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Article 219 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-04 11:31:39
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 219

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 219
अनुच्छेद 219 भारतीय संविधान के भाग VI(राज्य) के अंतर्गत अध्याय V(राज्य में उच्च न्यायालय) में आता है। यह उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा पद ग्रहण करने से पहले शपथ या प्रतिज्ञान(Oath or affirmation by Judges of High Courts) से संबंधित है। यह प्रावधान उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा पद ग्रहण करने से पहले शपथ लेने की प्रक्रिया को निर्धारित करता है।
"प्रत्येक व्यक्ति, जो उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया जाता है, अपने कर्तव्यों का निर्वहन प्रारंभ करने से पहले, उस राज्य के राज्यपाल के समक्ष, या उसके द्वारा इस प्रयोजन के लिए नियुक्त किसी व्यक्ति के समक्ष, तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए निर्धारित प्ररूप में शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा।"
विस्तृत विश्लेषण
उद्देश्य: अनुच्छेद 219 यह सुनिश्चित करता है कि उच्च न्यायालय का प्रत्येक न्यायाधीश अपने कर्तव्यों का निर्वहन शुरू करने से पहले शपथ या प्रतिज्ञान ले, जो उनकी निष्पक्षता और संवैधानिक कर्तव्यों के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यह प्रावधान न्यायपालिका की गरिमा, निष्पक्षता, और स्वतंत्रता को बनाए रखता है। इसका लक्ष्य न्यायपालिका की स्वतंत्रता, लोकतांत्रिक शासन, और संघीय ढांचे में उच्च न्यायालयों की जवाबदेही और विश्वसनीयता को सुनिश्चित करना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित है, जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए शपथ की आवश्यकता को निर्धारित करता था। यह ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रणाली में न्यायिक शपथ की परंपरा को दर्शाता है। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, न्यायपालिका की निष्पक्षता और संवैधानिक कर्तव्यों के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए यह प्रावधान बनाया गया, जो अनुच्छेद 124(6)(सर्वोच्च न्यायालय के लिए) के समानांतर है। प्रासंगिकता: यह प्रावधान न्यायाधीशों की संवैधानिक जवाबदेही और निष्पक्षता को मजबूत करता है।
अनुच्छेद 219 के प्रमुख तत्व
शपथ या प्रतिज्ञान: प्रत्येक उच्च न्यायालय का न्यायाधीश अपने कर्तव्यों का निर्वहन शुरू करने से पहले शपथ या प्रतिज्ञान लेगा। शपथ का प्ररूप तीसरी अनुसूची में निर्धारित है। उदाहरण: 2025 में, एक नव नियुक्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने राज्यपाल के समक्ष शपथ ली।
शपथ लेने की प्रक्रिया: शपथ राज्यपाल के समक्ष या उनके द्वारा नियुक्त किसी व्यक्ति के समक्ष ली जाएगी। उदाहरण: राज्यपाल ने मुख्य न्यायाधीश को शपथ दिलाने के लिए प्राधिकृत व्यक्ति नियुक्त किया।
तीसरी अनुसूची: तीसरी अनुसूची में शपथ का प्ररूप शामिल है, जिसमें न्यायाधीश संविधान और कानून के प्रति निष्ठा और निष्पक्षता की शपथ लेता है। उदाहरण: शपथ में संविधान की रक्षा और निष्पक्ष न्याय का वचन।
महत्व: न्यायिक निष्पक्षता: शपथ के माध्यम से संवैधानिक कर्तव्यों की प्रतिबद्धता। न्यायपालिका की स्वतंत्रता: निष्पक्ष और स्वतंत्र न्याय सुनिश्चित। लोकतांत्रिक शासन: न्यायिक जवाबदेही। संघीय ढांचा: राज्यों में स्वतंत्र और विश्वसनीय न्यायपालिका।
प्रमुख विशेषताएँ: शपथ: संवैधानिक निष्ठा। राज्यपाल: शपथ दिलाने की प्रक्रिया। तीसरी अनुसूची: शपथ का प्ररूप। न्यायपालिका: निष्पक्षता और स्वतंत्रता।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के बाद: सभी उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों ने शपथ ली। 1990 के दशक: शपथ प्रक्रिया में औपचारिकता पर जोर। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में शपथ समारोह का डिजिटल रिकॉर्ड।
चुनौतियाँ और विवाद: शपथ का उल्लंघन: न्यायाधीशों की निष्पक्षता पर सवाल। प्रक्रियात्मक अनियमितता: शपथ प्रक्रिया में त्रुटियों के आरोप।न्यायिक समीक्षा: शपथ की वैधता पर कोर्ट की जाँच(दुर्लभ)।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 124(6): सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की शपथ। अनुच्छेद 217: उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति। तीसरी अनुसूची: शपथ का प्ररूप।
Conclusion
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