और राज्य द्वारा नियंत्रित सेवाओं (जैसे, बिजली वितरण) के लिए महत्वपूर्ण है।
अनुच्छेद 305 के प्रमुख तत्व: मौजूदा कानूनों का संरक्षण: 26 जनवरी 1950 को लागू मौजूदा कानून, जो व्यापार या वाणिज्य को नियंत्रित करते थे, अनुच्छेद 301 और 303 के उल्लंघन के आधार पर अमान्य नहीं होंगे। उदाहरण: 1950 में लागू आवश्यक वस्तु अधिनियम।
राज्य एकाधिकार: संसद या राज्य विधानमंडल कानून बनाकर केंद्र या राज्य सरकार को किसी व्यापार, व्यवसाय, उद्योग, या सेवा में पूर्ण या आंशिक एकाधिकार दे सकते हैं। यह निजी व्यक्तियों को बाहर कर सकता है या उनके साथ सह-अस्तित्व की अनुमति दे सकता है। उदाहरण: 2025 में, तमिलनाडु में बिजली वितरण में राज्य का एकाधिकार।
न्यायिक समीक्षा: एकाधिकार और मौजूदा कानूनों की वैधता को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है, लेकिन अनुच्छेद 305 उन्हें विशेष संरक्षण देता है। उदाहरण: कोर्ट द्वारा PSU एकाधिकार की वैधता की जाँच।
महत्व: सार्वजनिक हित: राज्य एकाधिकार के माध्यम से आवश्यक सेवाएँ। आर्थिक नियोजन: सार्वजनिक क्षेत्र का प्रभुत्व। संघीय ढांचा: केंद्र और राज्यों की शक्ति। न्यायिक समीक्षा: एकाधिकार की वैधता पर निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: मौजूदा कानून: संरक्षण। राज्य एकाधिकार: पूर्ण या आंशिक। कानूनी ढांचा: संसद और विधानमंडल। न्यायिक निगरानी: वैधता की जाँच।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950-1960 के दशक: PSUs जैसे SAIL और BHEL का एकाधिकार। 2000 के दशक: बिजली और दूरसंचार में आंशिक एकाधिकार। 2025 स्थिति: डिजिटल सेवाओं और बिजली वितरण में एकाधिकार।
चुनौतियाँ और विवाद: केंद्र-राज्य विवाद: एकाधिकार पर राज्यों की स्वायत्तता। निजी क्षेत्र: एकाधिकार बनाम निजी भागीदारी। न्यायिक समीक्षा: एकाधिकार की वैधता पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 301: व्यापार की स्वतंत्रता। अनुच्छेद 302: संसद द्वारा प्रतिबंध। अनुच्छेद 303: भेदभाव पर रोक। अनुच्छेद 304: राज्यों द्वारा प्रतिबंध।
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