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Article 220 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-04 11:33:25
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 220

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 220
अनुच्छेद 220 भारतीय संविधान के भाग VI(राज्य) के अंतर्गत अध्याय V(राज्य में उच्च न्यायालय) में आता है। यह न्यायाधीशों द्वारा स्थायी नियुक्ति के बाद वकालत पर प्रतिबंध(Restriction on practice after being a permanent Judge) से संबंधित है। यह प्रावधान उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीशों को सेवानिवृत्ति या त्यागपत्र के बाद भारत में किसी भी न्यायालय या प्राधिकारी के समक्ष वकालत करने से रोकता है।
"कोई व्यक्ति, जो इस संविधान के प्रारंभ के बाद उच्च न्यायालय का स्थायी न्यायाधीश रहा हो, भारत के राज्यक्षेत्र में किसी भी न्यायालय या किसी प्राधिकारी के समक्ष वकालत या अभ्यास नहीं करेगा, सिवाय सर्वोच्च न्यायालय और अन्य उच्च न्यायालयों के।"
विस्तृत विश्लेषण
उद्देश्य: अनुच्छेद 220 उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीशों को सेवानिवृत्ति या त्यागपत्र के बाद भारत में किसी भी निचले न्यायालय या प्राधिकारी के समक्ष वकालत करने से प्रतिबंधित करता है। यह सर्वोच्च न्यायालय और अन्य उच्च न्यायालयों में वकालत की अनुमति देता है। इसका लक्ष्य न्यायपालिका की निष्पक्षता, न्यायिक गरिमा, और संवैधानिक ढांचे में उच्च न्यायालयों की स्वतंत्रता और विश्वसनीयता को बनाए रखना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित है, जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों पर वकालत के प्रतिबंध को लागू करता था। यह ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रणाली में न्यायिक निष्पक्षता की परंपरा को दर्शाता है। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, यह प्रावधान न्यायाधीशों की निष्पक्षता और उनके पूर्व पद की गरिमा को बनाए रखने के लिए बनाया गया। प्रासंगिकता: यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि पूर्व न्यायाधीश अपनी स्थिति का दुरुपयोग न करें।
अनुच्छेद 220 के प्रमुख तत्व
वकालत पर प्रतिबंध: स्थायी न्यायाधीश(जो संविधान के प्रारंभ के बाद नियुक्त हुए) सेवानिवृत्ति या त्यागपत्र के बाद भारत में किसी भी निचले न्यायालय या प्राधिकारी के समक्ष वकालत नहीं कर सकते। उदाहरण: 2025 में, एक सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय न्यायाधीश को जिला न्यायालय में वकालत करने से रोका गया।
अपवाद: पूर्व न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय और अन्य उच्च न्यायालयों में वकालत कर सकते हैं। उदाहरण: एक पूर्व न्यायाधीश ने 2025 में सर्वोच्च न्यायालय में वकालत की।
स्थायी न्यायाधीश: यह प्रतिबंध केवल स्थायी न्यायाधीशों पर लागू होता है, न कि अस्थायी या अतिरिक्त न्यायाधीशों पर। उदाहरण: एक अतिरिक्त न्यायाधीश ने सेवानिवृत्ति के बाद निचले न्यायालय में वकालत की।
महत्व: न्यायिक निष्पक्षता: पूर्व न्यायाधीशों द्वारा प्रभाव के दुरुपयोग को रोकना। न्यायपालिका की गरिमा: उच्च न्यायालय के पद की प्रतिष्ठा बनाए रखना। लोकतांत्रिक शासन: न्यायिक प्रक्रिया की विश्वसनीयता। संघीय ढांचा: न्यायपालिका की स्वतंत्रता और स्वायत्तता।
प्रमुख विशेषताएँ: प्रतिबंध: निचले न्यायालयों में वकालत। अपवाद: सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय। न्यायपालिका: निष्पक्षता और गरिमा। संविधान: न्यायिक स्वायत्तता।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के बाद: उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीशों ने सर्वोच्च न्यायालय में वकालत की। 1990 के दशक: प्रतिबंध के उल्लंघन पर विवाद। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में वकालत प्रतिबंध का डिजिटल रिकॉर्ड।
चुनौतियाँ और विवाद: प्रतिबंध की सीमा: पूर्व न्यायाधीशों के अधिकारों पर सवाल।न्यायिक समीक्षा: प्रतिबंध की वैधता पर कोर्ट की जाँच। निष्पक्षता: सर्वोच्च न्यायालय में वकालत की अनुमति पर बहस।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 124(7): सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों पर वकालत प्रतिबंध। अनुच्छेद 217: उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति। अनुच्छेद 215: उच्च न्यायालय रिकॉर्ड का न्यायालय।
प्रतिबंध: स्थायी न्यायाधीशों पर। 2025 रिकॉर्ड: डिजिटल पारदर्शिता। संघीय ढांचा: मूल ढांचा। निष्पक्षता: न्यायिक गरिमा की रक्षा।
Conclusion
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