Article 228 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-04 11:56:48
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 228
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 228
अनुच्छेद 228 भारतीय संविधान के भाग VI(राज्य) के अंतर्गत अध्याय V(राज्य में उच्च न्यायालय) में आता है। यह किसी अधीनस्थ न्यायालय में लंबित कुछ मामलों का उच्च न्यायालय में स्थानांतरण(Transfer of certain cases to High Court) से संबंधित है। यह प्रावधान उच्च न्यायालय को निचली अदालतों से कुछ मामलों को अपने पास स्थानांतरित करने और उनका निपटारा करने की शक्ति देता है, यदि उनमें कानून का कोई पर्याप्त प्रश्न शामिल हो।
"(1) यदि उच्च न्यायालय इस बात से संतुष्ट हो कि उसके क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार के भीतर किसी अधीनस्थ न्यायालय में लंबित कोई मामला ऐसा है, जिसमें इस संविधान के अंतर्गत किसी विधि की व्याख्या से संबंधित कोई पर्याप्त प्रश्न शामिल है, जिसके निर्धारण पर उस मामले का निर्णय निर्भर करता है, तो वह उच्च न्यायालय उस मामले को अपने पास स्थानांतरित कर सकता है और उसका निपटारा स्वयं कर सकता है या उस प्रश्न का निर्धारण कर सकता है और मामले को उस न्यायालय को, जिससे वह स्थानांतरित किया गया था, ऐसे आदेशों के साथ वापस भेज सकता है, जो वह उचित समझे।
(2) इस अनुच्छेद में कुछ भी अंतर्विष्ट नहीं है, जो इस संविधान के अधीन संसद द्वारा बनाई गई विधि के अधीन किसी न्यायाधिकरण पर उच्च न्यायालय की शक्ति को सीमित करता हो।"
विस्तृत विश्लेषण
उद्देश्य: अनुच्छेद 228 उच्च न्यायालय को अपने क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार के भीतर किसी अधीनस्थ न्यायालय से ऐसे मामलों को स्थानांतरित करने की शक्ति देता है, जिनमें संविधान की व्याख्या से संबंधित पर्याप्त कानूनी प्रश्न शामिल हों। उच्च न्यायालय ऐसे मामलों का निपटारा स्वयं कर सकता है या कानूनी प्रश्न का निर्धारण करके मामले को निचली अदालत को वापस भेज सकता है। इसका लक्ष्य न्यायिक एकरूपता, संवैधानिक व्याख्या की शुद्धता, और संघीय ढांचे में उच्च न्यायालयों की निगरानी भूमिका को सुनिश्चित करना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित है, जो उच्च न्यायालयों को निचली अदालतों से मामलों को स्थानांतरित करने की सीमित शक्ति देता था। यह ब्रिटिश कॉमन लॉ में उच्च न्यायालयों की निगरानी और नियंत्रण की परंपरा को दर्शाता है। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, यह प्रावधान संवैधानिक प्रश्नों की सटीक व्याख्या और निचली अदालतों की कार्यवाही की निगरानी के लिए बनाया गया। प्रासंगिकता: यह प्रावधान उच्च न्यायालयों को संवैधानिक और कानूनी प्रश्नों पर अंतिम प्राधिकारी के रूप में कार्य करने की शक्ति देता है।
अनुच्छेद 228 के प्रमुख तत्व
खंड(1): मामले का स्थानांतरण और निपटारा: यदि उच्च न्यायालय संतुष्ट हो कि किसी अधीनस्थ न्यायालय में लंबित मामले में: संविधान की व्याख्या से संबंधित पर्याप्त कानूनी प्रश्न शामिल है, और उस प्रश्न का निर्धारण मामले के निर्णय के लिए आवश्यक है, तो उच्च न्यायालय: मामले को अपने पास स्थानांतरित कर सकता है। मामले का निपटारा स्वयं कर सकता है, या कानूनी प्रश्न का निर्धारण करके मामले को निचली अदालत को वापस भेज सकता है। उदाहरण: 2025 में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक मामले को स्थानांतरित किया जिसमें मौलिक अधिकारों की व्याख्या शामिल थी।
खंड(2): संसदीय विधि पर प्रभाव: यह प्रावधान संसद द्वारा बनाई गई विधि के अधीन किसी न्यायाधिकरण पर उच्च न्यायालय की शक्ति को सीमित नहीं करता। उदाहरण: कुछ विशेष न्यायाधिकरणों पर उच्च न्यायालय की निगरानी बनी रहती है।
महत्व: संवैधानिक व्याख्या: संविधान से संबंधित प्रश्नों की शुद्धता। न्यायिक निगरानी: निचली अदालतों की कार्यवाही पर नियंत्रण। लोकतांत्रिक शासन: कानून के शासन की रक्षा। संघीय ढांचा: राज्यों में प्रभावी न्याय प्रशासन।
प्रमुख विशेषताएँ: स्थानांतरण: संवैधानिक प्रश्नों के लिए। निपटारा: स्वयं या वापसी। न्यायपालिका: निगरानी और एकरूपता। संविधान: व्याख्या की शुद्धता।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के बाद: उच्च न्यायालयों ने संवैधानिक प्रश्नों पर मामले स्थानांतरित किए। 1980 के दशक: मौलिक अधिकारों से संबंधित मामलों में उपयोग। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में स्थानांतरण और निपटारे का डिजिटल रिकॉर्ड।
चुनौतियाँ और विवाद: स्थानांतरण की सीमा: केवल संवैधानिक प्रश्नों तक सीमित। न्यायिक हस्तक्षेप: अत्यधिक हस्तक्षेप के आरोप।न्यायिक समीक्षा: स्थानांतरण की वैधता पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 226: रिट शक्ति। अनुच्छेद 227: निगरानी की शक्ति। अनुच्छेद 225: क्षेत्राधिकार और नियम-निर्माण।
Conclusion
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jp Singh
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