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Article 232 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-04 12:28:47
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 232(निरसित)

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 232(निरसित)
अनुच्छेद 232 भारतीय संविधान के भाग VI(राज्य) के अंतर्गत अध्याय V(राज्य में उच्च न्यायालय) में मूल रूप से शामिल था। यह केंद्र और राज्यों के बीच कुछ मामलों में उच्च न्यायालयों के क्षेत्राधिकार से संबंधित था। यह प्रावधान केंद्र और राज्यों के बीच कुछ विशिष्ट मामलों में उच्च न्यायालयों की भूमिका को परिभाषित करता था, विशेष रूप से उन राज्यों के लिए जो उस समय भाग B और भाग C राज्यों के रूप में वर्गीकृत थे।
अनुच्छेद 232 का मूल पाठ(1950 में) "जहाँ इस संविधान के अधीन केंद्र और किसी राज्य के बीच या दो या अधिक राज्यों के बीच कोई विवाद या शिकायत उत्पन्न होती है, और वह विवाद या शिकायत सर्वोच्च न्यायालय के मूल क्षेत्राधिकार के अधीन नहीं है, तो वह उच्च न्यायालय, जो उस राज्य के लिए कार्य करता है, जिसके साथ विवाद संबंधित है, उस विवाद या शिकायत पर विचार करेगा और उसका निपटारा करेगा।"
निरसन का कारण - 7वां संशोधन(1956): - 1956 में, भारतीय संविधान के 7वें संशोधन के द्वारा अनुच्छेद 232 को पूरी तरह निरसित कर दिया गया। यह संशोधन राज्यों के पुनर्गठन और संविधान की संरचना को सरल बनाने के लिए किया गया था, जिसमें भाग A, B, C, और D राज्यों की श्रेणियों को समाप्त किया गया। अनुच्छेद 232 को निरसित करने का मुख्य कारण यह था कि यह केंद्र और राज्यों के बीच विवादों को उच्च न्यायालयों द्वारा निपटाने की व्यवस्था करता था, जो अनुच्छेद 131(सर्वोच्च न्यायालय का मूल क्षेत्राधिकार) के साथ अतिव्यापी था। 7वें संशोधन ने केंद्र और राज्यों के बीच विवादों को विशेष रूप से सर्वोच्च न्यायालय के मूल क्षेत्राधिकार(अनुच्छेद 131) के तहत समेकित किया।
मूल उद्देश्य: अनुच्छेद 232 का उद्देश्य केंद्र और राज्यों या राज्यों के बीच के उन विवादों को निपटाने के लिए उच्च न्यायालयों को क्षेत्राधिकार प्रदान करना था, जो सर्वोच्च न्यायालय के मूल क्षेत्राधिकार(अनुच्छेद 131) के दायरे में नहीं आते थे। यह विशेष रूप से भाग B और C राज्यों(जैसे, हैदराबाद, जम्मू-कश्मीर, और केंद्रशासित प्रदेश) के लिए प्रासंगिक था, जो स्वतंत्रता के बाद के प्रारंभिक वर्षों में संवैधानिक ढांचे का हिस्सा थे। इसका लक्ष्य संघीय ढांचे में केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय और न्यायिक जवाबदेही सुनिश्चित करना था।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित नहीं था, क्योंकि यह स्वतंत्र भारत की संघीय संरचना की विशिष्ट आवश्यकताओं को संबोधित करता था। यह उस समय की जटिल प्रशासकीय संरचना(भाग A, B, C राज्य) को ध्यान में रखकर बनाया गया था। भारतीय संदर्भ: 1950 में संविधान लागू होने पर, यह प्रावधान केंद्र और राज्यों के बीच विवादों को निपटाने के लिए बनाया गया, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ सर्वोच्च न्यायालय का सीधा हस्तक्षेप उपयुक्त नहीं था। निरसन कीप्रासंगिकता: 7वें संशोधन(1956) ने राज्यों के पुनर्गठन और संवैधानिक सरलीकरण के बाद इस प्रावधान को अनावश्यक बना दिया।
अनुच्छेद 232 के प्रमुख तत्व(मूल रूप में)
केंद्र-राज्य विवादों पर क्षेत्राधिकार: उच्च न्यायालय को उन विवादों या शिकायतों पर विचार करने और निपटाने की शक्ति थी, जो: केंद्र और राज्य या दो या अधिक राज्यों के बीच हों। सर्वोच्च न्यायालय के मूल क्षेत्राधिकार(अनुच्छेद 131) के अधीन न हों। उदाहरण: 1950 के दशक में, एक भाग B राज्य और केंद्र के बीच प्रशासकीय विवाद को उच्च न्यायालय में निपटाया गया।
सीमाएँ: यह शक्ति केवल उन मामलों तक सीमित थी जो सर्वोच्च न्यायालय के दायरे से बाहर थे। यह प्रावधान भाग B और C राज्यों के लिए अधिक प्रासंगिक था।
निरसन का प्रभाव: 7वें संशोधन(1956): राज्यों के पुनर्गठन के बाद, भाग A, B, C की श्रेणियाँ समाप्त हो गईं, जिससे अनुच्छेद 232 अप्रासंगिक हो गया। केंद्र और राज्यों के बीच विवादों को अनुच्छेद 131 के तहत सर्वोच्च न्यायालय में निपटाने का प्रावधान किया गया। न्यायिक एकरूपता: यह निरसन संवैधानिक विवादों को सर्वोच्च न्यायालय में समेकित करके न्यायिक प्रक्रिया को सरल बनाता है।
महत्व(ऐतिहासिक): संघीय ढांचा: केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय। न्यायिक जवाबदेही: विवादों का त्वरित निपटारा। लोकतांत्रिक शासन: संवैधानिक व्यवस्था की स्थिरता।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950-1956: भाग B राज्यों(जैसे, हैदराबाद) में केंद्र के साथ विवादों में उपयोग। 1956 के बाद: अनुच्छेद 232 का उपयोग समाप्त, क्योंकि यह निरसित हो गया। 2025 स्थिति: यह अनुच्छेद अब लागू नहीं है, लेकिन इसका ऐतिहासिक अध्ययन संवैधानिक विकास को समझने में सहायक है।
चुनौतियाँ और विवाद(ऐतिहासिक): अतिव्यापी क्षेत्राधिकार: अनुच्छेद 232 और 131 के बीच अस्पष्टता। न्यायिक दक्षता: उच्च न्यायालयों में अतिरिक्त बोझ। निरसन की आवश्यकता: सरलीकरण और एकरूपता के लिए।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 131: सर्वोच्च न्यायालय का मूल क्षेत्राधिकार। अनुच्छेद 230: केंद्रशासित प्रदेशों में क्षेत्राधिकार। अनुच्छेद 231: साझा उच्च न्यायालय।
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