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Article 299 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-05 15:11:15
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 299

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 299
अनुच्छेद 299 भारतीय संविधान के भाग XII (वित्त, संपत्ति, संविदाएँ और वाद) के अध्याय II (संपत्ति, संविदाएँ, अधिकार, दायित्व, बाध्यताएँ और वाद) में आता है। यह केंद्र और राज्यों की ओर से संविदाएँ (Contracts) से संबंधित है। यह प्रावधान केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से की जाने वाली संविदाओं (अनुबंधों) की प्रक्रिया और शर्तों को नियंत्रित करता है, ताकि वे कानूनी रूप से बाध्यकारी हों और सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित हो।
"(1) भारत सरकार या किसी राज्य सरकार की ओर से की जाने वाली सभी संविदाएँ राष्ट्रपति या संबंधित राज्य के राज्यपाल के नाम से होंगी, और ऐसी संविदाएँ और संपत्ति के हस्तांतरण के दस्तावेज़ उस व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित होंगे, जिसे राष्ट्रपति या राज्यपाल अधिकृत करें।
(2) कोई भी संविदा, जो अनुच्छेद 299(1) के प्रावधानों का पालन नहीं करती, भारत सरकार या राज्य सरकार को बाध्य नहीं करेगी, और न ही कोई व्यक्ति ऐसी संविदा के आधार पर सरकार के खिलाफ दावा कर सकता है।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 299 का उद्देश्य केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से की जाने वाली संविदाओं (अनुबंधों) के लिए एक मानकीकृत और कानूनी प्रक्रिया स्थापित करना है। यह सुनिश्चित करता है कि सरकारी संविदाएँ पारदर्शी, कानूनी रूप से बाध्यकारी, और जवाबदेही के सिद्धांतों के अनुरूप हों। इसका लक्ष्य सार्वजनिक धन की सुरक्षा, प्रशासनिक अनुशासन, और संघीय ढांचे में केंद्र-राज्य की संविदा शक्तियों का स्पष्ट विभाजन है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 299 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ।
यह भारत सरकार अधिनियम, 1935 (धारा 175) से प्रेरित था, जिसमें सरकारी संविदाओं के लिए समान प्रक्रिया थी।
भारतीय संदर्भ: स्वतंत्रता के बाद, केंद्र और राज्यों को विकास परियोजनाओं, बुनियादी ढांचे, और सार्वजनिक सेवाओं के लिए अनुबंध करने की आवश्यकता थी। अनुच्छेद 299 ने इस प्रक्रिया को संवैधानिक रूप दिया।
प्रासंगिकता: 2025 में, यह प्रावधान डिजिटल इंडिया, स्मार्ट सिटी, और PPP (सार्वजनिक-निजी भागीदारी) परियोजनाओं के लिए अनुबंधों के लिए महत्वपूर्ण है।
अनुच्छेद 299 के प्रमुख तत्व: खंड (1): संविदा की प्रक्रिया: केंद्र सरकार की ओर से सभी संविदाएँ राष्ट्रपति के नाम से और राज्य सरकार की ओर से राज्यपाल के नाम से होंगी। संविदाएँ और संपत्ति हस्तांतरण के दस्तावेज़ केवल उस व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित होंगे, जिसे राष्ट्रपति या राज्यपाल ने अधिकृत किया हो। यह सुनिश्चित करता है कि अनुबंध कानूनी और अधिकृत हों। उदाहरण: 2025 में, डिजिटल इंडिया परियोजना के लिए केंद्र का अनुबंध राष्ट्रपति के नाम से और अधिकृत अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित।
खंड (2): गैर-अनुपालन का प्रभाव: यदि कोई संविदा अनुच्छेद 299(1) की शर्तों (राष्ट्रपति/राज्यपाल के नाम, अधिकृत हस्ताक्षर) का पालन नहीं करती, तो वह भारत सरकार या राज्य सरकार को बाध्य नहीं करेगी। ऐसी संविदा के आधार पर कोई व्यक्ति सरकार के खिलाफ कानूनी दावा नहीं कर सकता। उदाहरण: यदि कोई अनुबंध बिना अधिकृत हस्ताक्षर के किया जाता है, तो वह अमान्य होगा।
महत्व: पारदर्शिता: संविदाओं में मानकीकृत प्रक्रिया। जवाबदेही: केवल अधिकृत व्यक्ति ही अनुबंध कर सकते हैं। सार्वजनिक धन की सुरक्षा: अनुचित अनुबंधों से बचाव। न्यायिक समीक्षा: संविदा की वैधता पर कोर्ट की निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: संविदा प्रक्रिया: राष्ट्रपति/राज्यपाल के नाम से। अधिकृत हस्ताक्षर: केवल अधिकृत व्यक्ति। कानूनी बाध्यता: गैर-अनुपालन पर अमान्यता। संघीय ढांचा: केंद्र-राज्य संतुलन।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950-1960 के दशक: पंचवर्षीय योजनाओं के लिए केंद्र के अनुबंध। 2000 के दशक: राज्यों द्वारा सड़क परियोजनाओं के लिए PPP अनुबंध। 2025 स्थिति: डिजिटल इंडिया और स्मार्ट सिटी के लिए अनुबंध।
चुनौतियाँ और विवाद: प्रशासनिक गलतियाँ: अनुच्छेद 299 का गैर-अनुपालन, जिससे अनुबंध अमान्य हो जाते हैं। अनुबंध विवाद: निजी पक्षों और सरकार के बीच दावे। न्यायिक समीक्षा: संविदा की वैधता पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 298: व्यापार और संविदा की शक्ति। अनुच्छेद 294: संपत्ति का उत्तराधिकार। अनुच्छेद 295: रियासतों से उत्तराधिकार। अनुच्छेद 300: वाद और कार्यवाहियाँ।
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