Article 283 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-05 14:26:09
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 283
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 283
अनुच्छेद 283 भारतीय संविधान के भाग XII(वित्त, संपत्ति, संविदाएँ और वाद) के अध्याय I(वित्त) में आता है। यह भारत की संगठित निधि, राज्यों की संगठित निधि, और लोक लेखा(Custody of Consolidated Funds, Contingency Funds, and Public Accounts) के प्रबंधन और नियंत्रण से संबंधित है। यह प्रावधान इन निधियों के संरक्षण, निकासी, और उपयोग को विनियमित करने के लिए संसद और राज्य विधानमंडलों को शक्ति देता है।
"(1) भारत की संगठित निधि, भारत का आकस्मिकता निधि, और भारत का लोक लेखा, साथ ही उसमें जमा या निकासी की प्रक्रिया, संसद द्वारा बनाए गए कानून के अधीन होगी, और जब तक ऐसा कानून नहीं बनता, राष्ट्रपति के आदेश द्वारा नियंत्रित होगी।
(2) किसी राज्य की संगठित निधि, राज्य का आकस्मिकता निधि, और राज्य का लोक लेखा, साथ ही उसमें जमा या निकासी की प्रक्रिया, राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए कानून के अधीन होगी, और जब तक ऐसा कानून नहीं बनता, राज्य के राज्यपाल के आदेश द्वारा नियंत्रित होगी।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 283 का उद्देश्य भारत की संगठित निधि, आकस्मिकता निधि, और लोक लेखा(केंद्र और राज्यों के लिए) के संरक्षण, प्रबंधन, और निकासी को विनियमित करना है। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि इन निधियों का उपयोग और प्रबंधन पारदर्शी, कानूनी, और जवाबदेह तरीके से हो। इसका लक्ष्य वित्तीय अनुशासन, सहकारी संघवाद, और सार्वजनिक धन की सुरक्षा को बढ़ावा देना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 283 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। यह भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित था, जिसमें सार्वजनिक निधियों के प्रबंधन के लिए प्रावधान थे। भारतीय संदर्भ: स्वतंत्रता के बाद, केंद्र और राज्यों के लिए सार्वजनिक निधियों का प्रबंधन एक महत्वपूर्ण चुनौती थी। अनुच्छेद 283 ने इस प्रक्रिया को कानूनी ढांचे में लाया। प्रासंगिकता: 2025 में, यह प्रावधान केंद्र और राज्यों की संगठित निधियों, आपदा राहत, और डिजिटल परियोजनाओं के लिए धन प्रबंधन में महत्वपूर्ण है।
अनुच्छेद 283 के प्रमुख तत्व
खंड(1): केंद्र की निधियाँ: भारत की संगठित निधि, आकस्मिकता निधि, और लोक लेखा का संरक्षण, जमा, और निकासी संसद द्वारा बनाए गए कानून के अधीन है। जब तक ऐसा कानून नहीं बनता, राष्ट्रपति के आदेश लागू होते हैं। उदाहरण: 2025 में, भारत की संगठित निधि से डिजिटल इंडिया परियोजनाओं के लिए धन निकासी संसद के कानून(जैसे, विनियोग अधिनियम) के तहत होती है।
खंड(2): राज्यों की निधियाँ: किसी राज्य की संगठित निधि, आकस्मिकता निधि, और लोक लेखा का संरक्षण, जमा, और निकासी राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए कानून के अधीन है। जब तक ऐसा कानून नहीं बनता, राज्यपाल के आदेश लागू होते हैं। उदाहरण: 2025 में, बिहार की संगठित निधि से शिक्षा योजनाओं के लिए धन निकासी राज्य विधानमंडल के कानून के तहत होती है।
महत्व: वित्तीय अनुशासन: सार्वजनिक निधियों का पारदर्शी प्रबंधन। सहकारी संघवाद: केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय जवाबदेही। कानूनी ढांचा: संसद और राज्य विधानमंडलों की शक्ति। न्यायिक समीक्षा: निधियों के उपयोग की वैधता पर कोर्ट की निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: संगठित निधि: कर और राजस्व का मुख्य खाता। आकस्मिकता निधि: आपातकालीन व्यय के लिए। लोक लेखा: गैर-कर राजस्व और अन्य जमा। संघीय ढांचा: वित्तीय जवाबदेही।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950-1960 के दशक: केंद्र और राज्यों ने संगठित निधियों के प्रबंधन के लिए कानून बनाए। 2000 के दशक: आकस्मिकता निधि से आपदा राहत के लिए धन निकासी। 2025 स्थिति: डिजिटल परियोजनाओं और जलवायु परिवर्तन के लिए संगठित निधि से व्यय।
चुनौतियाँ और विवाद: केंद्र-राज्य तनाव: निधियों के उपयोग पर असहमति। पारदर्शिता: दुरुपयोग की आशंका। न्यायिक समीक्षा: निधियों के उपयोग की वैधता पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 266: संगठित निधि और लोक लेखा। अनुच्छेद 267: आकस्मिकता निधि। अनुच्छेद 280: वित्त आयोग। अनुच्छेद 279A: GST परिषद।
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jp Singh
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