Article 285 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-05 14:31:09
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 285
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 285
अनुच्छेद 285 भारतीय संविधान के भाग XII(वित्त, संपत्ति, संविदाएँ और वाद) के अध्याय I(वित्त) में आता है। यह केंद्र सरकार की संपत्ति पर राज्य के कराधान से छूट(Exemption of Union property from State taxation) से संबंधित है। यह प्रावधान केंद्र सरकार की संपत्ति को राज्यों द्वारा लगाए गए करों से छूट प्रदान करता है, जब तक कि संसद कानून द्वारा अन्यथा प्रावधान न करे।
"(1) केंद्र सरकार की संपत्ति और आय पर किसी भी राज्य द्वारा कोई कर नहीं लगाया जाएगा, जब तक कि संसद कानून द्वारा अन्यथा प्रावधान न करे।
(2) इस अनुच्छेद का कोई भी प्रावधान केंद्र सरकार की संपत्ति पर किसी भी प्राधिकारी द्वारा लगाए गए करों को प्रभावित नहीं करेगा, जो 26 जनवरी 1950 से पहले लागू थे, जब तक कि संसद कानून द्वारा इसे रद्द न करे।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 285 का उद्देश्य केंद्र सरकार की संपत्ति और आय को राज्यों द्वारा लगाए गए करों(जैसे, संपत्ति कर, भूमि कर) से छूट प्रदान करना है। यह प्रावधान केंद्र सरकार की वित्तीय स्वायत्तता और संघीय प्रभुत्व को बनाए रखता है, ताकि राज्य सरकारें केंद्र की संपत्ति पर कर लगाकर उसकी कार्यप्रणाली में बाधा न डालें। इसका लक्ष्य संघीय ढांचे में केंद्र-राज्य वित्तीय संबंधों में संतुलन बनाए रखना और केंद्र की संपत्ति की सुरक्षा करना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 285 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। यह भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित था, जिसमें केंद्र सरकार की संपत्ति को प्रांतीय करों से छूट दी गई थी। भारतीय संदर्भ: स्वतंत्रता के बाद, केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय शक्तियों का स्पष्ट विभाजन आवश्यक था। अनुच्छेद 285 ने केंद्र की संपत्ति को राज्यों के कराधान से बचाया। प्रासंगिकता: 2025 में, यह प्रावधान केंद्र सरकार की संपत्तियों(जैसे, रेलवे, डाकघर, केंद्रीय कार्यालय) को राज्यों के संपत्ति कर या अन्य स्थानीय करों से छूट देता है।
अनुच्छेद 285 के प्रमुख तत्व
खंड(1): केंद्र की संपत्ति पर छूट: केंद्र सरकार की संपत्ति(जैसे, भवन, भूमि, रेलवे स्टेशन) और आय पर कोई भी राज्य सरकार कर नहीं लगा सकती। संसद को कानून बनाकर इस छूट को संशोधित करने या हटाने की शक्ति है। उदाहरण: 2025 में, दिल्ली सरकार केंद्रीय मंत्रालयों के भवनों पर संपत्ति कर नहीं लगा सकती।
खंड(2): ऐतिहासिक करों की बचत: यदि कोई कर 26 जनवरी 1950 से पहले केंद्र की संपत्ति पर लगाया जा रहा था, तो वह तब तक लागू रह सकता है, जब तक संसद कानून द्वारा इसे रद्द न करे। यह खंड अस्थायी था और अब इसकी प्रासंगिकता सीमित है। उदाहरण(ऐतिहासिक): 1950 से पहले, कुछ स्थानीय निकायों ने केंद्र की संपत्तियों पर कर लगाया, जो अनुच्छेद 285 के तहत जारी रहा।
महत्व: संघीय प्रभुत्व: केंद्र की संपत्ति की सुरक्षा। वित्तीय स्वायत्तता: केंद्र पर राज्य करों का बोझ नहीं। सहकारी संघवाद: केंद्र-राज्य वित्तीय संबंधों में संतुलन। न्यायिक समीक्षा: छूट और करों की वैधता पर कोर्ट की निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: छूट: केंद्र की संपत्ति और आय पर। संसद की शक्ति: छूट को संशोधित करने का अधिकार। ऐतिहासिक बचत: 1950 से पहले के कर। संघीय ढांचा: केंद्र का प्रभुत्व।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950-1960 के दशक: केंद्र की संपत्तियों(जैसे, रेलवे) पर राज्य करों से छूट। 2000 के दशक: केंद्रीय कार्यालयों पर संपत्ति कर विवाद। 2025 स्थिति: डिजिटल बुनियादी ढांचे(जैसे, डेटा सेंटर) पर केंद्र की संपत्ति को राज्य करों से छूट।
चुनौतियाँ और विवाद: केंद्र-राज्य तनाव: राज्यों द्वारा केंद्र की संपत्ति पर कर लगाने की मांग। स्थानीय निकायों का दबाव: नगर पालिकाएँ संपत्ति कर लगाने की कोशिश। न्यायिक समीक्षा: छूट की वैधता पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 289: राज्यों की संपत्ति पर केंद्र का कराधान। अनुच्छेद 266: संगठित निधि और लोक लेखा। अनुच्छेद 280: वित्त आयोग। अनुच्छेद 279A: GST परिषद।
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jp Singh
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