Article 304 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-05 15:26:18
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 304
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 304
अनुच्छेद 304 भारतीय संविधान के भाग XIII (भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर व्यापार, वाणिज्य और समागम) में आता है। यह राज्य विधानमंडलों द्वारा व्यापार और वाणिज्य पर प्रतिबंध लगाने की शक्ति (Restriction on trade, commerce, and intercourse among States) से संबंधित है। यह प्रावधान राज्यों को अपने क्षेत्र में व्यापार, वाणिज्य, और समागम पर कुछ शर्तों के तहत प्रतिबंध लगाने की शक्ति देता है, जो अनुच्छेद 301 की व्यापार की स्वतंत्रता के साथ संतुलन बनाता है।
"(1) अनुच्छेद 301 और 303 के बावजूद, किसी राज्य का विधानमंडल कानून द्वारा उस राज्य के भीतर व्यापार, वाणिज्य, और समागम पर ऐसे उचित प्रतिबंध लगा सकता है, जो सार्वजनिक हित में आवश्यक हों।
(2) कोई भी राज्य विधानमंडल ऐसा कानून नहीं बनाएगा जो किसी राज्य के बाहर उत्पादित या निर्मित माल पर कर लगाकर भारत के अन्य भागों के माल के साथ भेदभाव करता हो, जब तक कि उस कानून को राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति न मिले।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 304 का उद्देश्य राज्य विधानमंडलों को सार्वजनिक हित में अपने क्षेत्र में व्यापार, वाणिज्य, और समागम पर उचित प्रतिबंध लगाने की शक्ति देना है। यह अनुच्छेद 301 (व्यापार की स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 303 (भेदभाव पर रोक) के साथ संतुलन बनाता है, ताकि राज्य अपने स्थानीय हितों की रक्षा कर सकें। इसका लक्ष्य संघीय ढांचे में केंद्र और राज्यों के बीच संतुलन, स्थानीय हितों की रक्षा, और राष्ट्रीय बाजार की एकता को बनाए रखना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 304 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ।
यह ऑस्ट्रेलियाई और अमेरिकी संविधानों से प्रेरित था, जो केंद्रीय और क्षेत्रीय शक्तियों के बीच संतुलन बनाते हैं।
भारतीय संदर्भ: स्वतंत्रता के बाद, राज्यों को स्थानीय हितों (जैसे, स्थानीय उद्योग, कृषि) की रक्षा के लिए व्यापार पर प्रतिबंध लगाने की शक्ति चाहिए थी। अनुच्छेद 304 ने इसे संभव बनाया।
प्रासंगिकता: 2025 में, यह प्रावधान स्थानीय उत्पादों की रक्षा, पर्यावरणीय नियमों, और GST के तहत राज्यों की कर नीतियों के लिए महत्वपूर्ण है।
अनुच्छेद 304 के प्रमुख तत्व: खंड (1): उचित प्रतिबंध:
राज्य विधानमंडल अपने क्षेत्र में व्यापार, वाणिज्य, और समागम पर उचित प्रतिबंध लगा सकता है, बशर्ते यह सार्वजनिक हित में हो।
ये प्रतिबंध अनुच्छेद 301 (स्वतंत्र व्यापार) के अधीन हैं और भेदभावपूर्ण नहीं होने चाहिए।
उदाहरण: 2025 में, पंजाब द्वारा स्थानीय पर्यावरण संरक्षण के लिए परिवहन पर प्रतिबंध।
खंड (2): भेदभावपूर्ण कर पर रोक: कोई राज्य ऐसा कानून नहीं बना सकता जो अन्य राज्यों के माल पर भेदभावपूर्ण कर लगाए, जब तक कि उसे राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति न मिले। यह राष्ट्रीय बाजार में एकरूपता सुनिश्चित करता है। उदाहरण: हरियाणा द्वारा अन्य राज्यों के माल पर कर के लिए राष्ट्रपति की स्वीकृति।
न्यायिक समीक्षा: प्रतिबंधों और करों की वैधता को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। कोर्ट यह सुनिश्चित करता है कि प्रतिबंध उचित और सार्वजनिक हित में हों। उदाहरण: भेदभावपूर्ण कर को कोर्ट द्वारा रद्द करना।
महत्व: स्थानीय हित: राज्यों को स्थानीय उद्योग और पर्यावरण की रक्षा की शक्ति। राष्ट्रीय बाजार: भेदभावपूर्ण करों पर रोक। संघीय ढांचा: केंद्र और राज्यों के बीच संतुलन। न्यायिक समीक्षा: प्रतिबंधों और करों की वैधता की जाँच।
प्रमुख विशेषताएँ: उचित प्रतिबंध: सार्वजनिक हित में। भेदभाव पर रोक: राष्ट्रपति की स्वीकृति। कानूनी ढांचा: राज्य विधानमंडल। न्यायिक निगरानी: संवैधानिकता की जाँच।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950-1960 के दशक: राज्यों द्वारा स्थानीय उद्योगों के लिए प्रतिबंध। 2000 के दशक: GST लागू होने से पहले कर विवाद। 2025 स्थिति: स्थानीय उत्पादों और डिजिटल व्यापार पर प्रतिबंध।
चुनौतियाँ और विवाद: केंद्र-राज्य विवाद: राज्यों द्वारा भेदभावपूर्ण कर या प्रतिबंध। न्यायिक समीक्षा: प्रतिबंधों की वैधता पर कोर्ट की जाँच। आर्थिक प्रभाव: व्यापार पर प्रतिबंधों का व्यवसायों पर असर।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 301: व्यापार की स्वतंत्रता। अनुच्छेद 302: संसद द्वारा प्रतिबंध। अनुच्छेद 303: भेदभाव पर रोक। अनुच्छेद 279A: GST परिषद।
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jp Singh
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