Article 234 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-04 12:37:02
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 234
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 234
अनुच्छेद 234 भारतीय संविधान के भाग VI(राज्य) के अंतर्गत अध्याय VI(अधीनस्थ न्यायालय) में आता है। यह जिला न्यायाधीशों के अलावा अन्य व्यक्तियों की नियुक्ति(Recruitment of persons other than district judges to the judicial service) से संबंधित है। यह प्रावधान राज्य की न्यायिक सेवा में जिला न्यायाधीशों के अलावा अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए नियम बनाने की व्यवस्था करता है।
"जिला न्यायाधीशों के अलावा उन व्यक्तियों की नियुक्तियाँ, जो किसी राज्य की न्यायिक सेवा में नियुक्त किए जाने हैं, उस राज्य के राज्यपाल द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार की जाएँगी, जो उस राज्य की लोक सेवा आयोग और उस उच्च न्यायालय के परामर्श के बाद बनाए जाएँगे, जिसमें वह राज्य शामिल है।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 234 राज्यपाल को न्यायिक सेवा में जिला न्यायाधीशों के अलावा अन्य न्यायाधीशों(जैसे, सिविल जज, मजिस्ट्रेट) की नियुक्ति के लिए नियम बनाने की शक्ति देता है। ये नियम लोक सेवा आयोग और उच्च न्यायालय के परामर्श के बाद बनाए जाते हैं। इसका लक्ष्य न्यायिक सेवा में पारदर्शिता, योग्यता, और न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना है, साथ ही संघीय ढांचे में अधीनस्थ न्यायपालिका की दक्षता को बनाए रखना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित है, जो प्रांतीय सरकारों को अधीनस्थ न्यायिक सेवाओं की नियुक्ति के लिए नियम बनाने की शक्ति देता था। यह ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रणाली में अधीनस्थ न्यायपालिका के प्रशासन को दर्शाता है। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, यह प्रावधान अधीनस्थ न्यायिक सेवाओं में योग्य व्यक्तियों की नियुक्ति और उच्च न्यायालय की निगरानी को सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया। प्रासंगिकता: यह प्रावधान अधीनस्थ न्यायपालिका में पारदर्शी और निष्पक्ष भर्ती प्रक्रिया को बढ़ावा देता है।
अनुच्छेद 234 के प्रमुख तत्व
नियुक्ति के नियम: राज्यपाल द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार, जिला न्यायाधीशों के अलावा अन्य न्यायिक सेवा के पदों(जैसे, सिविल जज, ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट) की नियुक्तियाँ की जाएँगी। नियम बनाते समय लोक सेवा आयोग और उच्च न्यायालय का परामर्श अनिवार्य है। उदाहरण: 2025 में, उत्तर प्रदेश के राज्यपाल ने लोक सेवा आयोग और उच्च न्यायालय के परामर्श से सिविल जज के लिए नियम बनाए।
लोक सेवा आयोग और उच्च न्यायालय की भूमिका: लोक सेवा आयोग भर्ती प्रक्रिया में निष्पक्षता और योग्यता सुनिश्चित करता है। उच्च न्यायालय न्यायिक सेवा की गुणवत्ता और स्वतंत्रता पर निगरानी रखता है। उदाहरण: 2025 में, एक राज्य लोक सेवा आयोग ने उच्च न्यायालय के परामर्श से सिविल जज भर्ती परीक्षा आयोजित की।
महत्व: न्यायिक स्वायत्तता: उच्च न्यायालय का परामर्श कार्यकारी हस्तक्षेप को कम करता है। निष्पक्ष भर्ती: लोक सेवा आयोग की भूमिका से पारदर्शिता। लोकतांत्रिक शासन: अधीनस्थ न्यायपालिका में जवाबदेही। संघीय ढांचा: राज्यों में प्रभावी न्याय प्रशासन।
प्रमुख विशेषताएँ: नियुक्ति: राज्यपाल द्वारा नियमों के तहत। परामर्श: लोक सेवा आयोग और उच्च न्यायालय। न्यायिक सेवा: जिला न्यायाधीशों को छोड़कर। न्यायपालिका: स्वायत्तता और दक्षता।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के बाद: राज्यों ने लोक सेवा आयोग के माध्यम से न्यायिक सेवाओं की भर्ती शुरू की। 1990 के दशक: भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता और योग्यता पर जोर। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में भर्ती प्रक्रिया और नियुक्तियों का डिजिटल रिकॉर्ड।
चुनौतियाँ और विवाद: परामर्श की अनदेखी: कुछ मामलों में उच्च न्यायालय के परामर्श को नजरअंदाज करने के आरोप। भर्ती में देरी: लोक सेवा आयोग की प्रक्रिया में विलंब।न्यायिक समीक्षा: भर्ती नियमों और नियुक्तियों की वैधता पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 233: जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति। अनुच्छेद 235: अधीनस्थ न्यायालयों पर नियंत्रण। अनुच्छेद 309: सेवा नियम।
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