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Article 265 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-05 11:15:00
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Article 264 of the Indian Constitution
अनुच्छेद 265 भारतीय संविधान के भाग XII(वित्त, संपत्ति, संविदाएँ और वाद) के अध्याय I(वित्त) में आता है। यह कानून के बिना कराधान पर निषेध(Taxes not to be imposed save by authority of law) से संबंधित है। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी कर केवल कानून के प्राधिकार से ही लगाया या संग्रह किया जा सकता है, जिससे कराधान में मनमानी और दुरुपयोग को रोका जा सके।
"कोई कर तब तक नहीं लगाया या संग्रह किया जाएगा, जब तक कि वह कानून के प्राधिकार से न हो।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 265 यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी कर(tax) केवल संसद या राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए कानून के प्राधिकार से ही लगाया या संग्रह किया जा सकता है। इसका लक्ष्य कराधान में पारदर्शिता, कानून का शासन, और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना है। यह सरकार को बिना विधायी स्वीकृति के कर लगाने से रोकता है, जिससे मनमानी और दुरुपयोग पर अंकुश लगता है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 265 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 1950 में लागू हुआ। यह मैग्ना कार्टा(1215) और अन्य लोकतांत्रिक परंपराओं से प्रेरित है, जो यह सुनिश्चित करती हैं कि कराधान केवल विधायी प्राधिकार से हो। भारतीय संदर्भ: स्वतंत्रता के बाद, भारत को एक ऐसी प्रणाली की आवश्यकता थी जो कराधान को पारदर्शी और जवाबदेह बनाए। प्रासंगिकता: यह प्रावधान कराधान की वैधता को सुनिश्चित करता है और नागरिकों को गैर-कानूनी करों से बचाता है।
अनुच्छेद 265 के प्रमुख तत्व
कानून के प्राधिकार की आवश्यकता: कोई भी कर केवल तभी लगाया या संग्रह किया जा सकता है, जब वह संसद या राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए कानून के तहत हो। बिना कानूनी प्राधिकार के कर लगाना या संग्रह करना असंवैधानिक है। उदाहरण: 2025 में, GST को GST अधिनियम, 2017 के तहत लगाया गया, जो अनुच्छेद 265 के अनुरूप है।
कर और शुल्क में अंतर: कर(tax) सामान्य राजस्व के लिए होता है, जबकि शुल्क(fee) विशिष्ट सेवाओं के लिए लिया जाता है। अनुच्छेद 265 केवल कर पर लागू होता है, लेकिन शुल्क भी कानूनी प्राधिकार के बिना नहीं लिए जा सकते। उदाहरण: लाइसेंस शुल्क वैध है, लेकिन बिना कानूनी प्राधिकार के कोई शुल्क अवैध होगा।
नागरिकों की सुरक्षा: यह प्रावधान नागरिकों को गैर-कानूनी कराधान से बचाता है और सरकार को जवाबदेह बनाता है। उदाहरण: यदि कोई स्थानीय निकाय बिना विधायी स्वीकृति के कर लगाता है, तो वह अनुच्छेद 265 का उल्लंघन होगा।
महत्व: कानून का शासन: कराधान में विधायी प्राधिकार अनिवार्य। नागरिक अधिकार: गैर-कानूनी करों से सुरक्षा। संघीय ढांचा: केंद्र और राज्यों के बीच कराधान शक्तियों का स्पष्ट बंटवारा। न्यायिक समीक्षा: करों की वैधता पर कोर्ट की निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: कानूनी प्राधिकार: कराधान के लिए आवश्यक। नागरिक सुरक्षा: गैर-कानूनी करों पर रोक। संघीय ढांचा: केंद्र-राज्य कर शक्तियाँ। पारदर्शिता: विधायी प्रक्रिया।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के दशक: आयकर अधिनियम, 1961 के तहत कराधान वैध माना गया। 2010 के दशक: GST लागू होने से पहले राज्यों के करों की वैधता पर विवाद। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में डिजिटल लेनदेन कर(जैसे, क्रिप्टोकरेंसी कर) को कानूनी प्राधिकार के तहत लागू किया गया।
चुनौतियाँ और विवाद: केंद्र-राज्य तनाव: कर शक्तियों के बंटवारे पर विवाद(जैसे, GST पर केंद्र-राज्य असहमति)। गैर-कानूनी कर: स्थानीय निकायों द्वारा बिना प्राधिकार के कर लगाने की शिकायतें। न्यायिक समीक्षा: करों की वैधता पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 266: संगठित निधि और लोक लेखा। अनुच्छेद 267: आकस्मिक निधि। अनुच्छेद 280: वित्त आयोग। सातवीं अनुसूची: कराधान की शक्तियाँ।
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