Article 284 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-05 14:28:21
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 284
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 284
अनुच्छेद 284 भारतीय संविधान के भाग XII(वित्त, संपत्ति, संविदाएँ और वाद) के अध्याय I(वित्त) में आता है। यह केंद्र और राज्यों के कर्मचारियों द्वारा प्राप्त धनराशि के संरक्षण(Custody of moneys received by public servants and courts) से संबंधित है। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि केंद्र और राज्यों के कर्मचारियों या अदालतों द्वारा प्राप्त सभी धनराशियाँ, जो संगठित निधि या लोक लेखा में जमा नहीं की जातीं, उचित तरीके से प्रबंधित और जमा की जाएँ।
"केंद्र सरकार या राज्य सरकार के कर्मचारियों या अदालतों द्वारा प्राप्त सभी धनराशियाँ, जो भारत की संगठित निधि, राज्य की संगठित निधि, या लोक लेखा में जमा करने के लिए नहीं हैं, संसद(केंद्र के लिए) या राज्य विधानमंडल(राज्य के लिए) द्वारा बनाए गए कानून के अनुसार जमा की जाएँगी। जब तक ऐसा कानून नहीं बनता, केंद्र के लिए राष्ट्रपति और राज्य के लिए राज्यपाल के आदेश लागू होंगे।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 284 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि केंद्र और राज्यों के कर्मचारियों(जैसे, सरकारी अधिकारी, कर्मचारी) या अदालतों(जैसे, जिला अदालतें, उच्च न्यायालय) द्वारा प्राप्त धनराशियाँ, जो संगठित निधि या लोक लेखा में जमा नहीं होतीं, उचित और पारदर्शी तरीके से संरक्षित और प्रबंधित की जाएँ। यह प्रावधान सार्वजनिक धन की जवाबदेही, वित्तीय पारदर्शिता, और संघीय ढांचे में वित्तीय अनुशासन को बढ़ावा देता है। इसका लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि ऐसी धनराशियाँ, जैसे अदालती शुल्क, जमानत राशि, या अन्य प्राप्तियाँ, दुरुपयोग से बचें और कानूनी ढांचे के तहत प्रबंधित हों।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 284 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। यह भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित था, जिसमें सरकारी कर्मचारियों और अदालतों द्वारा प्राप्त धनराशियों के प्रबंधन के लिए प्रावधान थे। भारतीय संदर्भ: स्वतंत्रता के बाद, सरकारी कर्मचारियों और अदालतों द्वारा प्राप्त धनराशियों(जैसे, जुर्माना, जमानत, शुल्क) के प्रबंधन में एकरूपता और जवाबदेही की आवश्यकता थी। अनुच्छेद 284 ने इसे कानूनी ढांचे में लाया।
प्रासंगिकता: 2025 में, यह प्रावधान अदालतों द्वारा प्राप्त जमानत राशि, शुल्क, और सरकारी कर्मचारियों द्वारा प्राप्त अन्य धनराशियों(जैसे, लाइसेंस शुल्क) के प्रबंधन में महत्वपूर्ण है।
अनुच्छेद 284 के प्रमुख तत्व
केंद्र के लिए: केंद्र सरकार के कर्मचारियों या अदालतों(जैसे, उच्चतम न्यायालय, केंद्रीय प्रशासित क्षेत्रों की अदालतें) द्वारा प्राप्त धनराशियाँ, जो भारत की संगठित निधि या लोक लेखा में जमा नहीं होतीं, संसद द्वारा बनाए गए कानून के अनुसार संरक्षित और जमा की जाएँगी। जब तक ऐसा कानून नहीं बनता, राष्ट्रपति के आदेश लागू होंगे। उदाहरण: 2025 में, उच्चतम न्यायालय द्वारा प्राप्त जमानत राशि को संसद के कानून(जैसे, कोर्ट फीस एक्ट) के तहत प्रबंधित किया जाता है।
राज्यों के लिए: राज्य सरकार के कर्मचारियों या अदालतों(जैसे, जिला अदालतें, उच्च न्यायालय) द्वारा प्राप्त धनराशियाँ, जो राज्य की संगठित निधि या लोक लेखा में जमा नहीं होतीं, राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए कानून के अनुसार संरक्षित और जमा की जाएँगी। जब तक ऐसा कानून नहीं बनता, राज्यपाल के आदेश लागू होंगे। उदाहरण: 2025 में, बिहार की जिला अदालतों द्वारा प्राप्त जमानत राशि को राज्य विधानमंडल के कानून के तहत प्रबंधित किया जाता है।
महत्व: वित्तीय जवाबदेही: सरकारी कर्मचारियों और अदालतों द्वारा प्राप्त धनराशियों का पारदर्शी प्रबंधन। सहकारी संघवाद: केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय अनुशासन। सार्वजनिक धन की सुरक्षा: दुरुपयोग और भ्रष्टाचार से बचाव। न्यायिक समीक्षा: धनराशियों के प्रबंधन की वैधता पर कोर्ट की निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: धनराशि का संरक्षण: कर्मचारियों और अदालतों द्वारा प्राप्त धन। कानूनी ढांचा: संसद और विधानमंडल की शक्ति। राष्ट्रपति/राज्यपाल: अंतरिम आदेश। संघीय ढांचा: वित्तीय जवाबदेही।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950-1960 के दशक: अदालतों द्वारा प्राप्त जमानत और शुल्क का प्रबंधन। 2000 के दशक: सरकारी कर्मचारियों द्वारा लाइसेंस शुल्क का प्रबंधन। 2025 स्थिति: डिजिटल लेनदेन से संबंधित शुल्क(जैसे, ऑनलाइन लाइसेंस) का प्रबंधन।
चुनौतियाँ और विवाद: प्रशासनिक जटिलताएँ: विभिन्न प्रकार की धनराशियों का प्रबंधन। पारदर्शिता का अभाव: दुरुपयोग की आशंका। न्यायिक समीक्षा: धनराशियों के प्रबंधन की वैधता पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 266: संगठित निधि और लोक लेखा। अनुच्छेद 267: आकस्मिकता निधि। अनुच्छेद 283: निधियों का प्रबंधन। अनुच्छेद 280: वित्त आयोग।
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jp Singh
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