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Article 243 ZM the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-04 15:33:19
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 243ZM

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 243ZM
अनुच्छेद 243ZM भारतीय संविधान के भाग IX-B(सहकारी समितियाँ) में आता है। यह सहकारी समितियों के लेखा और लेखा-परीक्षण(Accounts and audit of cooperative societies) से संबंधित है। यह प्रावधान सहकारी समितियों के वित्तीय लेखा और उनके लेखा-परीक्षण की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है ताकि पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित हो। यह अनुच्छेद 97वें संशोधन(2011) के द्वारा जोड़ा गया, जिसने सहकारी समितियों को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया।
"(1) प्रत्येक सहकारी समिति अपने लेखा को ठीक और नियमित रूप से रखेगी, जैसा कि राज्य विधानमंडल द्वारा बनाई गई विधि द्वारा निर्धारित हो।
(2) सहकारी समितियों के लेखा का लेखा-परीक्षण कम से कम एक बार प्रत्येक वित्तीय वर्ष में किया जाएगा, और यह लेखा-परीक्षण स्वतंत्र और योग्य लेखा-परीक्षकों द्वारा किया जाएगा, जैसा कि राज्य विधानमंडल द्वारा निर्धारित हो।
(3) लेखा-परीक्षण रिपोर्ट को सहकारी समिति की सामान्य सभा के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 243ZM सहकारी समितियों के वित्तीय लेखा को नियमित और ठीक रखने और उनके लेखा-परीक्षण की व्यवस्था करता है। यह स्वतंत्र और योग्य लेखा-परीक्षकों द्वारा नियमित लेखा-परीक्षण सुनिश्चित करता है ताकि पारदर्शिता और जवाबदेही बनी रहे। इसका लक्ष्य सहकारी समितियों में वित्तीय प्रबंधन की अखंडता को बनाए रखना, लोकतांत्रिक शासन को सशक्त करना, और संघीय ढांचे में उनकी विश्वसनीयता सुनिश्चित करना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान 97वें संशोधन(2011) द्वारा जोड़ा गया, जो सहकारी समितियों में वित्तीय पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया। यह पंचायतों(अनुच्छेद 243H) और नगरपालिकाओं(अनुच्छेद 243X) के वित्तीय प्रावधानों से प्रेरित है। भारतीय संदर्भ: 2011 से पहले, सहकारी समितियों में वित्तीय अनियमितताएँ और लेखा-परीक्षण की कमी थी। इस संशोधन ने इसे संवैधानिक और व्यवस्थित बनाया। प्रासंगिकता: यह प्रावधान सहकारी समितियों में वित्तीय प्रबंधन की पारदर्शिता और विश्वसनीयता को बढ़ाता है।
अनुच्छेद 243ZM के प्रमुख तत्व
खंड(1): लेखा का रखरखाव: प्रत्येक सहकारी समिति अपने लेखा को ठीक और नियमित रूप से रखेगी। यह राज्य विधानमंडल द्वारा बनाई गई विधि के अनुसार होगा। उदाहरण: 2025 में, एक दुग्ध सहकारी समिति ने डिजिटल लेखा प्रणाली लागू की।
खंड(2): लेखा-परीक्षण: सहकारी समितियों के लेखा का लेखा-परीक्षण प्रत्येक वित्तीय वर्ष में कम से कम एक बार होगा। यह स्वतंत्र और योग्य लेखा-परीक्षकों द्वारा किया जाएगा, जैसा कि राज्य विधानमंडल द्वारा निर्धारित हो। उदाहरण: 2025 में, एक सहकारी बैंक के लेखा का CAG द्वारा नियुक्त लेखा-परीक्षक द्वारा ऑडिट।
खंड(3): लेखा-परीक्षण रिपोर्ट: लेखा-परीक्षण रिपोर्ट को सहकारी समिति की सामान्य सभा के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा। यह सदस्यों के बीच पारदर्शिता सुनिश्चित करता है। उदाहरण: 2025 में, एक कृषि सहकारी समिति की सामान्य सभा में ऑडिट रिपोर्ट प्रस्तुत।
महत्व: वित्तीय पारदर्शिता: नियमित और स्वतंत्र लेखा-परीक्षण। जवाबदेही: सामान्य सभा के समक्ष रिपोर्ट प्रस्तुति। लोकतांत्रिक शासन: सहकारी समितियों में विश्वसनीयता। संघीय ढांचा: केंद्र, राज्य, और सहकारी समितियों में समन्वय।
प्रमुख विशेषताएँ: लेखा रखरखाव: नियमित और ठीक। लेखा-परीक्षण: स्वतंत्र और वार्षिक। रिपोर्ट प्रस्तुति: सामान्य सभा। राज्य विधानमंडल: नियम निर्धारण।
ऐतिहासिक उदाहरण: 2011 के बाद: सहकारी समितियों में लेखा-परीक्षण अनिवार्य। 2010 के दशक: वित्तीय प्रबंधन और पारदर्शिता में सुधार। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में लेखा और लेखा-परीक्षण का डिजिटल रिकॉर्ड।
चुनौतियाँ और विवाद: 97वां संशोधन पर विवाद: 2021 में, सुप्रीम कोर्ट ने भाग IX-B के कुछ हिस्सों को असंवैधानिक घोषित किया, क्योंकि सहकारी समितियाँ राज्य सूची(सातवीं अनुसूची, प्रविष्टि 32) का विषय हैं। अनुच्छेद 243ZM की वैधता प्रभावित हुई, लेकिन लेखा-परीक्षण की शक्ति राज्यों के पास बरकरार। लेखा-परीक्षण में देरी: कुछ समितियों में समय पर ऑडिट नहीं। न्यायिक समीक्षा: लेखा-परीक्षण प्रक्रिया की वैधता पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 243ZH: सहकारी समितियों की परिभाषाएँ। अनुच्छेद 243ZI: सहकारी समितियों का निगमन। अनुच्छेद 243ZJ: संचालक समिति की संरचना।
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