Article 226 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-04 11:52:32
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 226
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 226
अनुच्छेद 226 भारतीय संविधान के भाग VI(राज्य) के अंतर्गत अध्याय V(राज्य में उच्च न्यायालय) में आता है। यह उच्च न्यायालयों की रिट जारी करने की शक्ति(Power of High Courts to issue certain writs) से संबंधित है। यह प्रावधान उच्च न्यायालयों को मौलिक अधिकारों और अन्य कानूनी अधिकारों को लागू करने के लिए रिट जारी करने की व्यापक शक्ति प्रदान करता है।
"(1) इस संविधान में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, प्रत्येक उच्च न्यायालय को अपने क्षेत्राधिकार के भीतर भारत के राज्यक्षेत्र में, किसी व्यक्ति या प्राधिकारी, जिसमें उपयुक्त मामलों में सरकार भी शामिल है, के विरुद्ध, किसी विधि के अधीन या उसके लिए किसी मौलिक अधिकार को लागू करने के लिए, या किसी अन्य प्रयोजन के लिए, आदेश, निर्देश, रिट, जिसमें हैबियस कॉर्पस, मंडामस, प्रोहिबिशन, क्वो-वारंटो और सर्टियोरारी रिट शामिल हैं, या इनमें से कोई भी रिट, ऐसे प्रयोजनों के लिए, जैसा कि वह उचित समझे, जारी करने की शक्ति होगी।
(2) इस अनुच्छेद के खंड(1) के अधीन रिट, आदेश या निर्देश जारी करने की शक्ति का प्रयोग उस कारण के लिए किया जा सकता है, जो उस उच्च न्यायालय के क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार के बाहर उत्पन्न हुआ हो, यदि वह व्यक्ति या प्राधिकारी, जिसके विरुद्ध रिट, आदेश या निर्देश माँगा गया है, उस उच्च न्यायालय के क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार के भीतर रहता हो या कार्य करता हो।
(3) जहाँ किसी याचिका को, जो इस अनुच्छेद के अधीन दायर की गई हो, अंतरिम आदेश, निर्देश या रिट द्वारा खारिज कर दिया गया हो, और जहाँ ऐसी याचिका के अंतिम निपटारे पर यह उच्च न्यायालय को संतुष्ट हो कि वह याचिका तुच्छ थी या उसमें कोई पर्याप्त आधार नहीं था, तो वह यह आदेश दे सकता है कि वह अंतरिम आदेश, निर्देश या रिट, यदि वह प्रभावी हो, तत्काल प्रभाव से रद्द हो जाएगा।
(4) इस अनुच्छेद के अधीन रिट जारी करने की शक्ति, इस संविधान के अनुच्छेद 32 के अधीन सर्वोच्च न्यायालय की शक्ति पर प्रभाव नहीं डालेगी।"
विस्तृत विश्लेषण
उद्देश्य: अनुच्छेद 226 उच्च न्यायालयों को रिट(हैबियस कॉर्पस, मंडामस, प्रोहिबिशन, क्वो-वारंटो, सर्टियोरारी) जारी करने की शक्ति देता है ताकि मौलिक अधिकारों और अन्य कानूनी अधिकारों को लागू किया जा सके। यह शक्ति किसी भी व्यक्ति या प्राधिकारी, जिसमें सरकार भी शामिल है, के खिलाफ प्रयोग की जा सकती है। इसका लक्ष्य न्याय तक पहुँच, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, और संघीय ढांचे में नागरिकों के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित है, जो उच्च न्यायालयों को रिट जारी करने की सीमित शक्ति देता था। यह ब्रिटिश कॉमन लॉ में रिट की परंपरा को दर्शाता है। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, यह प्रावधान उच्च न्यायालयों को व्यापक रिट शक्ति प्रदान करने के लिए बनाया गया, जो अनुच्छेद 32(सर्वोच्च न्यायालय) के समानांतर है। प्रासंगिकता: यह प्रावधान उच्च न्यायालयों को नागरिकों के अधिकारों की रक्षा और सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करने का शक्तिशाली उपकरण देता है।
अनुच्छेद 226 के प्रमुख तत्व
खंड(1): रिट की शक्ति: उच्च न्यायालय अपने क्षेत्राधिकार के भीतर रिट, आदेश, या निर्देश जारी कर सकता है: मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए। अन्य प्रयोजनों के लिए(कानूनी अधिकारों सहित)
रिट के प्रकार: हैबियस कॉर्पस: अवैध हिरासत से मुक्ति। मंडामस: कर्तव्य पालन के लिए निर्देश। प्रोहिबिशन: निचली अदालत को कार्यवाही रोकने का आदेश। क्वो-वारंटो: पद के अधिकार की जाँच। सर्टियोरारी: निचली अदालत के निर्णय की समीक्षा। उदाहरण: 2025 में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक अवैध हिरासत मामले में हैबियस कॉर्पस रिट जारी की।
खंड(2): क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार: उच्च न्यायालय उस कारण के लिए रिट जारी कर सकता है जो उसके क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार के बाहर उत्पन्न हुआ हो, यदि संबंधित प्राधिकारी या व्यक्ति उसके क्षेत्र में हो। उदाहरण: 2025 में, एक उच्च न्यायालय ने दूसरे राज्य में उत्पन्न मामले में रिट जारी की क्योंकि प्राधिकारी उसके क्षेत्र में था।
खंड(3): अंतरिम आदेश: यदि रिट याचिका तुच्छ या बिना आधार की हो, तो अंतरिम आदेश को रद्द किया जा सकता है। उदाहरण: 2025 में, एक तुच्छ याचिका पर अंतरिम आदेश रद्द किया गया।
खंड(4): सर्वोच्च न्यायालय की शक्ति: अनुच्छेद 226 की शक्ति अनुच्छेद 32(सर्वोच्च न्यायालय की रिट शक्ति) पर प्रभाव नहीं डालती। उदाहरण: मौलिक अधिकारों के लिए याचिकाएँ अनुच्छेद 32 के तहत सर्वोच्च न्यायालय में भी दायर की जा सकती हैं।
महत्व: न्याय तक पहुँच: नागरिकों को अधिकारों की रक्षा के लिए शक्तिशाली उपाय। न्यायपालिका की स्वतंत्रता: सरकार और प्राधिकारियों की जवाबदेही। लोकतांत्रिक शासन: मौलिक और कानूनी अधिकारों की रक्षा। संघीय ढांचा: राज्यों में स्वायत्त और शक्तिशाली न्यायपालिका।
प्रमुख विशेषताएँ: रिट: पाँच प्रकार। क्षेत्राधिकार: व्यापक और लचीला। न्यायपालिका: स्वायत्तता और जवाबदेही। संविधान: अधिकारों की रक्षा।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के बाद: उच्च न्यायालयों ने रिट शक्ति का व्यापक उपयोग किया। 1980 के दशक: जनहित याचिकाओं(PIL) का उदय। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में रिट याचिकाओं का डिजिटल रिकॉर्ड।
चुनौतियाँ और विवाद: रिट शक्ति का दुरुपयोग: तुच्छ याचिकाओं की समस्या। क्षेत्रीय सीमाएँ: क्षेत्राधिकार के टकराव।न्यायिक समीक्षा:
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 32: सर्वोच्च न्यायालय की रिट शक्ति। अनुच्छेद 227: निगरानी की शक्ति। अनुच्छेद 225: क्षेत्राधिकार और नियम-निर्माण।
Conclusion
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