Article 303 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-05 15:24:37
searchkre.com@gmail.com /
8392828781
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 303
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 303
अनुच्छेद 303 भारतीय संविधान के भाग XIII (भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर व्यापार, वाणिज्य और समागम) में आता है। यह संसद और राज्य विधानमंडलों द्वारा व्यापार में भेदभाव पर रोक (Restrictions on the legislative powers of the Union and of the States with regard to trade and commerce) से संबंधित है। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि संसद और राज्य विधानमंडल व्यापार, वाणिज्य, और समागम में भेदभावपूर्ण कानून न बनाएँ, सिवाय कुछ विशेष परिस्थितियों के।
"(1) अनुच्छेद 301 और 302 के बावजूद, न तो संसद और न ही किसी राज्य का विधानमंडल ऐसा कानून बनाने का अधिकार रखेगा जो भारत के एक भाग को दूसरे भाग के साथ व्यापार, वाणिज्य, या समागम में भेदभाव करता हो या किसी भाग को प्राथमिकता देता हो।
(2) खंड (1) संसद को यह शक्ति देने से नहीं रोकेगा कि वह अकाल या सामग्री की कमी के कारण सार्वजनिक हित में व्यापार, वाणिज्य, या समागम पर प्रतिबंध लगाए।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 303 का उद्देश्य व्यापार, वाणिज्य, और समागम में भेदभाव को रोकना है, ताकि भारत के विभिन्न हिस्सों के बीच आर्थिक एकता बनी रहे। यह सुनिश्चित करता है कि संसद और राज्य विधानमंडल ऐसे कानून न बनाएँ जो किसी क्षेत्र को अनुचित लाभ दें या भेदभाव करें, सिवाय अकाल या सामग्री की कमी जैसे असाधारण मामलों में। इसका लक्ष्य राष्ट्रीय बाजार, आर्थिक एकता, और संघीय ढांचे में समानता को बढ़ावा देना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 303 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ।
यह ऑस्ट्रेलियाई संविधान (धारा 92) और अमेरिकी संविधान (Commerce Clause) से प्रेरित था, जो व्यापार में भेदभाव को रोकते हैं। भारतीय संदर्भ: स्वतंत्रता के बाद, विभिन्न राज्यों और रियासतों के बीच व्यापारिक बाधाएँ थीं, जैसे स्थानीय कर और प्रतिबंध। अनुच्छेद 303 ने इन बाधाओं को हटाने में मदद की। प्रासंगिकता: 2025 में, यह प्रावधान GST (वस्तु और सेवा कर) और डिजिटल व्यापार में एकरूपता सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
अनुच्छेद 303 के प्रमुख तत्व: खंड (1): भेदभाव पर रोक: संसद और राज्य विधानमंडल को व्यापार, वाणिज्य, और समागम में भेदभाव करने या किसी क्षेत्र को प्राथमिकता देने वाले कानून बनाने से रोका गया है। यह अनुच्छेद 301 (व्यापार की स्वतंत्रता) के पूरक के रूप में कार्य करता है। उदाहरण: कोई राज्य अपने स्थानीय सामानों को प्राथमिकता देने के लिए कर में छूट नहीं दे सकता।
खंड (2): अपवाद: संसद को अकाल या सामग्री की कमी के कारण सार्वजनिक हित में भेदभावपूर्ण प्रतिबंध लगाने की शक्ति है। यह अपवाद राष्ट्रीय आपातकाल में संसाधनों के प्रबंधन के लिए है। उदाहरण: 2025 में, खाद्य संकट के दौरान संसद द्वारा खाद्य सामग्री के परिवहन पर प्रतिबंध।
न्यायिक समीक्षा: भेदभावपूर्ण कानूनों की वैधता को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। कोर्ट यह सुनिश्चित करता है कि प्रतिबंध अनुच्छेद 303 के अनुरूप हों। उदाहरण: राज्य द्वारा लगाए गए भेदभावपूर्ण कर को कोर्ट द्वारा रद्द करना।
महत्व: आर्थिक एकता: भारत को एक राष्ट्रीय बाजार के रूप में स्थापित करना। भेदभाव पर रोक: क्षेत्रीय असमानता को कम करना। सार्वजनिक हित: आपातकाल में संसद की शक्ति। न्यायिक समीक्षा: भेदभावपूर्ण कानूनों की जाँच।
प्रमुख विशेषताएँ: भेदभाव पर रोक: संसद और राज्य। अपवाद: अकाल या सामग्री की कमी। कानूनी ढांचा: संसद की शक्ति। न्यायिक निगरानी: संवैधानिकता की जाँच।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950-1960 के दशक: राज्यों द्वारा स्थानीय करों को हटाना। 2000 के दशक: GST लागू होने से पहले कर विवाद। 2025 स्थिति: GST और डिजिटल व्यापार में एकरूपता।
चुनौतियाँ और विवाद: केंद्र-राज्य विवाद: राज्यों द्वारा स्थानीय प्राथमिकता पर जोर। न्यायिक समीक्षा: भेदभावपूर्ण कानूनों की वैधता। आर्थिक नीतियाँ: GST और व्यापार नियमों का प्रभाव।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 301: व्यापार की स्वतंत्रता। अनुच्छेद 302: संसद द्वारा प्रतिबंध। अनुच्छेद 304: राज्यों द्वारा प्रतिबंध। अनुच्छेद 279A: GST परिषद।
Conclusion
Thanks For Read
jp Singh
searchkre.com@gmail.com
8392828781