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Article 289 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-05 14:39:54
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 289

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 289
अनुच्छेद 289 भारतीय संविधान के भाग XII(वित्त, संपत्ति, संविदाएँ और वाद) के अध्याय I(वित्त) में आता है। यह राज्य सरकारों की संपत्ति और आय पर केंद्र द्वारा कराधान से छूट(Exemption of property and income of a State from Union taxation) से संबंधित है। यह प्रावधान राज्य सरकारों की संपत्ति और आय को केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए करों से छूट प्रदान करता है, सिवाय इसके कि जब राज्य व्यापार या व्यवसाय में संलग्न हों।
"(1) किसी राज्य की संपत्ति और आय केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए किसी भी कर से मुक्त होगी।
(2) उपखंड(1) का कोई प्रावधान उस संपत्ति या आय पर केंद्र द्वारा कर लगाने को प्रभावित नहीं करेगा, जो किसी राज्य द्वारा या उसकी ओर से किए गए व्यापार या व्यवसाय से प्राप्त होती है, सिवाय इसके कि संसद कानून द्वारा अन्यथा प्रावधान करे।
(3) उपखंड(2) में उल्लिखित व्यापार या व्यवसाय पर कोई कर, जो 26 जनवरी 1950 से पहले लागू था, तब तक लागू रह सकता है, जब तक कि संसद कानून द्वारा इसे रद्द न करे।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 289 का उद्देश्य राज्य सरकारों की संपत्ति और आय को केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए करों(जैसे, आयकर, संपत्ति कर) से छूट प्रदान करना है। यह प्रावधान राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता को सुनिश्चित करता है और केंद्र के कराधान से उनकी सरकारी गतिविधियों को बचाता है। हालांकि, राज्यों द्वारा संचालित व्यापारिक गतिविधियों पर केंद्र कर लगा सकता है, जिससे संघीय ढांचे में संतुलन बना रहता है। इसका लक्ष्य सहकारी संघवाद, राज्यों की स्वायत्तता, और वित्तीय संतुलन को बढ़ावा देना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 289 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। यह भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित था, जिसमें प्रांतों की संपत्ति को केंद्र के करों से छूट दी गई थी। भारतीय संदर्भ: स्वतंत्रता के बाद, राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता सुनिश्चित करना आवश्यक था। अनुच्छेद 289 ने राज्यों को केंद्र के करों से सुरक्षा प्रदान की। प्रासंगिकता: 2025 में, यह प्रावधान राज्यों की सरकारी संपत्तियों(जैसे, सचिवालय, स्कूल) और गैर-व्यापारिक आय को केंद्र के करों से छूट देता है।
अनुच्छेद 289 के प्रमुख तत्व
खंड(1): राज्यों की संपत्ति और आय पर छूट: किसी भी राज्य की संपत्ति(जैसे, सरकारी भवन, भूमि) और आय(जैसे, गैर-व्यापारिक राजस्व) पर केंद्र सरकार कोई कर नहीं लगा सकती। यह छूट राज्यों की सरकारी गतिविधियों को केंद्र के कराधान से बचाती है। उदाहरण: 2025 में, बिहार सरकार के सचिवालय भवन पर केंद्र संपत्ति कर नहीं लगा सकता।
खंड(2): व्यापारिक गतिविधियों पर कर: यदि कोई राज्य व्यापार या व्यवसाय(जैसे, राज्य के स्वामित्व वाली कंपनी) में संलग्न है, तो उसकी संपत्ति या आय पर केंद्र कर लगा सकता है। संसद कानून द्वारा इस कर को छूट दे सकती है। उदाहरण: 2025 में, उत्तर प्रदेश की राज्य परिवहन निगम की आय पर केंद्र आयकर लगा सकता है।
खंड(3): ऐतिहासिक करों की बचत: यदि कोई कर 26 जनवरी 1950 से पहले राज्यों के व्यापार पर लागू था, तो वह तब तक जारी रह सकता है, जब तक संसद उसे रद्द न करे। यह खंड अब अप्रासंगिक है, क्योंकि ऐसे कर समाप्त हो चुके हैं। उदाहरण(ऐतिहासिक): 1950 से पहले, कुछ राज्यों के व्यापार पर केंद्र के कर लागू थे।
महत्व: राज्यों की स्वायत्तता: सरकारी संपत्ति और आय की सुरक्षा। संघीय संतुलन: केंद्र और राज्यों के बीच कर शक्तियों में संतुलन। वित्तीय स्वायत्तता: राज्यों पर केंद्र के करों का बोझ नहीं। न्यायिक समीक्षा: छूट और करों की वैधता पर कोर्ट की निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: छूट: राज्यों की संपत्ति और गैर-व्यापारिक आय। संसद की शक्ति: व्यापारिक आय पर कर छूट। ऐतिहासिक बचत: 1950 से पहले के कर। संघीय ढांचा: सहकारी संघवाद।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950-1960 के दशक: राज्यों की सरकारी संपत्तियों पर केंद्र के करों से छूट। 2000 के दशक: राज्य के स्वामित्व वाली कंपनियों(जैसे, बिजली निगम) पर आयकर। 2025 स्थिति: जल जीवन मिशन के तहत राज्यों की जल परियोजनाओं पर केंद्र के करों से छूट।
चुनौतियाँ और विवाद: केंद्र-राज्य तनाव: राज्यों के व्यापारिक आय पर केंद्र के कर पर असहमति। परिभाषा का विवाद: सरकारी बनाम व्यापारिक गतिविधियों की परिभाषा। न्यायिक समीक्षा: छूट और करों की वैधता पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 285: केंद्र की संपत्ति पर कर छूट। अनुच्छेद 287: बिजली पर कर छूट। अनुच्छेद 288: केंद्र के व्यापार और जल पर कर छूट। अनुच्छेद 279A: GST परिषद।
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