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Article 273 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-05 14:03:23
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 273

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 273
अनुच्छेद 273 भारतीय संविधान के भाग XII(वित्त, संपत्ति, संविदाएँ और वाद) के अध्याय I(वित्त) में आता है। यह जूट और जूट उत्पादों के निर्यात पर शुल्क के बदले अनुदान(Grants in lieu of export duty on jute and jute products) से संबंधित है। यह प्रावधान कुछ राज्यों(जैसे, पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, और उड़ीसा) को जूट और जूट उत्पादों पर निर्यात शुल्क के बदले अनुदान प्रदान करने की व्यवस्था करता है।
"(1) पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, और उड़ीसा राज्यों को जूट और जूट उत्पादों पर निर्यात शुल्क के बदले अनुदान दिए जाएँगे, जैसा कि संसद द्वारा कानून द्वारा निर्धारित किया जाए।
(2) यह अनुदान भारत की संगठित निधि से दिया जाएगा और इसकी राशि वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर निर्धारित की जाएगी।
(3) यह प्रावधान तब तक लागू रहेगा, जब तक संसद अन्यथा निर्देश न दे।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 273 का उद्देश्य उन राज्यों(पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, और उड़ीसा) को वित्तीय सहायता प्रदान करना है, जो जूट और जूट उत्पादों के निर्यात पर निर्भर थे, लेकिन जिनके राजस्व पर केंद्र द्वारा लगाए गए निर्यात शुल्क के कारण प्रभाव पड़ा। यह प्रावधान अनुदान(grants) के रूप में मुआवजा देता है, जो भारत की संगठित निधि से दिया जाता है। इसका लक्ष्य संघीय ढांचे में राज्यों की वित्तीय स्थिरता और निष्पक्षता सुनिश्चित करना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 273 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ।यह भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित था, जिसमें प्रांतों को निर्यात शुल्क के बदले मुआवजा देने की व्यवस्था थी। भारतीय संदर्भ: स्वतंत्रता के समय, जूट उद्योग भारत की अर्थव्यवस्था, विशेष रूप से पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, और उड़ीसा के लिए महत्वपूर्ण था। केंद्र द्वारा जूट पर निर्यात शुल्क लगाने से इन राज्यों के राजस्व पर असर पड़ा, जिसके लिए अनुच्छेद 273 बनाया गया।
प्रासंगिकता: यह प्रावधान ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण था, लेकिन 2025 में जूट उद्योग की घटती प्रासंगिकता और वैश्विक व्यापार परिवर्तनों के कारण इसका उपयोग सीमित हो गया है।
अनुच्छेद 273 के प्रमुख तत्व
खंड(1): अनुदान का प्रावधान: पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, और उड़ीसा को जूट और जूट उत्पादों पर निर्यात शुल्क के बदले अनुदान दिए जाते हैं। यह अनुदान संसद द्वारा बनाए गए कानून के तहत प्रदान किया जाता है। उदाहरण: 1950-1960 के दशक में, पश्चिम बंगाल को जूट निर्यात शुल्क के बदले अनुदान मिला।
खंड(2): भारत की संगठित निधि और वित्त आयोग: अनुदान भारत की संगठित निधि से दिया जाता है। इसकी राशि वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर निर्धारित होती है। उदाहरण: 2020 में, 15वें वित्त आयोग ने इन राज्यों के लिए अनुदान की सिफारिश की।
खंड(3): संसद की शक्ति: यह प्रावधान तब तक लागू रहता है, जब तक संसद इसे रद्द या संशोधित न करे। यह लचीलापन केंद्र को प्रावधान को समाप्त करने की शक्ति देता है, यदि जूट उद्योग अप्रासंगिक हो जाए। उदाहरण: 2025 में, जूट निर्यात की घटती मात्रा के कारण इस प्रावधान की प्रासंगिकता पर बहस।
महत्व: संघीय ढांचा: केंद्र और विशिष्ट राज्यों के बीच वित्तीय समन्वय। वित्तीय सहायता: जूट-निर्भर राज्यों की आर्थिक स्थिरता। वित्त आयोग की भूमिका: निष्पक्ष अनुदान वितरण। न्यायिक समीक्षा: अनुदान की वैधता और उपयोग पर कोर्ट की निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: अनुदान: जूट निर्यात शुल्क के बदले। लाभार्थी राज्य: पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, उड़ीसा। वित्त आयोग: राशि निर्धारण। संघीय ढांचा: वित्तीय समन्वय।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950-1980 के दशक: पश्चिम बंगाल और असम को जूट निर्यात के लिए अनुदान। 2000 के दशक: जूट उद्योग की घटती प्रासंगिकता के कारण अनुदान कम हुआ। 2025 स्थिति: जूट निर्यात की मात्रा कम होने से अनुदान की प्रासंगिकता सीमित।
चुनौतियाँ और विवाद: प्रासंगिकता का अभाव: वैश्विक व्यापार में जूट की माँग कम होने से प्रावधान अप्रासंगिक। केंद्र-राज्य तनाव: अनुदान राशि पर राज्यों की असहमति। न्यायिक समीक्षा: अनुदान वितरण की वैधता पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 266: संगठित निधि और लोक लेखा। अनुच्छेद 269A: GST का संग्रह और वितरण। अनुच्छेद 270: केंद्र-राज्य कर वितरण। अनुच्छेद 280: वित्त आयोग।
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