Article 262 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-05 11:06:18
searchkre.com@gmail.com /
8392828781
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 262
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 262
अनुच्छेद 262 भारतीय संविधान के भाग XI(केंद्र और राज्यों के बीच संबंध) के अध्याय II(प्रशासनिक संबंध) में आता है। यह अंतर-राज्यीय नदियों और नदी घाटियों से संबंधित विवादों(Adjudication of disputes relating to waters of inter-State rivers or river valleys) से संबंधित है। यह प्रावधान संसद को अंतर-राज्यीय नदियों और नदी घाटियों के जल विवादों को हल करने के लिए कानून बनाने और ऐसे विवादों पर न्यायिक क्षेत्राधिकार को सीमित करने की शक्ति देता है।
"(1) संसद, कानून द्वारा, अंतर-राज्यीय नदियों या नदी घाटियों के जल के उपयोग, वितरण, या नियंत्रण से संबंधित किसी विवाद या शिकायत के समाधान के लिए उपबंध कर सकती है।
(2) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, संसद, कानून द्वारा, ऐसे विवादों या शिकायतों पर विचार करने के लिए किसी प्राधिकरण की स्थापना कर सकती है और यह उपबंध कर सकती है कि उच्चतम न्यायालय या किसी अन्य न्यायालय का ऐसे विवादों पर क्षेत्राधिकार नहीं होगा।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 262 संसद को अंतर-राज्यीय नदियों और नदी घाटियों के जल के उपयोग, वितरण, या नियंत्रण से संबंधित विवादों को हल करने के लिए कानून बनाने की शक्ति देता है। यह संसद को ऐसे विवादों के लिए विशेष प्राधिकरण(जैसे, जल विवाद अधिकरण) स्थापित करने और उच्चतम न्यायालय या अन्य न्यायालयों के क्षेत्राधिकार को सीमित करने की अनुमति देता है। इसका लक्ष्य अंतर-राज्यीय जल विवादों का त्वरित और निष्पक्ष समाधान सुनिश्चित करना, संघीय ढांचे में समन्वय को बढ़ावा देना, और राष्ट्रीय हित की रक्षा करना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 262 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 1950 में लागू हुआ। यह भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित है, जिसमें प्रांतों के बीच जल विवादों के समाधान के लिए केंद्र की भूमिका थी। भारतीय संदर्भ: भारत में अंतर-राज्यीय नदियाँ(जैसे, कावेरी, नर्मदा, यमुना) राज्यों के बीच जल बंटवारे को लेकर विवादों का प्रमुख कारण रही हैं। इस प्रावधान की आवश्यकता इसलिए थी ताकि केंद्र इन विवादों को निष्पक्ष और प्रभावी ढंग से हल कर सके। प्रासंगिकता: यह प्रावधान जल संसाधनों के प्रबंधन और राज्यों के बीच समन्वय के लिए महत्वपूर्ण है।
अनुच्छेद 262 के प्रमुख तत्व
खंड(1): संसद की कानून बनाने की शक्ति: संसद को अंतर-राज्यीय नदियों और नदी घाटियों के जल के उपयोग, वितरण, या नियंत्रण से संबंधित विवादों या शिकायतों के समाधान के लिए कानून बनाने का अधिकार है। यह केंद्र को जल विवादों में मध्यस्थता करने की शक्ति देता है। उदाहरण: अंतर-राज्यीय जल विवाद अधिनियम, 1956 के तहत जल विवाद अधिकरणों की स्थापना।
खंड(2): न्यायिक क्षेत्राधिकार का निषेध: संसद, कानून द्वारा, ऐसे विवादों के लिए विशेष प्राधिकरण(जैसे, अधिकरण) स्थापित कर सकती है और उच्चतम न्यायालय या अन्य न्यायालयों के क्षेत्राधिकार को निषिद्ध कर सकती है। यह जल विवादों को विशेष प्रक्रिया के तहत हल करने की अनुमति देता है। उदाहरण: 2025 में, कावेरी जल विवाद अधिकरण का निर्णय अंतिम माना गया, और उच्चतम न्यायालय का क्षेत्राधिकार सीमित था।
महत्व: जल संसाधन प्रबंधन: अंतर-राज्यीय नदियों के जल का निष्पक्ष वितरण। संघीय समन्वय: राज्यों के बीच विवादों का समाधान। केंद्र की भूमिका: राष्ट्रीय हित में मध्यस्थता। न्यायिक समीक्षा: अधिकरणों के निर्णयों की सीमित समीक्षा।
प्रमुख विशेषताएँ: संसद की शक्ति: जल विवादों पर कानून। विशेष प्राधिकरण: अधिकरणों की स्थापना। न्यायिक निषेध: उच्चतम न्यायालय का सीमित क्षेत्राधिकार। संघीय ढांचा: केंद्र-राज्य समन्वय।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1956: अंतर-राज्यीय जल विवाद अधिनियम लागू, जिसके तहत नर्मदा, कावेरी, और गोदावरी जैसे विवादों के लिए अधिकरण स्थापित किए गए। 2000 के दशक: कावेरी जल विवाद अधिकरण का गठन और निर्णय। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में जल प्रबंधन और डिजिटल निगरानी के लिए अधिकरणों का उपयोग।
चुनौतियाँ और विवाद: राज्यों की असहमति: जल बंटवारे पर राज्यों के बीच तनाव(जैसे, कावेरी विवाद में तमिलनाडु और कर्नाटक)। अधिकरणों की प्रभावशीलता: निर्णयों के कार्यान्वयन में देरी। न्यायिक क्षेत्राधिकार: उच्चतम न्यायालय की सीमित भूमिका पर विवाद।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 246: विधायी शक्तियों का बंटवारा। सातवीं अनुसूची: राज्य सूची(प्रविष्टि 17: जल)। अंतर-राज्यीय जल विवाद अधिनियम, 1956: अधिकरणों की स्थापना।
Conclusion
Thanks For Read
jp Singh
searchkre.com@gmail.com
8392828781