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Article 221 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-04 11:37:13
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 221

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 221
अनुच्छेद 221 भारतीय संविधान के भाग VI(राज्य) के अंतर्गत अध्याय V(राज्य में उच्च न्यायालय) में आता है। यह उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का वेतन आदि(Salaries, etc., of Judges) से संबंधित है। यह प्रावधान उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन, भत्ते, और अन्य सेवा शर्तों को निर्धारित करता है।
"(1) प्रत्येक उच्च न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश को ऐसा वेतन दिया जाएगा, जो समय-समय पर संसद द्वारा विधि द्वारा निर्धारित किया जाए, और जब तक इस प्रकार उपबंध न किया जाए, तब तक ऐसा वेतन दिया जाएगा, जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट है।
(2) प्रत्येक उच्च न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश को ऐसे भत्ते, अवकाश वेतन, और पेंशन के लिए अधिकार होंगे, जो समय-समय पर संसद द्वारा विधि द्वारा निर्धारित किए जाएँ, और जब तक इस प्रकार उपबंध न किया जाए, तब तक वे होंगे, जो इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले लागू थे:
परंतु न तो किसी न्यायाधीश का वेतन और न ही उसके भत्ते, अवकाश वेतन, या पेंशन के लिए अधिकार में, उसके नियुक्त होने के बाद कोई परिवर्तन किया जाएगा, जो उसके लिए हानिकर हो, सिवाय इसके कि वह वित्तीय आपातकाल के दौरान हो।"
विस्तृत विश्लेषण
उद्देश्य: अनुच्छेद 221 उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन, भत्ते, अवकाश वेतन, और पेंशन को निर्धारित करता है। यह सुनिश्चित करता है कि न्यायाधीशों की सेवा शर्तें संवैधानिक रूप से संरक्षित हों और उनकी नियुक्ति के बाद हानिकर परिवर्तन न किए जाएँ। इसका लक्ष्य न्यायपालिका की स्वतंत्रता, लोकतांत्रिक शासन, और संघीय ढांचे में उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की वित्तीय स्वतंत्रता और गरिमा को बनाए रखना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित है, जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन और भत्तों को नियंत्रित करता था। यह ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रणाली में न्यायाधीशों की वित्तीय स्वतंत्रता की परंपरा को दर्शाता है। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, न्यायपालिका की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के लिए यह प्रावधान बनाया गया, जो अनुच्छेद 125(सर्वोच्च न्यायालय के लिए) के समानांतर है। प्रासंगिकता: यह प्रावधान न्यायाधीशों को वित्तीय स्थिरता प्रदान करता है, जिससे उनकी निष्पक्षता बनी रहती है।
अनुच्छेद 221 के प्रमुख तत्व
खंड(1): वेतन: प्रत्येक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को वेतन दिया जाएगा, जो: संसद द्वारा कानून के माध्यम से निर्धारित किया जाएगा। यदि संसद द्वारा निर्धारित न हो, तो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट वेतन लागू होगा। उदाहरण: 2025 में, उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का वेतन संसद द्वारा संशोधित किया गया।
खंड(2): भत्ते और पेंशन: न्यायाधीशों को भत्ते, अवकाश वेतन, और पेंशन के लिए अधिकार होंगे, जो: संसद द्वारा कानून के माध्यम से निर्धारित किए जाएँ। यदि संसद द्वारा निर्धारित न हो, तो संविधान के प्रारंभ से पहले लागू शर्तें लागू होंगी। हानिकर परिवर्तन पर प्रतिबंध: नियुक्ति के बाद वेतन, भत्ते, या पेंशन में कोई हानिकर परिवर्तन नहीं किया जा सकता, सिवाय वित्तीय आपातकाल(अनुच्छेद 360) के दौरान। उदाहरण: 2025 में, एक न्यायाधीश की पेंशन में परिवर्तन को वित्तीय आपातकाल के अभाव में रोका गया।
महत्व: न्यायिक स्वतंत्रता: वित्तीय स्थिरता से निष्पक्षता सुनिश्चित। न्यायपालिका की गरिमा: वेतन और भत्तों की संवैधानिक सुरक्षा। लोकतांत्रिक शासन: न्यायिक जवाबदेही और विश्वसनीयता। संघीय ढांचा: राज्यों में स्वतंत्र न्यायपालिका।
प्रमुख विशेषताएँ: वेतन: संसद द्वारा निर्धारित। भत्ते/पेंशन: संवैधानिक सुरक्षा। प्रतिबंध: हानिकर परिवर्तन पर। न्यायपालिका: वित्तीय स्वतंत्रता।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के बाद: उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए वेतन निर्धारित। 1980 के दशक: वेतन और पेंशन में संशोधन। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में वेतन और भत्तों का डिजिटल रिकॉर्ड।
चुनौतियाँ और विवाद: वेतन में विसंगति: विभिन्न राज्यों में असमानता के आरोप। वित्तीय आपातकाल: हानिकर परिवर्तनों की संभावना।न्यायिक समीक्षा: वेतन और भत्तों की वैधता पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 125: सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का वेतन। अनुच्छेद 217: उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति। दूसरी अनुसूची: वेतन का प्रारंभिक निर्धारण।
Conclusion
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