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Article 249 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-05 10:31:01
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 249

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 249
अनुच्छेद 249 भारतीय संविधान के भाग XI(केंद्र और राज्यों के बीच विधायी संबंध) में आता है। यह राष्ट्रीय हित में संसद को राज्य सूची के विषयों पर विधि बनाने की शक्ति(Power of Parliament to legislate with respect to a matter in the State List in the national interest) से संबंधित है। यह प्रावधान संसद को विशेष परिस्थितियों में सातवीं अनुसूची की राज्य सूची के विषयों पर विधि बनाने का अधिकार देता है, यदि राज्यसभा राष्ट्रीय हित में इसके लिए प्रस्ताव पारित करती है। यह केंद्र की विधायी शक्ति को सुदृढ़ करता है।
"(1) यदि राज्यसभा ने, अपने कुल सदस्यों के दो-तिहाई या अधिक मतों से, यह घोषणा करने वाला प्रस्ताव पारित किया है कि राष्ट्रीय हित में यह आवश्यक या समीचीन है कि संसद सातवीं अनुसूची की द्वितीय सूची(राज्य सूची) में विनिर्दिष्ट किसी विषय के संबंध में विधि बनाए, तो संसद को उस विषय के संबंध में भारत के पूरे क्षेत्र या उसके किसी भाग के लिए विधि बनाने का अधिकार होगा।
(2) ऐसा कोई प्रस्ताव एक वर्ष की अवधि के लिए प्रभावी होगा, लेकिन इसे समय-समय पर नवीकरण किया जा सकता है।
(3) इस अनुच्छेद के तहत बनाई गई विधि उस समय से एक वर्ष तक प्रभावी रहेगी, जब तक वह निरसन या संशोधन न हो।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 249 संसद को राष्ट्रीय हित में राज्य सूची के विषयों(जैसे, कृषि, पुलिस, स्थानीय शासन) पर विधि बनाने की शक्ति देता है, यदि राज्यसभा इसके लिए दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित करती है। यह प्रावधान संघीय ढांचे में केंद्र को असाधारण परिस्थितियों में राज्य के क्षेत्र में हस्तक्षेप करने की अनुमति देता है। इसका लक्ष्य राष्ट्रीय एकता, सुरक्षा, और आपातकालीन स्थिति में एकरूपता सुनिश्चित करना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 249 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 1950 में लागू हुआ। यह भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित है, जिसमें केंद्र को विशेष परिस्थितियों में प्रांतीय विषयों पर विधायी शक्ति थी। भारतीय संदर्भ: भारत के संघीय ढांचे में केंद्र को राष्ट्रीय हित में हस्तक्षेप की शक्ति देना आवश्यक था, विशेष रूप से राष्ट्रीय संकट या नीतिगत एकरूपता के लिए। प्रासंगिकता: यह प्रावधान केंद्र को राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों(जैसे, पर्यावरण, स्वास्थ्य संकट) पर राज्य सूची के विषयों को नियंत्रित करने की अनुमति देता है।
अनुच्छेद 249 के प्रमुख तत्व
खंड(1): राष्ट्रीय हित में संसद की शक्ति: राज्यसभा को दो-तिहाई बहुमत से यह घोषणा करने का अधिकार है कि राष्ट्रीय हित में संसद को राज्य सूची के किसी विषय पर विधि बनानी चाहिए। इसके बाद संसद उस विषय पर भारत के पूरे क्षेत्र या उसके किसी भाग के लिए विधि बना सकती है। उदाहरण: 2025 में, राज्यसभा ने पर्यावरण संरक्षण(राज्य सूची, प्रविष्टि 17: जल) पर राष्ट्रीय नीति के लिए प्रस्ताव पारित किया, और संसद ने विधि बनाई।
खंड(2): प्रस्ताव की अवधि: राज्यसभा का प्रस्ताव एक वर्ष के लिए प्रभावी होता है, लेकिन इसे समय-समय पर नवीकरण किया जा सकता है। यह समयबद्धता सुनिश्चित करती है कि केंद्र की शक्ति अस्थायी हो। उदाहरण: 2025 में, स्वास्थ्य संकट के लिए प्रस्ताव का नवीकरण।
खंड(3): विधि की वैधता: इस अनुच्छेद के तहत बनाई गई विधि प्रस्ताव की समाप्ति के बाद एक वर्ष तक प्रभावी रहती है, जब तक कि उसे निरसन या संशोधन न किया जाए। उदाहरण: 2025 में, संसद की एक विधि स्वास्थ्य नीति पर एक वर्ष तक प्रभावी रही।
महत्व: राष्ट्रीय हित: संकट या एकरूपता के लिए केंद्र की शक्ति। संघीय संतुलन: अस्थायी हस्तक्षेप के साथ राज्यों की स्वायत्तता। लचीलापन: राष्ट्रीय आपातकाल या नीतिगत आवश्यकताओं के लिए। न्यायिक समीक्षा: विधियों की वैधता पर कोर्ट की निगरानी।
प्रमुख विशेषताएँ: राज्यसभा प्रस्ताव: दो-तिहाई बहुमत। राज्य सूची: संसद की अस्थायी शक्ति। अवधि: एक वर्ष(नवीकरण संभव)। राष्ट्रीय हित: केंद्र की प्राथमिकता।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1970 के दशक: आपातकाल के दौरान राज्य सूची के विषयों पर संसद की विधियाँ। 2010 के दशक: पर्यावरण और स्वास्थ्य नीतियों पर प्रस्ताव। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में डिजिटल स्वास्थ्य नीतियों पर संसद की विधियाँ।
चुनौतियाँ और विवाद: केंद्र-राज्य तनाव: राज्यों द्वारा केंद्र के हस्तक्षेप पर आपत्ति। राज्यसभा की भूमिका: प्रस्ताव की प्रक्रिया पर सवाल। न्यायिक समीक्षा: राष्ट्रीय हित की परिभाषा और विधियों की वैधता पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 246: विधायी शक्तियों का बंटवारा। अनुच्छेद 245: क्षेत्रीय विधायी शक्ति। अनुच्छेद 248: अवशिष्ट शक्तियाँ। सातवीं अनुसूची: तीन सूचियाँ।
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