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Article 251 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-05 10:34:05
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 251

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 251
अनुच्छेद 251 भारतीय संविधान के भाग XI(केंद्र और राज्यों के बीच विधायी संबंध) में आता है। यह अनुच्छेद 249 और 250 के तहत बनाई गई विधियों और राज्य विधानमंडल की विधियों के बीच असंगति(Inconsistency between laws made by Parliament under Articles 249 and 250 and laws made by the Legislatures of States) से संबंधित है। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि यदि संसद द्वारा अनुच्छेद 249(राष्ट्रीय हित में) या अनुच्छेद 250(राष्ट्रीय आपातकाल में) के तहत बनाई गई विधि और राज्य विधानमंडल की विधि के बीच कोई असंगति हो, तो संसद की विधि प्रबल होगी।
"अनुच्छेद 249 या अनुच्छेद 250 के अधीन संसद द्वारा बनाई गई कोई विधि और किसी राज्य के विधानमंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि के बीच असंगति होने पर, संसद द्वारा बनाई गई विधि प्रबल होगी, और उस सीमा तक राज्य की विधि अप्रवर्तनीय होगी, लेकिन यह तब तक प्रभावी रहेगी जब तक संसद की विधि प्रभावी है।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 251 यह सुनिश्चित करता है कि अनुच्छेद 249(राष्ट्रीय हित में राज्य सूची पर संसद की विधि) या अनुच्छेद 250(राष्ट्रीय आपातकाल में राज्य सूची पर संसद की विधि) के तहत बनाई गई संसद की विधियाँ राज्य विधानमंडल की विधियों पर प्रबल हों, यदि उनके बीच कोई असंगति हो। यह केंद्र की विधायी प्रभुता को राष्ट्रीय हित या आपातकाल में बनाए रखता है। इसका लक्ष्य संघीय ढांचे में केंद्र और राज्यों के बीच संघर्ष को हल करना और राष्ट्रीय एकता सुनिश्चित करना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 251 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 1950 में लागू हुआ। यह भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित है, जिसमें केंद्र की विधियों को प्रांतीय विधियों पर प्राथमिकता दी गई थी। भारतीय संदर्भ: भारत के संघीय ढांचे में केंद्र को राष्ट्रीय हित और आपातकाल में प्रभुता देना आवश्यक था ताकि नीतिगत एकरूपता बनी रहे। प्रासंगिकता: यह प्रावधान राष्ट्रीय संकट या नीतिगत एकरूपता के दौरान केंद्र की विधियों को प्रभावी बनाता है।
अनुच्छेद 251 के प्रमुख तत्व
संसद की विधियों की प्रबलता: यदि अनुच्छेद 249(राष्ट्रीय हित में राज्य सूची पर विधि) या अनुच्छेद 250(राष्ट्रीय आपातकाल में राज्य सूची पर विधि) के तहत बनाई गई संसद की विधि और राज्य विधानमंडल की विधि के बीच असंगति हो, तो संसद की विधि प्रबल होगी। राज्य की विधि उस सीमा तक अप्रवर्तनीय होगी, जितनी असंगति है। उदाहरण: 2025 में, यदि संसद ने आपातकाल में स्वास्थ्य नीति(राज्य सूची) पर विधि बनाई और यह किसी राज्य की विधि से टकराती है, तो संसद की विधि लागू होगी।
अस्थायी प्रभाव: राज्य की विधि केवल तब तक अप्रवर्तनीय रहती है, जब तक संसद की विधि प्रभावी है। संसद की विधि के निरसन या समाप्ति के बाद, राज्य की विधि पुनः प्रभावी हो सकती है। उदाहरण: 1975 के आपातकाल में संसद की विधि समाप्त होने के बाद राज्य की पुलिस नीति पुनः लागू हुई।
महत्व: केंद्र की प्रभुता: राष्ट्रीय हित और आपातकाल में संसद की प्राथमिकता। संघीय संतुलन: अस्थायी हस्तक्षेप के साथ राज्यों की स्वायत्तता। नीतिगत एकरूपता: राष्ट्रीय संकट में एकसमान नीतियाँ। न्यायिक समीक्षा: असंगति और वैधता पर कोर्ट की निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: संसद की प्रबलता: अनुच्छेद 249 और 250 की विधियाँ। असंगति: राज्य विधियों पर प्रभाव। अस्थायी प्रभाव: संसद की विधि की अवधि तक। संघीय ढांचा: केंद्र की प्राथमिकता।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1975(राष्ट्रीय आपातकाल): संसद ने पुलिस और स्थानीय शासन(राज्य सूची) पर विधियाँ बनाईं, जो राज्यों की विधियों पर प्रबल हुईं। 2010 के दशक: पर्यावरण नीतियों पर केंद्र की विधियाँ प्रबल। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में काल्पनिक स्वास्थ्य संकट के लिए संसद की विधियाँ राज्यों पर प्रबल।
चुनौतियाँ और विवाद: केंद्र-राज्य तनाव: राज्यों द्वारा केंद्र के हस्तक्षेप पर आपत्ति। आपातकाल का दुरुपयोग: 1975 के आपातकाल में अनुच्छेद 250 और 251 के उपयोग पर विवाद। न्यायिक समीक्षा: असंगति और विधियों की वैधता पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 249: राष्ट्रीय हित में संसद की शक्ति। अनुच्छेद 250: आपातकाल में संसद की शक्ति। अनुच्छेद 254: समवर्ती सूची में असंगति। सातवीं अनुसूची: तीन सूचियाँ।
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