Article 235 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-04 12:41:39
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 235
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 235
अनुच्छेद 235 भारतीय संविधान के भाग VI(राज्य) के अंतर्गत अध्याय VI(अधीनस्थ न्यायालय) में आता है। यह अधीनस्थ न्यायालयों पर उच्च न्यायालय का नियंत्रण(Control over subordinate courts) से संबंधित है। यह प्रावधान उच्च न्यायालय को अधीनस्थ न्यायालयों और उनकी न्यायिक सेवाओं पर नियंत्रण और निगरानी की शक्ति देता है।
"उस राज्य में अधीनस्थ न्यायालयों पर नियंत्रण, जिसमें वह उच्च न्यायालय कार्य करता है, जिसमें जिला न्यायाधीशों के अलावा उन व्यक्तियों का पदस्थापन, पदोन्नति और अवकाश शामिल है, जो उस राज्य की न्यायिक सेवा में हैं, और जिन्हें जिला न्यायाधीशों के रूप में नियुक्त नहीं किया गया है, उच्च न्यायालय में निहित होगा।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 235 उच्च न्यायालय को अधीनस्थ न्यायालयों और उनकी न्यायिक सेवा(जिला न्यायाधीशों को छोड़कर) पर पूर्ण नियंत्रण देता है। यह नियंत्रण पदस्थापन, पदोन्नति, और अवकाश जैसे प्रशासकीय मामलों को शामिल करता है। इसका लक्ष्य न्यायपालिका की स्वतंत्रता, न्यायिक दक्षता, और संघीय ढांचे में अधीनस्थ न्यायालयों की जवाबदेही और एकरूपता सुनिश्चित करना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 की धारा 254 से प्रेरित है, जो उच्च न्यायालयों को अधीनस्थ न्यायालयों पर नियंत्रण की शक्ति देता था। यह ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रणाली में उच्च न्यायालयों की निगरानी भूमिका को दर्शाता है। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, यह प्रावधान अधीनस्थ न्यायपालिका को कार्यकारी हस्तक्षेप से मुक्त रखने और उच्च न्यायालय की निगरानी में रखने के लिए बनाया गया। प्रासंगिकता: यह प्रावधान अधीनस्थ न्यायपालिका में प्रशासकीय स्वायत्तता और गुणवत्ता सुनिश्चित करता है।
अनुच्छेद 235 के प्रमुख तत्व
उच्च न्यायालय का नियंत्रण: उच्च न्यायालय को अधीनस्थ न्यायालयों पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त है, जिसमें: पदस्थापन: न्यायाधीशों का स्थानांतरण। पदोन्नति: वरिष्ठ पदों पर नियुक्ति। अवकाश: छुट्टियों का प्रबंधन। यह नियंत्रण जिला न्यायाधीशों को छोड़कर उन व्यक्तियों पर लागू होता है जो न्यायिक सेवा में हैं। उदाहरण: 2025 में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक सिविल जज का स्थानांतरण किया।
न्यायिक सेवा का दायरा: यह प्रावधान जिला न्यायाधीशों को छोड़कर अन्य न्यायिक सेवा के सदस्यों(जैसे, सिविल जज, ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट) पर लागू होता है। जिला न्यायाधीशों पर नियंत्रण अनुच्छेद 233 के तहत है। उदाहरण: 2025 में, उच्च न्यायालय ने एक मजिस्ट्रेट की पदोन्नति को मंजूरी दी।
महत्व: न्यायिक स्वायत्तता: उच्च न्यायालय का नियंत्रण कार्यकारी हस्तक्षेप को रोकता है। न्यायिक दक्षता: अधीनस्थ न्यायालयों में एकरूपता और गुणवत्ता। लोकतांत्रिक शासन: अधीनस्थ न्यायपालिका में जवाबदेही। संघीय ढांचा: राज्यों में प्रभावी न्याय प्रशासन।
प्रमुख विशेषताएँ: नियंत्रण: उच्च न्यायालय द्वारा। न्यायिक सेवा: जिला न्यायाधीशों को छोड़कर। प्रशासकीय शक्तियाँ: पदस्थापन, पदोन्नति, अवकाश। न्यायपालिका: स्वायत्तता और दक्षता।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के बाद: उच्च न्यायालयों ने अधीनस्थ न्यायालयों पर प्रशासकीय नियंत्रण स्थापित किया। 1990 के दशक: स्थानांतरण और पदोन्नति में पारदर्शिता पर जोर। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में प्रशासकीय नियंत्रण का डिजिटल रिकॉर्ड
चुनौतियाँ और विवाद: कार्यकारी हस्तक्षेप: कुछ मामलों में उच्च न्यायालय के नियंत्रण पर सवाल। प्रशासकीय बोझ: उच्च न्यायालयों पर अतिरिक्त जिम्मेदारी।न्यायिक समीक्षा: स्थानांतरण और पदोन्नति की वैधता पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 233: जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति। अनुच्छेद 234: अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति। अनुच्छेद 227: उच्च न्यायालय की निगरानी शक्ति।
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