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Article 292 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-05 14:49:12
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 292

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 292
अनुच्छेद 292 भारतीय संविधान के भाग XII(वित्त, संपत्ति, संविदाएँ और वाद) के अध्याय I(वित्त) में आता है। यह भारत सरकार की उधार लेने की शक्ति(Borrowing by the Government of India) से संबंधित है। यह प्रावधान केंद्र सरकार को भारत की संगठित निधि पर उधार लेने और भविष्य की आय पर आधारित ऋण की गारंटी देने की शक्ति देता है, जो संसद द्वारा बनाए गए कानून के अधीन है।
"भारत सरकार की कार्यकारी शक्ति में भारत की संगठित निधि पर उधार लेने और भारत की भविष्य की आय पर आधारित ऋण की गारंटी देने की शक्ति शामिल है, लेकिन यह संसद द्वारा बनाए गए कानून के अधीन होगी।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 292 का उद्देश्य केंद्र सरकार को उधार लेने की शक्ति प्रदान करना है, ताकि वह विकास परियोजनाओं, बुनियादी ढांचे, और अन्य सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए धन जुटा सके। यह प्रावधान केंद्र को वित्तीय लचीलापन देता है, लेकिन इसे संसदीय नियंत्रण के अधीन रखता है, ताकि वित्तीय अनुशासन और जवाबदेही सुनिश्चित हो। इसका लक्ष्य आर्थिक विकास, वित्तीय स्थिरता, और संघीय ढांचे में केंद्र की वित्तीय स्वायत्तता को बढ़ावा देना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 292 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। यह भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित था, जिसमें केंद्र को उधार लेने की शक्ति दी गई थी। भारतीय संदर्भ: स्वतंत्रता के बाद, भारत को बुनियादी ढांचा, औद्योगीकरण, और विकास के लिए बड़े पैमाने पर धन की आवश्यकता थी। अनुच्छेद 292 ने केंद्र को यह शक्ति प्रदान की। प्रासंगिकता: 2025 में, यह प्रावधान डिजिटल इंडिया, जलवायु परिवर्तन परियोजनाओं, और बुनियादी ढांचा विकास के लिए केंद्र के उधार(जैसे, बॉन्ड, अंतरराष्ट्रीय ऋण) के लिए महत्वपूर्ण है।
अनुच्छेद 292 के प्रमुख तत्व
उधार लेने की शक्ति: केंद्र सरकार भारत की संगठित निधि पर उधार ले सकती है, जैसे सरकारी बॉन्ड, ट्रेजरी बिल, या अंतरराष्ट्रीय ऋण। यह शक्ति संसद द्वारा बनाए गए कानून(जैसे, वित्त अधिनियम, राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम) के अधीन है। उदाहरण: 2025 में, केंद्र ने विश्व बैंक से स्मार्ट सिटी परियोजनाओं के लिए ऋण लिया।
ऋण की गारंटी: केंद्र सरकार भारत की भविष्य की आय पर आधारित ऋण की गारंटी दे सकती है, जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के लिए गारंटी। यह भी संसदीय नियंत्रण के अधीन है। उदाहरण: 2025 में, केंद्र ने रेलवे परियोजनाओं के लिए ऋण गारंटी दी।
संसदीय नियंत्रण: उधार और गारंटी की सीमा और शर्तें संसद द्वारा निर्धारित की जाती हैं। यह वित्तीय पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करता है। उदाहरण: राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन(FRBM) अधिनियम, 2003।
महत्व: आर्थिक विकास: बुनियादी ढांचा और विकास परियोजनाओं के लिए धन। वित्तीय लचीलापन: केंद्र की उधार लेने की क्षमता। संसदीय जवाबदेही: उधार पर नियंत्रण। न्यायिक समीक्षा: उधार की वैधता पर कोर्ट की निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: उधार: संगठित निधि पर। गारंटी: भविष्य की आय पर। संसदीय नियंत्रण: कानूनी ढांचा। संघीय ढांचा: केंद्र की वित्तीय स्वायत्तता।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950-1960 के दशक: पंचवर्षीय योजनाओं के लिए अंतरराष्ट्रीय ऋण। 2000 के दशक: बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए बॉन्ड। 2025 स्थिति: डिजिटल इंडिया और नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए ऋण।
चुनौतियाँ और विवाद: ऋण का बोझ: बढ़ता राजकोषीय घाटा। संसदीय नियंत्रण: FRBM अधिनियम का अनुपालन। न्यायिक समीक्षा: उधार की वैधता और सीमा पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 266: संगठित निधि। अनुच्छेद 280: वित्त आयोग। अनुच्छेद 293: राज्यों की उधार शक्ति। अनुच्छेद 279A: GST परिषद।
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