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Article 261 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-05 10:56:01
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 261

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 261
अनुच्छेद 261 भारतीय संविधान के भाग XI(केंद्र और राज्यों के बीच संबंध) के अध्याय II(प्रशासनिक संबंध) में आता है। यह सार्वजनिक अधिनियमों, अभिलेखों, और न्यायिक कार्यवाहियों की मान्यता(Public acts, records and judicial proceedings) से संबंधित है। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि केंद्र और राज्यों के सार्वजनिक अधिनियम, अभिलेख, और न्यायिक कार्यवाहियाँ पूरे भारत में मान्य हों और उनका पूर्ण विश्वास और श्रेय(full faith and credit) दिया जाए।
"(1) भारत के पूरे क्षेत्र में केंद्र और राज्यों के सार्वजनिक अधिनियमों, अभिलेखों, और न्यायिक कार्यवाहियों को पूर्ण विश्वास और श्रेय दिया जाएगा।
(2) इन अधिनियमों, अभिलेखों, और कार्यवाहियों की प्रामाणिकता सिद्ध करने का तरीका संसद के कानून द्वारा निर्धारित किया जा सकता है।
(3) किसी राज्य में की गई न्यायिक कार्यवाहियों के अंतिम निर्णय और आदेश भारत के किसी अन्य भाग में प्रवर्तनीय होंगे, जैसा कि संसद के कानून द्वारा निर्धारित हो।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 261 यह सुनिश्चित करता है कि केंद्र और राज्यों द्वारा बनाए गए सार्वजनिक अधिनियम(कानून), अभिलेख(दस्तावेज़), और न्यायिक कार्यवाहियाँ(न्यायिक निर्णय) पूरे भारत में मान्य हों और उन्हें पूर्ण विश्वास और श्रेय(full faith and credit) दिया जाए। यह प्रावधान राष्ट्रीय एकता, प्रशासनिक एकरूपता, और संघीय ढांचे में केंद्र-राज्य समन्वय को बढ़ावा देता है। इसका लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि राज्यों के बीच कानूनी और प्रशासनिक दस्तावेज़ों की वैधता पर कोई विवाद न हो।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 261 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 1950 में लागू हुआ। यह अमेरिकी संविधान(Article IV, Section 1) से प्रेरित है, जो राज्यों के बीच "पूर्ण विश्वास और श्रेय" की अवधारणा को लागू करता है। भारतीय संदर्भ: भारत के संघीय ढांचे में, विभिन्न राज्यों और केंद्र के बीच कानूनी और प्रशासनिक दस्तावेज़ों की एकरूपता और मान्यता आवश्यक थी। प्रासंगिकता: यह प्रावधान राज्यों के बीच आपसी विश्वास और कानूनी दस्तावेज़ों की स्वीकार्यता को सुनिश्चित करता है।
अनुच्छेद 261 के प्रमुख तत्व
खंड(1): पूर्ण विश्वास और श्रेय: केंद्र और राज्यों के सार्वजनिक अधिनियम(कानून), अभिलेख(जैसे, जन्म/मृत्यु प्रमाणपत्र), और न्यायिक कार्यवाहियाँ(न्यायिक निर्णय) को पूरे भारत में पूर्ण विश्वास और श्रेय दिया जाएगा। यह सुनिश्चित करता है कि एक राज्य में जारी दस्तावेज़ या निर्णय दूसरे राज्य में मान्य हों। उदाहरण: 2025 में, महाराष्ट्र में जारी जन्म प्रमाणपत्र को कर्नाटक में मान्यता प्राप्त होगी।
खंड(2): प्रामाणिकता का तरीका: इन अधिनियमों, अभिलेखों, और कार्यवाहियों की प्रामाणिकता सिद्ध करने का तरीका संसद के कानून द्वारा निर्धारित किया जा सकता है। यह प्रक्रियात्मक एकरूपता सुनिश्चित करता है। उदाहरण: भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 के तहत अभिलेखों की प्रामाणिकता सिद्ध की जाती है।
खंड(3): निर्णयों का प्रवर्तन: किसी राज्य में की गई न्यायिक कार्यवाहियों के अंतिम निर्णय और आदेश भारत के किसी अन्य भाग में प्रवर्तनीय होंगे, जैसा कि संसद के कानून द्वारा निर्धारित हो। उदाहरण: 2025 में, दिल्ली हाई कोर्ट का एक निर्णय तमिलनाडु में लागू किया जा सकता है।
महत्व: राष्ट्रीय एकता: राज्यों के बीच कानूनी और प्रशासनिक एकरूपता। प्रशासनिक दक्षता: दस्तावेज़ों और निर्णयों की मान्यता से विवादों का समाधान। संघीय समन्वय: केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग। न्यायिक समीक्षा: प्रामाणिकता और प्रवर्तन की वैधता पर कोर्ट की निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: पूर्ण विश्वास और श्रेय: अधिनियमों, अभिलेखों, और निर्णयों को मान्यता। प्रामाणिकता: संसद द्वारा निर्धारित तरीका। प्रवर्तन: निर्णयों का राष्ट्रीय स्तर पर लागू होना। संघीय ढांचा: केंद्र-राज्य समन्वय।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के दशक: राज्यों के बीच जन्म/मृत्यु प्रमाणपत्रों की मान्यता। 2010 के दशक: विभिन्न राज्यों के हाई कोर्ट के निर्णयों का प्रवर्तन। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में डिजिटल अभिलेखों(जैसे, डिजिटल जन्म प्रमाणपत्र) की मान्यता।
चुनौतियाँ और विवाद: अंतर-राज्य विवाद: दस्तावेज़ों की प्रामाणिकता पर राज्यों के बीच असहमति। प्रक्रियात्मक जटिलताएँ: प्रामाणिकता और प्रवर्तन की प्रक्रिया में देरी। न्यायिक समीक्षा: निर्णयों और अभिलेखों की वैधता पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 256: राज्यों का दायित्व। अनुच्छेद 257: केंद्र के निर्देश। अनुच्छेद 258: केंद्र द्वारा शक्ति हस्तांतरण। भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872: अभिलेखों की प्रामाणिकता।
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