Article 298 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-05 15:09:41
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 298
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 298
अनुच्छेद 298 भारतीय संविधान के भाग XII (वित्त, संपत्ति, संविदाएँ और वाद) के अध्याय II (संपत्ति, संविदाएँ, अधिकार, दायित्व, बाध्यताएँ और वाद) में आता है। यह केंद्र और राज्यों की व्यापार और संविदा करने की शक्ति (Power to carry on trade, etc.) से संबंधित है। यह प्रावधान केंद्र और राज्य सरकारों को व्यापार करने, संपत्ति का स्वामित्व रखने, और संविदाएँ करने की शक्ति प्रदान करता है, जो उनके कार्यकारी क्षेत्र के अधीन है।
"भारत सरकार और प्रत्येक राज्य सरकार की कार्यकारी शक्ति में व्यापार या व्यवसाय करने, संपत्ति का अधिग्रहण, धारण और निपटान करने, और किसी भी उद्देश्य के लिए संविदाएँ करने की शक्ति शामिल है, बशर्ते यह उनके कार्यकारी क्षेत्र के अधीन हो।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 298 का उद्देश्य केंद्र और राज्य सरकारों को व्यापार या व्यवसाय करने, संपत्ति का अधिग्रहण, धारण और निपटान करने, और संविदाएँ करने की शक्ति प्रदान करना है। यह शक्ति उनके कार्यकारी क्षेत्र (legislative competence) के अधीन है, जो संविधान के तहत परिभाषित है। इसका लक्ष्य आर्थिक गतिविधियों, सार्वजनिक कल्याण, और संघीय ढांचे में केंद्र-राज्य संतुलन को बढ़ावा देना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 298 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ।
42वां संशोधन (1976) ने इसे संशोधित कर कार्यकारी क्षेत्र की सीमा को स्पष्ट किया। भारतीय संदर्भ: स्वतंत्रता के बाद, केंद्र और राज्यों को आर्थिक विकास के लिए व्यापार (जैसे, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम) और संविदाएँ करने की शक्ति की आवश्यकता थी। अनुच्छेद 298 ने इसे संवैधानिक रूप दिया। प्रासंगिकता: 2025 में, यह प्रावधान केंद्र और राज्यों के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (जैसे, ONGC, राज्य परिवहन निगम), संपत्ति प्रबंधन, और अनुबंधों (जैसे, PPP मॉडल) के लिए महत्वपूर्ण है।
अनुच्छेद 298 के प्रमुख तत्व: व्यापार और व्यवसाय की शक्ति: केंद्र और राज्य सरकारें व्यापार या व्यवसाय कर सकती हैं, जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (PSUs) या राज्य के स्वामित्व वाली कंपनियाँ। यह शक्ति उनके कार्यकारी क्षेत्र (संविधान की सातवीं अनुसूची) के अधीन है। उदाहरण: 2025 में, केंद्र सरकार का ONGC और तमिलनाडु सरकार का TNEB (बिजली बोर्ड)।
संपत्ति का अधिग्रहण, धारण, और निपटान: केंद्र और राज्य सरकारें संपत्ति (जैसे, भूमि, भवन) का अधिग्रहण, धारण, और निपटान कर सकती हैं। यह उनके कार्यकारी क्षेत्र के अनुसार होता है। उदाहरण: 2025 में, महाराष्ट्र सरकार ने स्मार्ट सिटी परियोजना के लिए भूमि का अधिग्रहण किया।
संविदा करने की शक्ति: केंद्र और राज्य सरकारें किसी भी उद्देश्य के लिए संविदाएँ (अनुबंध) कर सकती हैं। यह सार्वजनिक परियोजनाओं (जैसे, PPP मॉडल) के लिए महत्वपूर्ण है। उदाहरण: 2025 में, केंद्र ने डिजिटल इंडिया परियोजना के लिए निजी कंपनियों के साथ अनुबंध किया।
कार्यकारी क्षेत्र की सीमा: यह शक्ति सातवीं अनुसूची (संघ सूची, राज्य सूची, समवर्ती सूची) के अनुसार सीमित है। उदाहरण: केंद्र रेलवे से संबंधित व्यापार कर सकता है (संघ सूची), जबकि राज्य कृषि से संबंधित व्यापार कर सकता है (राज्य सूची)।
महत्व: आर्थिक विकास: सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम और अनुबंध। संपत्ति प्रबंधन: सरकारी संपत्तियों का उपयोग और निपटान। संघीय ढांचा: केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का संतुलन। न्यायिक समीक्षा: व्यापार और संविदाओं की वैधता पर कोर्ट की निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: व्यापार: सार्वजनिक और निजी क्षेत्र। संपत्ति: अधिग्रहण और निपटान। संविदाएँ: अनुबंध की शक्ति। संघीय ढांचा: कार्यकारी क्षेत्र की सीमा।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950-1960 के दशक: केंद्र के PSUs जैसे SAIL और BHEL की स्थापना। 2000 के दशक: राज्यों द्वारा PPP मॉडल के तहत सड़क परियोजनाएँ। 2025 स्थिति: डिजिटल इंडिया और स्मार्ट सिटी परियोजनाओं के लिए अनुबंध।
चुनौतियाँ और विवाद: केंद्र-राज्य विवाद: कार्यकारी क्षेत्र की सीमा पर असहमति। अनुबंध विवाद: PPP मॉडल में पारदर्शिता की कमी। न्यायिक समीक्षा: व्यापार और अनुबंधों की वैधता पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 294: सामान्य उत्तराधिकार। अनुच्छेद 295: रियासतों से उत्तराधिकार। अनुच्छेद 296: बिना वारिस की संपत्ति। अनुच्छेद 297: समुद्री क्षेत्र की संपत्ति।
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jp Singh
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