Article 247 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-05 10:26:40
searchkre.com@gmail.com /
8392828781
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 247
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 247
अनुच्छेद 247 भारतीय संविधान के भाग XI(केंद्र और राज्यों के बीच विधायी संबंध) में आता है। यह संसद को कुछ अतिरिक्त विषयों पर विधि बनाने की शक्ति(Power of Parliament to provide for the establishment of certain additional courts) से संबंधित है। यह प्रावधान संसद को सातवीं अनुसूची की संघ सूची में वर्णित किसी भी विषय के लिए आवश्यक अतिरिक्त न्यायालयों की स्थापना के लिए विधि बनाने का अधिकार देता है। यह केंद्र की विधायी शक्ति को सुदृढ़ करता है।
"अनुच्छेद 246 में किसी बात के होते हुए भी, संसद को विधि द्वारा सातवीं अनुसूची की प्रथम सूची(संघ सूची) में विनिर्दिष्ट किसी विषय के संबंध में आवश्यक अतिरिक्त न्यायालयों की स्थापना का उपबंध करने की शक्ति होगी।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 247 संसद को संघ सूची में वर्णित विषयों(जैसे, रक्षा, विदेश नीति, बैंकिंग) के लिए अतिरिक्त न्यायालयों की स्थापना के लिए विधि बनाने का अधिकार देता है। यह केंद्र को विशिष्ट क्षेत्रों में न्यायिक प्रशासन को सुदृढ़ करने की शक्ति प्रदान करता है। इसका लक्ष्य संघीय ढांचे में केंद्र की विधायी और प्रशासनिक प्रभुता को बनाए रखना और न्यायिक दक्षता सुनिश्चित करना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 247 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, जो 1950 में लागू हुआ। यह भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित है, जिसमें केंद्र को विशेष क्षेत्रों में न्यायिक व्यवस्था स्थापित करने का अधिकार था। भारतीय संदर्भ: भारत में राष्ट्रीय महत्व के विषयों(जैसे, कर, व्यापार, रक्षा) के लिए विशेष न्यायालयों की आवश्यकता थी ताकि त्वरित और विशेषज्ञता-आधारित न्याय सुनिश्चित हो। प्रासंगिकता: यह प्रावधान केंद्र को विशिष्ट क्षेत्रों में विशेष न्यायालय स्थापित करने की लचीलापन प्रदान करता है।
अनुच्छेद 247 के प्रमुख तत्व
संसद की शक्ति: संसद को संघ सूची(सातवीं अनुसूची, प्रथम सूची) में वर्णित किसी भी विषय के लिए अतिरिक्त न्यायालयों की स्थापना के लिए विधि बनाने का अधिकार है। यह शक्ति अनुच्छेद 246 के अधीन है, जो संसद को संघ सूची के विषयों पर विधायी शक्ति देता है। उदाहरण: 2025 में, संसद ने साइबर अपराधों(संघ सूची, प्रविष्टि 97: अवशिष्ट शक्तियाँ) के लिए विशेष साइबर न्यायालय स्थापित किए।
संघ सूची के विषय: यह प्रावधान केवल संघ सूची के विषयों(97 प्रविष्टियाँ, जैसे रक्षा, बैंकिंग, डाक, रेलवे) तक सीमित है। यह राज्य सूची या समवर्ती सूची के विषयों पर लागू नहीं होता। उदाहरण: आयकर(संघ सूची, प्रविष्टि 82) से संबंधित विवादों के लिए विशेष कर न्यायालय।
महत्व: न्यायिक दक्षता: विशेष न्यायालयों के माध्यम से त्वरित न्याय। केंद्र की प्रभुता: राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर नियंत्रण। विशेषज्ञता: जटिल मामलों(जैसे, कर, साइबर अपराध) के लिए विशेष न्यायालय। संघीय ढांचा: केंद्र और राज्यों के बीच संतुलन।
प्रमुख विशेषताएँ: संसद की शक्ति: अतिरिक्त न्यायालयों की स्थापना। संघ सूची: विषयों की सीमा। न्यायिक प्रशासन: विशेषज्ञता और दक्षता। संघीय ढांचा: केंद्र की प्रभुता।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1970 के दशक: आयकर अपील अधिकरण(ITAT) की स्थापना। 2010 के दशक: राष्ट्रीय हरित अधिकरण(NGT) की स्थापना(संघ सूची, पर्यावरण संबंधी मामले)। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में साइबर अपराध और डेटा संरक्षण के लिए विशेष न्यायालय।
चुनौतियाँ और विवाद: केंद्र-राज्य तनाव: राज्यों द्वारा केंद्र की न्यायिक शक्ति पर सवाल। न्यायिक स्वतंत्रता: विशेष न्यायालयों की स्वायत्तता पर बहस। न्यायिक समीक्षा: विशेष न्यायालयों की स्थापना की वैधता पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 246: विधायी शक्तियों का बंटवारा। अनुच्छेद 245: विधायी शक्तियों की क्षेत्रीय सीमा। सातवीं अनुसूची: संघ सूची।
Conclusion
Thanks For Read
jp Singh
searchkre.com@gmail.com
8392828781