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Article 263 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-05 11:08:10
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 263

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 263
अनुच्छेद 263 भारतीय संविधान के भाग XI(केंद्र और राज्यों के बीच संबंध) के अध्याय II(प्रशासनिक संबंध) में आता है। यह अंतर-राज्य परिषद(Provisions with respect to an inter-State Council) से संबंधित है। यह प्रावधान राष्ट्रपति को एक अंतर-राज्य परिषद की स्थापना करने की शक्ति देता है, जो केंद्र और राज्यों के बीच या विभिन्न राज्यों के बीच विवादों की जाँच और सलाह देने के साथ-साथ समन्वय को बढ़ावा देती है।
"यदि किसी समय राष्ट्रपति को यह समीचीन प्रतीत हो कि सार्वजनिक हित में अंतर-राज्य परिषद की स्थापना की जानी चाहिए, तो वह आदेश द्वारा ऐसी परिषद की स्थापना कर सकता है और इसके कर्तव्यों को परिभाषित कर सकता है, विशेष रूप से:
(क) केंद्र और राज्यों के बीच या विभिन्न राज्यों के बीच विवादों की जाँच और सलाह देना;
(ख) सामान्य हित के विषयों पर जाँच और चर्चा करना;
(ग) सामान्य हित की नीतियों पर एकरूपता के लिए सिफारिशें करना।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 263 राष्ट्रपति को अंतर-राज्य परिषद की स्थापना करने की शक्ति देता है, जो केंद्र और राज्यों के बीच या विभिन्न राज्यों के बीच विवादों को हल करने, सामान्य हित के विषयों पर चर्चा करने, और नीतिगत एकरूपता के लिए सिफारिशें करने का कार्य करती है। इसका लक्ष्य सहकारी संघवाद, केंद्र-राज्य समन्वय, और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देना है। यह परिषद एक सलाहकारी निकाय है, जिसके सुझाव बाध्यकारी नहीं हैं।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 263 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 1950 में लागू हुआ। यह भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित नहीं है, बल्कि भारत के संघीय ढांचे की अनूठी आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर बनाया गया। भारतीय संदर्भ: स्वतंत्रता के बाद, केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय और विवाद समाधान के लिए एक तंत्र की आवश्यकता थी। अंतर-राज्य परिषद की स्थापना 1990 में सरकारिया आयोग(1988) की सिफारिशों के आधार पर की गई। प्रासंगिकता: यह प्रावधान केंद्र और राज्यों के बीच नीतिगत और प्रशासनिक समन्वय को बढ़ावा देता है।
अनुच्छेद 263 के प्रमुख तत्व
अंतर-राज्य परिषद की स्थापना: राष्ट्रपति आदेश द्वारा अंतर-राज्य परिषद की स्थापना कर सकता है, यदि वह सार्वजनिक हित में समीचीन समझता है। परिषद के कर्तव्यों को राष्ट्रपति द्वारा परिभाषित किया जाता है। उदाहरण: 1990 में, अंतर-राज्य परिषद की स्थापना की गई, जिसमें प्रधानमंत्री, केंद्रीय गृह मंत्री, वित्त मंत्री, और सभी राज्यों के मुख्यमंत्री शामिल हैं।
परिषद के कर्तव्य
(क) विवादों की जाँच और सलाह: केंद्र और राज्यों के बीच या विभिन्न राज्यों के बीच विवादों की जाँच करना और सलाह देना। उदाहरण: 2025 में, परिषद ने जलवायु परिवर्तन नीतियों पर केंद्र-राज्य विवाद पर सलाह दी।
(ख) सामान्य हित के विषयों पर चर्चा: सामान्य हित के विषयों(जैसे, शिक्षा, स्वास्थ्य) पर जाँच और चर्चा। उदाहरण: डिजिटल भारत पहल के तहत डिजिटल शिक्षा नीति पर चर्चा।
(ग) नीतिगत एकरूपता: सामान्य हित की नीतियों पर एकरूपता के लिए सिफारिशें करना। उदाहरण: 2025 में, डिजिटल स्वास्थ्य नीति पर एकरूपता की सिफारिश।
महत्व: सहकारी संघवाद: केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना। विवाद समाधान: विवादों का गैर-न्यायिक समाधान। नीतिगत एकरूपता: राष्ट्रीय स्तर पर नीतियों में समन्वय। सलाहकारी भूमिका: परिषद के सुझाव बाध्यकारी नहीं हैं, लेकिन प्रभावशाली हैं।
प्रमुख विशेषताएँ: राष्ट्रपति की शक्ति: परिषद की स्थापना। सलाहकारी निकाय: विवाद समाधान और नीति समन्वय। संघीय ढांचा: सहकारी संघवाद। सार्वजनिक हित: राष्ट्रीय एकता।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1990: सरकारिया आयोग की सिफारिशों के आधार पर अंतर-राज्य परिषद की स्थापना। 2000 के दशक: GST लागू करने के लिए केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में डिजिटल शिक्षा, स्वास्थ्य, और पर्यावरण नीतियों पर समन्वय।
चुनौतियाँ और विवाद: प्रभावशीलता: परिषद के सुझाव बाध्यकारी नहीं होने के कारण कार्यान्वयन में कमी। केंद्र-राज्य तनाव: राज्यों द्वारा केंद्र के प्रभाव पर आपत्ति। नियमित बैठकें: परिषद की बैठकें अनियमित होने की शिकायत।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 256: राज्यों का दायित्व। अनुच्छेद 257: केंद्र के निर्देश। अनुच्छेद 258: केंद्र द्वारा शक्ति हस्तांतरण। अनुच्छेद 258A: राज्यों द्वारा शक्ति हस्तांतरण।
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