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Article 281 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-05 14:22:30
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 281

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 281
अनुच्छेद 281 भारतीय संविधान के भाग XII(वित्त, संपत्ति, संविदाएँ और वाद) के अध्याय I(वित्त) में आता है। यह वित्त आयोग की सिफारिशों(Recommendations of the Finance Commission) से संबंधित है। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि वित्त आयोग की सिफारिशें राष्ट्रपति द्वारा संसद के समक्ष प्रस्तुत की जाएँ, ताकि केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय व्यवस्थाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही बनी रहे।
"राष्ट्रपति यह सुनिश्चित करेंगे कि वित्त आयोग की सिफारिशें, उनके द्वारा की गई कार्रवाई के विवरण के साथ, संसद के दोनों सदनों के समक्ष प्रस्तुत की जाएँ।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 281 का उद्देश्य वित्त आयोग की सिफारिशों को संसद के समक्ष प्रस्तुत करके पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना है। यह प्रावधान यह गारंटी देता है कि केंद्र और राज्यों के बीच करों और अनुदानों के वितरण से संबंधित सिफारिशें सार्वजनिक और विधायी जांच के लिए उपलब्ध हों। इसका लक्ष्य सहकारी संघवाद को बढ़ावा देना, वित्तीय नीतियों में पारदर्शिता, और संघीय ढांचे में संतुलन बनाए रखना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 281 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। यह भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित था, जिसमें वित्तीय व्यवस्थाओं की जवाबदेही के लिए प्रावधान थे।
भारतीय संदर्भ: स्वतंत्रता के बाद, केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय संसाधनों का निष्पक्ष वितरण एक प्रमुख चुनौती थी। अनुच्छेद 281 ने वित्त आयोग की सिफारिशों को संसद के समक्ष लाकर इस प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित की।
प्रासंगिकता: 2025 में, यह प्रावधान 15वें वित्त आयोग(2020-2026) की सिफारिशों को संसद के समक्ष प्रस्तुत करने में महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से डिजिटल अर्थव्यवस्था और जलवायु परिवर्तन परियोजनाओं के लिए।
अनुच्छेद 281 के प्रमुख तत्व
सिफारिशों की प्रस्तुति: राष्ट्रपति को वित्त आयोग की सिफारिशें प्राप्त होती हैं, और वे इन्हें संसद के दोनों सदनों(लोकसभा और राज्यसभा) के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। इसके साथ, राष्ट्रपति द्वारा सिफारिशों पर की गई कार्रवाई का विवरण(Action Taken Report) भी प्रस्तुत किया जाता है। उदाहरण: 2025 में, 15वें वित्त आयोग की सिफारिशें(जैसे, GST वितरण, अनुदान) राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा संसद के समक्ष प्रस्तुत की गईं।
पारदर्शिता और जवाबदेही: यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि वित्त आयोग की सिफारिशें और सरकार की कार्रवाई सार्वजनिक और विधायी जांच के लिए उपलब्ध हों। यह सहकारी संघवाद को मजबूत करता है, क्योंकि राज्यों को यह जानने का अधिकार है कि उनकी वित्तीय आवश्यकताओं पर क्या कार्रवाई हुई। उदाहरण: 2025 में, डिजिटल बुनियादी ढांचे के लिए अनुदान पर कार्रवाई का विवरण संसद में चर्चा का विषय बना।
महत्व: सहकारी संघवाद: केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय समन्वय। पारदर्शिता: सिफारिशों और कार्रवाई का सार्वजनिक प्रकटीकरण। जवाबदेही: सरकार को वित्त आयोग की सिफारिशों पर कार्रवाई की जिम्मेदारी। न्यायिक समीक्षा: सिफारिशों और कार्रवाई की वैधता पर कोर्ट की निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: वित्त आयोग: सिफारिशों की प्रस्तुति। राष्ट्रपति की भूमिका: संसद के समक्ष प्रस्तुति। संसद: विधायी जांच। संघीय ढांचा: सहकारी संघवाद।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1952: प्रथम वित्त आयोग(अध्यक्ष: के.सी. नियोगी) की सिफारिशें संसद के समक्ष प्रस्तुत। 2015-2020: 14वां वित्त आयोग(अध्यक्ष: वाई.वी. रेड्डी) की सिफारिशें, जैसे 42% कर हिस्सा, संसद में चर्चित। 2025 स्थिति: 15वां वित्त आयोग(अध्यक्ष: एन.के. सिंह) की सिफारिशें डिजिटल और पर्यावरणीय परियोजनाओं के लिए प्रस्तुत।
चुनौतियाँ और विवाद: केंद्र-राज्य तनाव: सिफारिशों को लागू न करने पर राज्यों की आपत्ति। प्रशासनिक देरी: सिफारिशों की प्रस्तुति और कार्रवाई में समय लगना। न्यायिक समीक्षा: सिफारिशों की वैधता और कार्रवाई पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 280: वित्त आयोग का गठन और जिम्मेदारियाँ। अनुच्छेद 270: केंद्र-राज्य कर वितरण। अनुच्छेद 275: राज्यों को अनुदान। अनुच्छेद 279A: GST परिषद।
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