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Article 278 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-05 14:14:29
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 278(निरसन)

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 278(निरसन)
अनुच्छेद 278 भारतीय संविधान के भाग XII(वित्त, संपत्ति, संविदाएँ और वाद) के अध्याय I(वित्त) में था। यह केंद्र और राज्यों के बीच समझौतों(Agreements between the Union and States) से संबंधित था, जो केंद्र और तत्कालीन भाग B राज्यों(पूर्ववर्ती रियासतों) के बीच वित्तीय और प्रशासनिक व्यवस्थाओं के लिए बनाए गए थे। यह प्रावधान संविधान लागू होने के बाद इन राज्यों के एकीकरण को सुगम बनाने के लिए था। हालांकि, 7वें संवैधानिक संशोधन(1956) द्वारा इसे निरसन कर दिया गया, क्योंकि यह प्रावधान अप्रासंगिक हो गया था।
अनुच्छेद 278 का मूल पाठ(निरसन से पहले)
"(1) केंद्र और भाग B राज्यों के बीच वित्तीय और प्रशासनिक मामलों के संबंध में समझौते किए जा सकते हैं।
(2) ऐसे समझौतों को राष्ट्रपति की स्वीकृति के अधीन लागू किया जाएगा।
(3) इन समझौतों में करों का वितरण, अनुदान, और अन्य वित्तीय व्यवस्थाएँ शामिल हो सकती हैं।"
उद्देश्य(मूल प्रावधान): अनुच्छेद 278 का उद्देश्य केंद्र और भाग B राज्यों(जैसे, हैदराबाद, मैसूर, जम्मू-कश्मीर) के बीच वित्तीय और प्रशासनिक समझौते करने की व्यवस्था करना था। यह प्रावधान स्वतंत्रता के बाद पूर्ववर्ती रियासतों के भारत में एकीकरण को सुगम बनाने के लिए बनाया गया था, क्योंकि इन राज्यों की वित्तीय और प्रशासनिक व्यवस्थाएँ अन्य राज्यों से भिन्न थीं। इसका लक्ष्य संघीय ढांचे में एकीकरण, वित्तीय समन्वय, और निरंतरता सुनिश्चित करना था।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 278 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा था, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। यह प्रावधान विशेष रूप से भाग B राज्यों के लिए बनाया गया था, जो पूर्ववर्ती रियासतें थीं और जिनका भारत में पूर्ण एकीकरण अभी बाकी था। निरसन का कारण: 7वां संवैधानिक संशोधन(1956): राज्यों के पुनर्गठन(States Reorganisation Act, 1956) के बाद, भाग A, B, और C राज्यों की श्रेणियाँ समाप्त कर दी गईं। सभी राज्य एकसमान हो गए, जिससे अनुच्छेद 278 अप्रासंगिक हो गया। इसके कार्य को अनुच्छेद 270(केंद्र-राज्य कर वितरण) और अनुच्छेद 275(अनुदान-सहायता) ने संभाल लिया।
भारतीय संदर्भ: स्वतंत्रता के बाद, रियासतों का एकीकरण एक जटिल प्रक्रिया थी। अनुच्छेद 278 ने इस प्रक्रिया को वित्तीय समझौतों के माध्यम से आसान बनाया।
अनुच्छेद 278 के प्रमुख तत्व(निरसन से पहले)
केंद्र-राज्य समझौते: केंद्र और भाग B राज्यों के बीच वित्तीय और प्रशासनिक मामलों पर समझौते किए जा सकते थे। इन समझौतों में कर वितरण, अनुदान, और अन्य वित्तीय व्यवस्थाएँ शामिल थीं। उदाहरण(ऐतिहासिक): 1950 में, हैदराबाद राज्य के साथ केंद्र ने कर वितरण और अनुदान पर समझौता किया।
राष्ट्रपति की स्वीकृति: सभी समझौते राष्ट्रपति की स्वीकृति के अधीन थे। यह सुनिश्चित करता था कि समझौते राष्ट्रीय हित में हों। उदाहरण: 1952 में, जम्मू-कश्मीर के साथ वित्तीय समझौते को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिली।
लचीलापन: यह प्रावधान अस्थायी था, जिसे बाद में समाप्त किया जा सकता था। उदाहरण: 1956 में, राज्यों के पुनर्गठन के बाद यह अप्रासंगिक हो गया।
निरसन का प्रभाव: 7वें संशोधन(1956) के बाद, अनुच्छेद 278 को निरसन कर दिया गया। वित्त आयोग और अन्य प्रावधानों(अनुच्छेद 270, 275) ने केंद्र-राज्य वित्तीय व्यवस्थाओं को संभाला। उदाहरण(2025): 2025 में, केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय व्यवस्थाएँ वित्त आयोग की सिफारिशों और GST परिषद के तहत होती हैं।
महत्व(ऐतिहासिक): संघीय ढांचा: रियासतों का भारत में एकीकरण। वित्तीय समन्वय: केंद्र और भाग B राज्यों के बीच वित्तीय व्यवस्था। निरंतरता: रियासतों के लिए अस्थायी समाधान। निरसन की प्रासंगिकता: राज्यों के पुनर्गठन ने एकसमान व्यवस्था बनाई।
प्रमुख विशेषताएँ(निरसन से पहले): समझौते: केंद्र और भाग B राज्यों के बीच। राष्ट्रपति की स्वीकृति: अनिवार्य। वित्तीय व्यवस्था: कर और अनुदान। संघीय ढांचा: एकीकरण।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950-1956: हैदराबाद, मैसूर, और जम्मू-कश्मीर के साथ समझौते। 1956 के बाद: राज्यों के पुनर्गठन के बाद निरसन। 2025 स्थिति: अनुच्छेद 278 का कोई उपयोग नहीं, कार्य अनुच्छेद 270 और 275 के तहत।
8. चुनौतियाँ और विवाद(ऐतिहासिक): केंद्र-राज्य तनाव: रियासतों के एकीकरण पर असहमति। प्रशासनिक जटिलताएँ: समझौतों का कार्यान्वयन। न्यायिक समीक्षा: समझौतों की वैधता पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 270: केंद्र-राज्य कर वितरण। अनुच्छेद 275: राज्यों को अनुदान। अनुच्छेद 280: वित्त आयोग। अनुच्छेद 269A: GST का संग्रह और वितरण।
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