Article 233 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-04 12:35:39
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 233
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 233
अनुच्छेद 233 भारतीय संविधान के भाग VI(राज्य) के अंतर्गत अध्याय VI(अधीनस्थ न्यायालय) में आता है। यह जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति(Appointment of district judges) से संबंधित है। यह प्रावधान राज्यपाल को जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति, पदोन्नति, और स्थानांतरण की शक्ति देता है, जो उच्च न्यायालय के परामर्श और नियंत्रण के अधीन होती है।
"(1) जिला न्यायाधीशों की नियुक्तियाँ, पदस्थापनाएँ और पदोन्नतियाँ उस राज्य के राज्यपाल द्वारा की जाएँगी, जिसमें वह जिला न्यायालय कार्य करता है, लेकिन यह उच्च न्यायालय के परामर्श और नियंत्रण के अधीन होगा।
(2) कोई व्यक्ति, जो इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले लागू विधि के अधीन जिला न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए पात्र नहीं था, वह इस अनुच्छेद के अधीन जिला न्यायाधीश नियुक्त नहीं किया जाएगा।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 233 राज्यपाल को जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति, पदस्थापना, और पदोन्नति की शक्ति देता है, जो उच्च न्यायालय के परामर्श और नियंत्रण के अधीन होती है। यह सुनिश्चित करता है कि अधीनस्थ न्यायपालिका में योग्य व्यक्तियों की नियुक्ति हो और उच्च न्यायालय का नियंत्रण बना रहे। इसका लक्ष्य न्यायपालिका की स्वतंत्रता, न्यायिक दक्षता, और संघीय ढांचे में अधीनस्थ न्यायालयों की जवाबदेही सुनिश्चित करना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 की धारा 254 से प्रेरित है, जो प्रांतीय सरकारों को जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति की शक्ति देता था। यह ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रणाली में अधीनस्थ न्यायपालिका के प्रशासन को दर्शाता है। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, यह प्रावधान अधीनस्थ न्यायपालिका को स्वतंत्र और उच्च न्यायालय के नियंत्रण में रखने के लिए बनाया गया। प्रासंगिकता: यह प्रावधान जिला न्यायालयों में योग्यता और पारदर्शिता सुनिश्चित करता है।
अनुच्छेद 233 के प्रमुख तत्व
खंड(1): नियुक्ति, पदस्थापना, और पदोन्नति: राज्यपाल जिला न्यायाधीशों की: नियुक्तियाँ(सीधी भर्ती या पदोन्नति के माध्यम से)। पदस्थापनाएँ(स्थानांतरण)। पदोन्नतियाँ(वरिष्ठ पदों पर)। यह प्रक्रिया उच्च न्यायालय के परामर्श और नियंत्रण के अधीन होगी। उदाहरण: 2025 में, उत्तर प्रदेश के राज्यपाल ने उच्च न्यायालय के परामर्श से जिला न्यायाधीश नियुक्त किया।
खंड(2): पात्रता: कोई व्यक्ति जिला न्यायाधीश नियुक्त नहीं किया जाएगा, जब तक कि वह संविधान के प्रारंभ से पहले लागू विधि के तहत पात्र न हो। यह पात्रता सामान्यतः 7 वर्ष की वकालत या न्यायिक सेवा के अनुभव पर आधारित होती है। उदाहरण: 2025 में, एक वकील को 7 वर्ष के अनुभव के आधार पर जिला न्यायाधीश नियुक्त किया गया।
महत्व: न्यायिक स्वायत्तता: उच्च न्यायालय का नियंत्रण कार्यकारी हस्तक्षेप को कम करता है। न्यायिक दक्षता: योग्य जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति। लोकतांत्रिक शासन: अधीनस्थ न्यायपालिका में जवाबदेही। संघीय ढांचा: राज्यों में प्रभावी न्याय प्रशासन।
प्रमुख विशेषताएँ: नियुक्ति: राज्यपाल द्वारा। नियंत्रण: उच्च न्यायालय का। पात्रता: विधि द्वारा निर्धारित। न्यायपालिका: स्वायत्तता और दक्षता।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के बाद: उच्च न्यायालयों ने जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1990 के दशक: नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता पर जोर। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में नियुक्तियों और स्थानांतरण का डिजिटल रिकॉर्ड।
चुनौतियाँ और विवाद: कार्यकारी हस्तक्षेप: राज्यपाल की भूमिका पर सवाल। उच्च न्यायालय का नियंत्रण: परामर्श की अनदेखी के मामले।न्यायिक समीक्षा: नियुक्तियों की वैधता पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 234: अन्य अधीनस्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति। अनुच्छेद 235: अधीनस्थ न्यायालयों पर नियंत्रण। अनुच्छेद 227: उच्च न्यायालय की निगरानी शक्ति।
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