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Article 224 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-04 11:44:17
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 224

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 224
अनुच्छेद 224 भारतीय संविधान के भाग VI(राज्य) के अंतर्गत अध्याय V(राज्य में उच्च न्यायालय) में आता है। यह अतिरिक्त और कार्यवाहक न्यायाधीशों की नियुक्ति(Appointment of additional and acting Judges) से संबंधित है। यह प्रावधान उच्च न्यायालयों में अतिरिक्त और कार्यवाहक न्यायाधीशों की नियुक्ति की व्यवस्था करता है ताकि कार्यभार को संभाला जा सके।
"(1) यदि किसी उच्च न्यायालय में लंबित कार्य की अस्थायी वृद्धि या कार्य के संचय के कारण यह आवश्यक प्रतीत हो, तो राष्ट्रपति, यदि वह उचित समझे, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और उस उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से, ऐसे व्यक्ति को, जो उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए पात्र हो, अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त कर सकता है, ऐसी अवधि के लिए जो दो वर्ष से अधिक न हो।
(2) जब किसी उच्च न्यायालय का कोई स्थायी न्यायाधीश(मुख्य न्यायाधीश के अलावा) किसी कारण से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में असमर्थ हो या अस्थायी रूप से अनुपस्थित हो, तो राष्ट्रपति, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और उस उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से, किसी ऐसे व्यक्ति को, जो उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए पात्र हो, उस उच्च न्यायालय का कार्यवाहक न्यायाधीश नियुक्त कर सकता है, और ऐसा नियुक्त व्यक्ति, जब तक वह इस प्रकार कार्य करता है, इस संविधान के अधीन उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान सभी शक्तियों और कर्तव्यों का प्रयोग करेगा।
(3) कोई व्यक्ति अनुच्छेद(1) के अधीन अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त नहीं किया जाएगा, जब तक कि वह इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले लागू विधि के अधीन उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए पात्र न हो।"
विस्तृत विश्लेषण
उद्देश्य: अनुच्छेद 224 राष्ट्रपति को उच्च न्यायालयों में अतिरिक्त और कार्यवाहक न्यायाधीशों की नियुक्ति की शक्ति देता है ताकि कार्यभार की अस्थायी वृद्धि या रिक्तियों को संभाला जा सके। यह सुनिश्चित करता है कि उच्च न्यायालयों में न्यायिक कार्य निर्बाध रूप से चलता रहे। इसका लक्ष्य न्यायपालिका की दक्षता, न्यायिक स्वतंत्रता, और संघीय ढांचे में राज्यों के लिए प्रभावी न्याय प्रशासन को बनाए रखना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित है, जो उच्च न्यायालयों में अस्थायी न्यायाधीशों की नियुक्ति की अनुमति देता था। यह ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रणाली में न्यायिक कार्यभार प्रबंधन की परंपरा को दर्शाता है। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, यह प्रावधान कार्यभार और रिक्तियों को संबोधित करने के लिए बनाया गया, जो अनुच्छेद 127(सर्वोच्च न्यायालय के लिए) के समानांतर है। प्रासंगिकता: यह प्रावधान उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों को कम करने और प्रशासनिक दक्षता को बढ़ाने में सहायक है।
अनुच्छेद 224 के प्रमुख तत्व
खंड(1): अतिरिक्त न्यायाधीश: यदि उच्च न्यायालय में कार्यभार की अस्थायी वृद्धि या मामलों का संचय हो, तो: राष्ट्रपति, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश(CJI) और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से, अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त कर सकता है। नियुक्ति की अवधि दो वर्ष से अधिक नहीं होगी। नियुक्त व्यक्ति को अनुच्छेद 217 के तहत न्यायाधीश बनने की पात्रता होनी चाहिए। उदाहरण: 2025 में, दिल्ली उच्च न्यायालय में लंबित मामलों के लिए अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किए गए।
खंड(2): कार्यवाहक न्यायाधीश: यदि कोई स्थायी न्यायाधीश(मुख्य न्यायाधीश को छोड़कर) अनुपस्थित हो या अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में असमर्थ हो, तो: राष्ट्रपति, CJI और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से, कार्यवाहक न्यायाधीश नियुक्त कर सकता है। कार्यवाहक न्यायाधीश के पास स्थायी न्यायाधीश की सभी शक्तियाँ और कर्तव्य होंगे। उदाहरण: 2025 में, एक न्यायाधीश की बीमारी के कारण कार्यवाहक न्यायाधीश नियुक्त किया गया।
खंड(3): पात्रता: अतिरिक्त न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए व्यक्ति को संविधान के प्रारंभ से पहले लागू विधि के तहत पात्र होना चाहिए। यह अनुच्छेद 217 के तहत निर्धारित पात्रता मानदंडों को संदर्भित करता है।
महत्व: न्यायिक दक्षता: कार्यभार और रिक्तियों का प्रबंधन। न्यायपालिका की स्वतंत्रता: नियुक्तियों में CJI और मुख्य न्यायाधीश का परामर्श। लोकतांत्रिक शासन: न्याय तक त्वरित पहुँच। संघीय ढांचा: राज्यों में प्रभावी न्यायपालिका।
प्रमुख विशेषताएँ: अतिरिक्त न्यायाधीश: कार्यभार के लिए। कार्यवाहक न्यायाधीश: अनुपस्थिति के लिए। नियुक्ति: राष्ट्रपति द्वारा परामर्श के साथ। न्यायपालिका: दक्षता और स्वतंत्रता।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के बाद: कई उच्च न्यायालयों में अतिरिक्त और कार्यवाहक न्यायाधीश नियुक्त। 1990 के दशक: कार्यभार प्रबंधन के लिए नियुक्तियाँ। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में नियुक्तियों का डिजिटल रिकॉर्ड।
चुनौतियाँ और विवाद: नियुक्ति में देरी: रिक्तियों से कार्यभार पर प्रभाव। परामर्श प्रक्रिया: कार्यकारी और न्यायपालिका के बीच तनाव।न्यायिक समीक्षा: नियुक्ति की वैधता पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 217: उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति। अनुच्छेद 127: सर्वोच्च न्यायालय में अतिरिक्त न्यायाधीश। अनुच्छेद 216: उच्च न्यायालयों का गठन।
Conclusion
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