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Article 230 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-04 12:00:46
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 230

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 230
अनुच्छेद 230 भारतीय संविधान के भाग VI(राज्य) के अंतर्गत अध्याय V(राज्य में उच्च न्यायालय) में आता है। यह उच्च न्यायालयों के क्षेत्राधिकार का विस्तार और केंद्रशासित प्रदेशों में उच्च न्यायालयों की स्थापना(Extension of jurisdiction of High Courts to Union territories) से संबंधित है। यह प्रावधान संसद को केंद्रशासित प्रदेशों में उच्च न्यायालयों की स्थापना करने और मौजूदा उच्च न्यायालयों के क्षेत्राधिकार को केंद्रशासित प्रदेशों तक विस्तार करने की शक्ति देता है।
"(1) संसद, विधि द्वारा, किसी उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार को किसी केंद्रशासित प्रदेश तक विस्तार कर सकती है या किसी केंद्रशासित प्रदेश के लिए उच्च न्यायालय स्थापित कर सकती है।
(2) जहाँ किसी केंद्रशासित प्रदेश के लिए कोई उच्च न्यायालय स्थापित नहीं किया गया हो, वहाँ संसद, विधि द्वारा, किसी उच्च न्यायालय को उस केंद्रशासित प्रदेश के संबंध में ऐसी शक्तियाँ और कर्तव्य प्रदान कर सकती है, जो वह उचित समझे।"
विस्तृत विश्लेषण
उद्देश्य: अनुच्छेद 230 संसद को केंद्रशासित प्रदेशों के लिए उच्च न्यायालयों की स्थापना करने या मौजूदा उच्च न्यायालयों के क्षेत्राधिकार को केंद्रशासित प्रदेशों तक विस्तार करने की शक्ति देता है। यह केंद्रशासित प्रदेशों में प्रभावी न्याय प्रशासन सुनिश्चित करता है। इसका लक्ष्य न्यायपालिका की पहुँच, संघीय ढांचे में केंद्र और केंद्रशासित प्रदेशों के बीच समन्वय, और न्यायिक एकरूपता को बढ़ावा देना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित नहीं है, क्योंकि केंद्रशासित प्रदेशों का संवैधानिक ढांचा स्वतंत्र भारत की विशिष्ट आवश्यकता थी। यह स्वतंत्र भारत में केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासन को संबोधित करने के लिए बनाया गया। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, यह प्रावधान केंद्रशासित प्रदेशों में न्यायिक ढांचे को व्यवस्थित करने के लिए बनाया गया, जो राज्यों से भिन्न प्रशासकीय इकाइयाँ हैं। प्रासंगिकता: यह प्रावधान केंद्रशासित प्रदेशों में न्यायिक स्वायत्तता और दक्षता सुनिश्चित करता है।
अनुच्छेद 230 के प्रमुख तत्व
खंड(1): क्षेत्राधिकार का विस्तार और स्थापना: संसद विधि द्वारा: किसी उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार को किसी केंद्रशासित प्रदेश तक विस्तार कर सकती है। किसी केंद्रशासित प्रदेश के लिए नया उच्च न्यायालय स्थापित कर सकती है। उदाहरण: दिल्ली, एक केंद्रशासित प्रदेश, के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय स्थापित किया गया।
खंड(2): शक्तियाँ और कर्तव्य: यदि केंद्रशासित प्रदेश के लिए कोई उच्च न्यायालय स्थापित नहीं हुआ हो, तो संसद विधि द्वारा किसी मौजूदा उच्च न्यायालय को उस केंद्रशासित प्रदेश के लिए शक्तियाँ और कर्तव्य प्रदान कर सकती है। उदाहरण: 2025 में, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लिए जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार को विस्तारित किया गया।
महत्व: न्यायिक पहुँच: केंद्रशासित प्रदेशों में नागरिकों को न्याय तक पहुँच। न्यायपालिका की स्वतंत्रता: संसद द्वारा नियंत्रित लेकिन स्वायत्त ढांचा। लोकतांत्रिक शासन: केंद्रशासित प्रदेशों में कानून का शासन। संघीय ढांचा: केंद्र और केंद्रशासित प्रदेशों में समन्वय।
प्रमुख विशेषताएँ: क्षेत्राधिकार विस्तार: संसद द्वारा। नया उच्च न्यायालय: केंद्रशासित प्रदेशों के लिए। न्यायपालिका: पहुँच और दक्षता। संविधान: संघीय समन्वय।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1966: दिल्ली उच्च न्यायालय की स्थापना। 2019: जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लिए क्षेत्राधिकार व्यवस्था। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में क्षेत्राधिकार और नियुक्तियों का डिजिटल रिकॉर्ड।
चुनौतियाँ और विवाद: क्षेत्रीय सीमाएँ: केंद्रशासित प्रदेशों में क्षेत्राधिकार का टकराव। संसदीय हस्तक्षेप: न्यायिक स्वायत्तता पर सवाल।न्यायिक समीक्षा: संसद के निर्णयों की वैधता पर जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 241: केंद्रशासित प्रदेशों में उच्च न्यायालय। अनुच्छेद 226: रिट शक्ति। अनुच्छेद 225: क्षेत्राधिकार और नियम-निर्माण।
Conclusion
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