Article 266 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-05 11:17:21
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 266
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 266
अनुच्छेद 266 भारतीय संविधान के भाग XII(वित्त, संपत्ति, संविदाएँ और वाद) के अध्याय I(वित्त) में आता है। यह संगठित निधि, लोक लेखा, और भारत या राज्यों की धनराशियों(Consolidated Funds and public accounts of India and of the States) से संबंधित है। यह प्रावधान केंद्र और राज्यों की संगठित निधि(Consolidated Fund) और लोक लेखा(Public Account) की स्थापना और उनके उपयोग को परिभाषित करता है।
"(1) भारत सरकार को प्राप्त सभी राजस्व, उसके द्वारा लिए गए सभी ऋण, और उसके द्वारा प्राप्त सभी धनराशियाँ, जो इस संविधान के अधीन या संसद के कानून द्वारा देय हों, भारत की संगठित निधि का निर्माण करेंगी। इसी प्रकार, प्रत्येक राज्य के लिए संगठित निधि होगी।
(2) भारत सरकार या राज्य सरकार को न्यासी के रूप में प्राप्त सभी धनराशियाँ, जैसे कि भविष्य निधि, जमा राशियाँ, आदि, भारत या राज्य के लोक लेखा में जमा की जाएँगी।
(3) भारत की संगठित निधि या राज्य की संगठित निधि से कोई भी धनराशि इस संविधान के उपबंधों के अनुसार ही व्यय की जाएगी।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 266 भारत की संगठित निधि और राज्यों की संगठित निधि के साथ-साथ लोक लेखा की स्थापना और उनके उपयोग को परिभाषित करता है। यह सुनिश्चित करता है कि सरकारी राजस्व और व्यय एक व्यवस्थित और पारदर्शी ढांचे के तहत हों। इसका लक्ष्य वित्तीय पारदर्शिता, संघीय ढांचे में वित्तीय समन्वय, और लोक वित्त प्रबंधन को सुनिश्चित करना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 266 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 1950 में लागू हुआ। यह भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित है, जिसमें केंद्र और प्रांतों के लिए वित्तीय निधियों की व्यवस्था थी। भारतीय संदर्भ: स्वतंत्रता के बाद, भारत को केंद्र और राज्यों के लिए एक स्पष्ट वित्तीय प्रणाली की आवश्यकता थी ताकि राजस्व और व्यय को व्यवस्थित किया जा सके। प्रासंगिकता: यह प्रावधान केंद्र और राज्यों के बजट प्रबंधन और वित्तीय जवाबदेही का आधार है।
अनुच्छेद 266 के प्रमुख तत्व
खंड(1): संगठित निधि: भारत की संगठित निधि और राज्य की संगठित निधि में शामिल हैं: सभी राजस्व(जैसे, आयकर, GST, उत्पाद शुल्क)। सभी ऋण(जैसे, सरकारी बांड)। अन्य प्राप्तियाँ(जैसे, संपत्ति बिक्री)। इन निधियों से व्यय के लिए संसद(केंद्र के लिए) या राज्य विधानमंडल(राज्यों के लिए) की मंजूरी आवश्यक है। उदाहरण: 2025 में, भारत की संगठित निधि में डिजिटल लेनदेन कर और GST शामिल हैं।
खंड(2): लोक लेखा: लोक लेखा में वे धनराशियाँ शामिल होती हैं जो सरकार न्यासी(trustee) के रूप में रखती है, जैसे: भविष्य निधि(जैसे, कर्मचारी भविष्य निधि)। जमा राशियाँ(जैसे, सुरक्षा जमा)। अन्य विशेष निधियाँ। इनके लिए संसद या विधानमंडल की मंजूरी की आवश्यकता नहीं होती। उदाहरण: 2025 में, डिजिटल भविष्य निधि(EPF) लोक लेखा में जमा की जाती है।
खंड(3): व्यय की शर्त: संगठित निधि से कोई भी धनराशि केवल संविधान के उपबंधों के अनुसार ही व्यय की जा सकती है। यह सुनिश्चित करता है कि व्यय विधायी स्वीकृति के अधीन हो। उदाहरण: 2025 में, रक्षा बजट के लिए संगठित निधि से व्यय संसद की मंजूरी के बाद किया जाता है।
महत्व: वित्तीय पारदर्शिता: राजस्व और व्यय का स्पष्ट वर्गीकरण। संघीय ढांचा: केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय समन्वय। जवाबदेही: विधायी स्वीकृति के बिना व्यय पर रोक। न्यायिक समीक्षा: निधियों के उपयोग की वैधता पर कोर्ट की निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: संगठित निधि: राजस्व, ऋण, और व्यय। लोक लेखा: न्यासी धनराशियाँ। संघीय ढांचा: वित्तीय समन्वय। पारदर्शिता: विधायी स्वीकृति।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के दशक: आयकर और उत्पाद शुल्क संगठित निधि में शामिल। 2010 के दशक: GST लागू होने के बाद संगठित निधि में वृद्धि। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में डिजिटल कर(जैसे, क्रिप्टोकरेंसी कर) संगठित निधि में शामिल।
चुनौतियाँ और विवाद: केंद्र-राज्य तनाव: संगठित निधि में राजस्व बंटवारे पर विवाद(जैसे, GST)। लोक लेखा का प्रबंधन: न्यासी धनराशियों के दुरुपयोग की आशंका। न्यायिक समीक्षा: निधियों के उपयोग पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 264: संगठित निधि और लोक लेखा की व्याख्या। अनुच्छेद 265: कानून के बिना कराधान पर निषेध। अनुच्छेद 267: आकस्मिक निधि। अनुच्छेद 280: वित्त आयोग।
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jp Singh
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