Article 296 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-05 15:06:20
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 296
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 296
अनुच्छेद 296 भारतीय संविधान के भाग XII(वित्त, संपत्ति, संविदाएँ और वाद) के अध्याय II(संपत्ति, संविदाएँ, अधिकार, दायित्व, बाध्यताएँ और वाद) में आता है। यह किसी व्यक्ति से संपत्ति का अधिग्रहण और उसका निपटान(Property accruing by escheat or lapse or as bona vacantia) से संबंधित है। यह प्रावधान उन संपत्तियों के बारे में है जो बिना वारिस के(escheat), बिना मालिक के(bona vacantia), या किसी अन्य कारण से केंद्र या राज्य सरकार को प्राप्त होती हैं।
"कोई भी संपत्ति जो बिना वारिस(escheat), बिना मालिक(bona vacantia), या किसी अन्य कारण से भारत सरकार या राज्य सरकार को प्राप्त होती है, वह केंद्र या संबंधित राज्य की संपत्ति होगी, जैसा कि उनके कार्यकारी क्षेत्र के अनुसार हो, और इसका निपटान संसद या राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए कानून के अनुसार होगा।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 296 का उद्देश्य उन संपत्तियों का प्रबंधन करना है जो बिना वारिस(escheat), बिना मालिक(bona vacantia), या अन्य कारणों से केंद्र या राज्य सरकार को प्राप्त होती हैं। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि ऐसी संपत्तियाँ केंद्र या राज्य की संपत्ति बनें और उनका निपटान कानूनी ढांचे के तहत हो। इसका लक्ष्य सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा, प्रशासनिक पारदर्शिता, और संघीय ढांचे में केंद्र-राज्य के बीच स्पष्टता सुनिश्चित करना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 296 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। यह ब्रिटिश कानूनों, विशेष रूप से escheat और bona vacantia की अवधारणाओं से प्रेरित था, जो औपनिवेशिक काल में लागू थीं। भारतीय संदर्भ: स्वतंत्रता के बाद, कई संपत्तियाँ(जैसे, रियासतों की परित्यक्त भूमि, बिना वारिस की संपत्ति) बिना मालिक के थीं। अनुच्छेद 296 ने इनका प्रबंधन केंद्र और राज्यों को सौंपा। प्रासंगिकता: 2025 में, यह प्रावधान बिना वारिस की संपत्तियों(जैसे, परित्यक्त भवन, भूमि) और डिजिटल संपत्तियों(जैसे, परित्यक्त डेटा बैंकों) के प्रबंधन के लिए प्रासंगिक है।
अनुच्छेद 296 के प्रमुख तत्व
संपत्ति का अधिग्रहण: कोई संपत्ति जो बिना वारिस(escheat), बिना मालिक(bona vacantia), या अन्य कारणों से प्राप्त होती है, वह केंद्र या राज्य सरकार की संपत्ति बनती है। Escheat: जब कोई व्यक्ति बिना वारिस के मर जाता है, उसकी संपत्ति सरकार को मिलती है। Bona Vacantia: ऐसी संपत्ति जिसका कोई मालिक नहीं है(जैसे, परित्यक्त संपत्ति)। उदाहरण: 2025 में, दिल्ली में बिना वारिस की भूमि केंद्र को प्राप्त हुई।
केंद्र और राज्य का क्षेत्र: संपत्ति का स्वामित्व केंद्र या राज्य को उनके कार्यकारी क्षेत्र के आधार पर मिलता है। यदि संपत्ति केंद्र के क्षेत्र(जैसे, केंद्रशासित प्रदेश) में है, तो वह भारत सरकार को मिलती है। यदि संपत्ति किसी राज्य में है, तो वह उस राज्य सरकार को मिलती है। उदाहरण: तमिलनाडु में परित्यक्त संपत्ति राज्य सरकार को प्राप्त।
कानूनी निपटान: ऐसी संपत्तियों का निपटान संसद या राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए कानून के अनुसार होता है। यह प्रक्रिया को पारदर्शी और व्यवस्थित बनाता है। उदाहरण: संपत्ति निपटान अधिनियम के तहत परित्यक्त भूमि का उपयोग।
महत्व: सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा: बिना मालिक की संपत्तियों का प्रबंधन। संघीय ढांचा: केंद्र और राज्यों के बीच स्पष्ट बंटवारा। प्रशासनिक निरंतरता: परित्यक्त संपत्तियों का उपयोग। न्यायिक समीक्षा: अधिग्रहण और निपटान की वैधता पर कोर्ट की निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: अधिग्रहण: बिना वारिस या मालिक की संपत्ति। स्वामित्व: केंद्र या राज्य के क्षेत्र के आधार पर। कानूनी ढांचा: संसद और विधानमंडल की शक्ति। संघीय ढांचा: केंद्र-राज्य संतुलन।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950-1960 के दशक: रियासतों की परित्यक्त संपत्तियों का अधिग्रहण। 2000 के दशक: बिना वारिस की भूमि का उपयोग स्कूलों के लिए। 2025 स्थिति: डिजिटल संपत्तियों(जैसे, परित्यक्त डेटा सेंटर) का प्रबंधन।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 294: सामान्य उत्तराधिकार। अनुच्छेद 295: रियासतों से उत्तराधिकार। अनुच्छेद 297: समुद्री क्षेत्र की संपत्ति। अनुच्छेद 298: व्यापार की शक्ति।
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jp Singh
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