Article 293 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-05 14:56:41
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 293
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 293
अनुच्छेद 293 भारतीय संविधान के भाग XII(वित्त, संपत्ति, संविदाएँ और वाद) के अध्याय I(वित्त) में आता है। यह राज्य सरकारों की उधार लेने की शक्ति(Borrowing by States) से संबंधित है। यह प्रावधान राज्य सरकारों को उनकी संगठित निधि पर उधार लेने और ऋण की गारंटी देने की शक्ति देता है, लेकिन केंद्र सरकार के कुछ नियंत्रणों के अधीन।
"(1) किसी राज्य की कार्यकारी शक्ति में उसकी संगठित निधि पर उधार लेने और राज्य की भविष्य की आय पर आधारित ऋण की गारंटी देने की शक्ति शामिल है, जो संसद या राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए कानून के अधीन होगी।
(2) यदि किसी राज्य पर केंद्र सरकार का कोई ऋण बकाया है, तो वह राज्य बिना केंद्र की सहमति के उधार नहीं ले सकता।
(3) केंद्र सरकार राज्यों को उधार दे सकती है, और ऐसी शर्तें लगा सकती है, जैसा वह उचित समझे।
(4) केंद्र द्वारा दिया गया ऋण भारत की संगठित निधि से नहीं लिया जाएगा।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 293 का उद्देश्य राज्य सरकारों को उधार लेने और ऋण की गारंटी देने की शक्ति प्रदान करना है, ताकि वे विकास परियोजनाओं, बुनियादी ढांचे, और अन्य सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए धन जुटा सकें। यह प्रावधान केंद्र सरकार को राज्यों की उधार शक्ति पर नियंत्रण प्रदान करता है, विशेष रूप से तब जब राज्य केंद्र से ऋण ले चुके हों, ताकि वित्तीय अनुशासन सुनिश्चित हो। इसका लक्ष्य सहकारी संघवाद, वित्तीय स्थिरता, और केंद्र-राज्य वित्तीय संतुलन को बढ़ावा देना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 293 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। यह भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित था, जिसमें प्रांतों को सीमित उधार शक्ति दी गई थी। भारतीय संदर्भ: स्वतंत्रता के बाद, राज्यों को अपने विकास कार्यों(जैसे, सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य) के लिए धन की आवश्यकता थी। अनुच्छेद 293 ने उन्हें उधार लेने की शक्ति दी, लेकिन केंद्र के नियंत्रण के साथ। प्रासंगिकता: 2025 में, यह प्रावधान राज्यों के लिए बुनियादी ढांचा, डिजिटल परियोजनाओं, और आपदा राहत के लिए उधार लेने में महत्वपूर्ण है।
अनुच्छेद 293 के प्रमुख तत्व
खंड(1): राज्यों की उधार शक्ति: राज्य सरकार अपनी संगठित निधि पर उधार ले सकती है और भविष्य की आय पर आधारित ऋण की गारंटी दे सकती है। यह शक्ति संसद या राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए कानून के अधीन है। उदाहरण: 2025 में, महाराष्ट्र सरकार ने स्मार्ट सिटी परियोजनाओं के लिए बॉन्ड जारी किए।
खंड(2): केंद्र का नियंत्रण: यदि किसी राज्य पर केंद्र सरकार का कोई ऋण बकाया है, तो वह राज्य बिना केंद्र की सहमति के उधार नहीं ले सकता। यह वित्तीय अनुशासन सुनिश्चित करता है। उदाहरण: 2025 में, बिहार ने केंद्र से ऋण के बकाया होने के कारण उधार के लिए केंद्र की अनुमति मांगी।
खंड(3): केंद्र से ऋण: केंद्र सरकार राज्यों को ऋण दे सकती है और ऐसी शर्तें लगा सकती है, जैसे ब्याज दर और चुकौती अवधि। उदाहरण: 2025 में, केंद्र ने असम को बाढ़ राहत के लिए ऋण दिया।
खंड(4): संगठित निधि से प्रतिबंध: केंद्र द्वारा राज्यों को दिया गया ऋण भारत की संगठित निधि से नहीं लिया जाएगा। यह सुनिश्चित करता है कि केंद्र के ऋण अन्य स्रोतों(जैसे, बाजार, अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान) से हों।
महत्व: वित्तीय स्वायत्तता: राज्यों को विकास के लिए उधार लेने की शक्ति। केंद्र का नियंत्रण: वित्तीय अनुशासन और स्थिरता। सहकारी संघवाद: केंद्र-राज्य वित्तीय समन्वय। न्यायिक समीक्षा: उधार और शर्तों की वैधता पर कोर्ट की निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: उधार: राज्य की संगठित निधि पर। केंद्र की सहमति: बकाया ऋण की स्थिति में। ऋण की गारंटी: भविष्य की आय पर। संघीय ढांचा: वित्तीय संतुलन।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950-1960 के दशक: राज्यों ने पंचवर्षीय योजनाओं के लिए केंद्र से ऋण लिया। 2000 के दशक: बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए राज्य बॉन्ड। 2025 स्थिति: डिजिटल परियोजनाओं और जलवायु परिवर्तन के लिए राज्यों का उधार।
चुनौतियाँ और विवाद: केंद्र-राज्य तनाव: केंद्र की सहमति पर असहमति। ऋण का बोझ: राज्यों का बढ़ता राजकोषीय घाटा। न्यायिक समीक्षा: उधार और शर्तों की वैधता पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 266: संगठित निधि। अनुच्छेद 280: वित्त आयोग। अनुच्छेद 292: केंद्र की उधार शक्ति। अनुच्छेद 279A: GST परिषद।
Conclusion
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jp Singh
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