Article 227 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-04 11:55:11
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 227
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 227
अनुच्छेद 227 भारतीय संविधान के भाग VI(राज्य) के अंतर्गत अध्याय V(राज्य में उच्च न्यायालय) में आता है। यह उच्च न्यायालयों की निगरानी की शक्ति(Power of superintendence over all courts by the High Court) से संबंधित है। यह प्रावधान उच्च न्यायालयों को उनके क्षेत्राधिकार के भीतर सभी निचली अदालतों और न्यायाधिकरणों पर निगरानी और नियंत्रण की शक्ति प्रदान करता है।
"(1) प्रत्येक उच्च न्यायालय को अपने क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार के भीतर उन सभी न्यायालयों और न्यायाधिकरणों पर, जो इस संविधान के अधीन संसद द्वारा बनाई गई विधि के अधीन नहीं हैं, सामान्य निगरानी की शक्ति होगी।
(2) उच्च न्यायालय:
(क) किसी भी कार्यवाही को अपने पास बुला सकता है,
(ख) किसी भी कार्यवाही को निलंबित कर सकता है,
(ग) किसी भी कार्यवाही को अपने पास स्थानांतरित कर सकता है,
(घ) ऐसी नियमावली बना सकता है, जो इस संविधान के अधीन और उसके अनुरूप हो, और
(ङ) ऐसी अन्य शक्तियों का प्रयोग कर सकता है, जो इस संविधान के अधीन और उसके अनुरूप हो।
(3) उच्च न्यायालय इस अनुच्छेद के अधीन अपनी शक्तियों का प्रयोग करते समय किसी भी ऐसे न्यायालय या न्यायाधिकरण के किसी निर्णय या आदेश को, जो अपील के अधीन हो, रद्द या संशोधित नहीं करेगा, सिवाय इसके कि वह इस संविधान के अधीन उसकी अपील सुनने का अधिकार रखता हो।
(4) इस अनुच्छेद में कुछ भी अंतर्विष्ट नहीं है, जो किसी ऐसे न्यायालय या न्यायाधिकरण पर उच्च न्यायालय की निगरानी की शक्ति को सीमित करता हो, जो इस संविधान के अधीन संसद द्वारा बनाई गई विधि के अधीन हो।"
विस्तृत विश्लेषण
उद्देश्य: अनुच्छेद 227 उच्च न्यायालयों को उनके क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार के भीतर सभी निचली अदालतों और न्यायाधिकरणों पर निगरानी की शक्ति देता है, सिवाय उन न्यायाधिकरणों के जो संसद द्वारा बनाई गई विधि के अधीन हों। यह निगरानी प्रशासनिक और न्यायिक दोनों हो सकती है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि निचली अदालतें और न्यायाधिकरण कानून के दायरे में कार्य करें। इसका लक्ष्य न्यायिक एकरूपता, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, और संघीय ढांचे में निचली अदालतों की जवाबदेही और दक्षता सुनिश्चित करना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 की धारा 224 से प्रेरित है, जो उच्च न्यायालयों को निचली अदालतों पर निगरानी की शक्ति देता था। यह ब्रिटिश कॉमन लॉ में उच्च न्यायालयों की निगरानी की परंपरा को दर्शाता है। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, यह प्रावधान निचली अदालतों और न्यायाधिकरणों की कार्यवाही को नियंत्रित करने के लिए बनाया गया। प्रासंगिकता: यह प्रावधान उच्च न्यायालयों को निचली अदालतों के कार्यों की निगरानी और सुधार का अधिकार देता है, जिससे न्यायिक प्रक्रिया की अखंडता बनी रहती है।
अनुच्छेद 227 के प्रमुख तत्व
खंड(1): निगरानी की शक्ति: प्रत्येक उच्च न्यायालय को अपने क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार के भीतर सभी न्यायालयों और न्यायाधिकरणों(संसद द्वारा बनाई गई विधि के अधीन नहीं) पर सामान्य निगरानी की शक्ति होगी। यह निगरानी प्रशासनिक(जैसे, प्रक्रिया) और न्यायिक(जैसे, निर्णयों की वैधता) हो सकती है। उदाहरण: 2025 में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक जिला अदालत की कार्यवाही की निगरानी की।
खंड(2): विशिष्ट शक्तियाँ: उच्च न्यायालय: कार्यवाही को अपने पास बुला सकता है। कार्यवाही को निलंबित कर सकता है। कार्यवाही को स्थानांतरित कर सकता है। नियम बना सकता है(संविधान के अनुरूप)। अन्य शक्तियों का प्रयोग कर सकता है। उदाहरण: 2025 में, एक उच्च न्यायालय ने एक मामले को निचली अदालत से अपने पास स्थानांतरित किया।
खंड(3): अपील पर प्रतिबंध: उच्च न्यायालय निगरानी की शक्ति के तहत ऐसे निर्णय या आदेश को रद्द या संशोधित नहीं करेगा जो अपील के अधीन हो, सिवाय इसके कि वह अपील सुनने का अधिकार रखता हो। उदाहरण: 2025 में, एक अपील योग्य निर्णय को निगरानी शक्ति के तहत संशोधित नहीं किया गया।
खंड(4): संसदीय विधि पर प्रभाव: यह प्रावधान संसद द्वारा बनाई गई विधि के अधीन न्यायाधिकरणों पर निगरानी की शक्ति को सीमित नहीं करता। उदाहरण: कुछ विशेष न्यायाधिकरणों पर सीमित निगरानी।
महत्व: न्यायिक जवाबदेही: निचली अदालतों और न्यायाधिकरणों की वैधता। न्यायपालिका की स्वतंत्रता: उच्च न्यायालयों की स्वायत्त निगरानी। लोकतांत्रिक शासन: कानून के शासन की रक्षा। संघीय ढांचा: राज्यों में प्रभावी न्याय प्रशासन।
प्रमुख विशेषताएँ: निगरानी: प्रशासनिक और न्यायिक। शक्तियाँ: बुलाना, निलंबन, स्थानांतरण। नियम-निर्माण: संवैधानिक अनुरूपता। न्यायपालिका: जवाबदेही और दक्षता।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के बाद: उच्च न्यायालयों ने निचली अदालतों की कार्यवाही की निगरानी की। 1990 के दशक: न्यायाधिकरणों पर निगरानी के विवाद। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में निगरानी और कार्यवाही का डिजिटल रिकॉर्ड।
चुनौतियाँ और विवाद: निगरानी की सीमा: न्यायाधिकरणों पर सीमित अधिकार। न्यायिक हस्तक्षेप: अत्यधिक निगरानी के आरोप।न्यायिक समीक्षा: निगरानी के निर्णयों की वैधता पर जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 226: रिट शक्ति। अनुच्छेद 225: क्षेत्राधिकार और नियम-निर्माण। अनुच्छेद 323A/B: प्रशासनिक और अन्य न्यायाधिकरण।
Conclusion
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