Article 217 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-04 11:27:27
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 217
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 217
अनुच्छेद 217 भारतीय संविधान के भाग VI(राज्य) के अंतर्गत अध्याय V(राज्य में उच्च न्यायालय) में आता है। यह उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति और उनकी सेवा की शर्तें(Appointment and conditions of the office of a Judge of a High Court) से संबंधित है। यह प्रावधान उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया, योग्यता, कार्यकाल, और अन्य शर्तों को परिभाषित करता है।
"(1) प्रत्येक उच्च न्यायालय का प्रत्येक न्यायाधीश राष्ट्रपति द्वारा, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और उस उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से नियुक्त किया जाएगा, और मुख्य न्यायाधीश के मामले में, उस उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों में से एक के परामर्श से:
परंतु यह कि जहाँ नियुक्ति किसी अन्य उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश या किसी अन्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की हो, वहाँ उस उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से भी होगी।
(2) कोई व्यक्ति उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने का पात्र नहीं होगा, जब तक कि वह भारत का नागरिक न हो और:
(क) कम से कम दस वर्ष तक भारत के राज्यक्षेत्र में किसी न्यायिक पद पर रहा हो; या
(ख) कम से कम दस वर्ष तक उच्च न्यायालय में या एक से अधिक उच्च न्यायालयों में लगातार अधिवक्ता रहा हो।
(3) यदि किसी व्यक्ति की उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए पात्रता के बारे में कोई प्रश्न उठता है, तो वह प्रश्न राष्ट्रपति द्वारा तय किया जाएगा, और वह ऐसा निर्णय सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से करेगा।
(4) प्रत्येक उच्च न्यायालय का न्यायाधीश:
(क) तब तक अपने पद पर बना रहेगा, जब तक वह 62 वर्ष की आयु प्राप्त न कर ले, या जब तक वह राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर से त्यागपत्र न दे दे, या जब तक उसे इस संविधान के अधीन हटाया न जाए;
(ख) तब तक अपने कर्तव्यों का निर्वहन करेगा, जब तक वह अपने उत्तराधिकारी द्वारा प्रतिस्थापित न हो जाए, सिवाय इसके कि वह पहले ही त्यागपत्र दे दे या हटा दिया जाए।"
विस्तृत विश्लेषण
उद्देश्य: अनुच्छेद 217 उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया, उनकी योग्यता, कार्यकाल, और सेवा की शर्तों को परिभाषित करता है। यह सुनिश्चित करता है कि नियुक्तियाँ निष्पक्ष और योग्यता पर आधारित हों, साथ ही न्यायपालिका की स्वतंत्रता बनी रहे। इसका लक्ष्य न्यायपालिका की स्वतंत्रता, लोकतांत्रिक शासन, और संघीय ढांचे में उच्च न्यायालयों की कार्यकुशलता और स्वायत्तता को सुनिश्चित करना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित है, जो उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति को नियंत्रित करता था। यह ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रणाली में न्यायिक नियुक्तियों की परंपरा को दर्शाता है। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, न्यायपालिका की स्वतंत्रता और योग्यता-आधारित नियुक्तियों के लिए यह प्रावधान बनाया गया, जो अनुच्छेद 124(सर्वोच्च न्यायालय के लिए) के समानांतर है।
प्रासंगिकता: यह प्रावधान उच्च न्यायालयों में योग्य और स्वतंत्र न्यायाधीशों की नियुक्ति सुनिश्चित करता है।
अनुच्छेद 217 के प्रमुख तत्व
खंड(1): नियुक्ति प्रक्रिया: न्यायाधीशों की नियुक्ति: राष्ट्रपति द्वारा, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से। मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए, उच्च न्यायालय के किसी अन्य न्यायाधीश के परामर्श से। यदि कोई अन्य उच्च न्यायालय का न्यायाधीश या मुख्य न्यायाधीश नियुक्त हो, तो उस उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का भी परामर्श लिया जाएगा। उदाहरण: 2025 में, दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति CJI और मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से।
खंड(2): पात्रता: उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनने के लिए: भारत का नागरिक होना चाहिए। 10 वर्ष तक: भारत में न्यायिक पद पर कार्यरत रहा हो; या उच्च न्यायालय में अधिवक्ता रहा हो। उदाहरण: एक वरिष्ठ अधिवक्ता को 10 वर्ष के अनुभव के आधार पर नियुक्त किया गया।
खंड(3): पात्रता पर विवाद: यदि पात्रता पर कोई प्रश्न उठता है, तो राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से निर्णय लेगा। उदाहरण: 2025 में, एक नियुक्ति पर विवाद को CJI के परामर्श से सुलझाया गया।
खंड(4): कार्यकाल और हटाना: न्यायाधीश तब तक पद पर रहता है, जब तक: वह 62 वर्ष की आयु प्राप्त न कर ले। वह राष्ट्रपति को त्यागपत्र न दे दे। उसे महाभियोग(अनुच्छेद 124(4) के तहत) द्वारा हटाया न जाए। न्यायाधीश अपने उत्तराधिकारी के आने तक कर्तव्यों का निर्वहन करता है। उदाहरण: 2025 में, एक न्यायाधीश ने 62 वर्ष की आयु पर सेवानिवृत्ति ली।
महत्व: न्यायिक स्वतंत्रता: परामर्श प्रक्रिया से स्वतंत्र नियुक्तियाँ। योग्यता: अनुभवी न्यायाधीशों की नियुक्ति। लोकतांत्रिक शासन: प्रभावी न्यायिक प्रशासन। संघीय ढांचा: राज्यों में स्वतंत्र न्यायपालिका।
प्रमुख विशेषताएँ: नियुक्ति: राष्ट्रपति द्वारा परामर्श के साथ। पात्रता: 10 वर्ष का अनुभव। कार्यकाल: 62 वर्ष तक। स्वतंत्रता: महाभियोग द्वारा हटाना।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के बाद: उच्च न्यायालयों में नियमित नियुक्तियाँ। 1980 के दशक: नियुक्तियों में कार्यकारी हस्तक्षेप पर विवाद। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में नियुक्ति प्रक्रिया का डिजिटल रिकॉर्ड।
चुनौतियाँ और विवाद: रिक्तियों से कार्यभार पर प्रभाव। परामर्श प्रक्रिया: कार्यकारी और न्यायपालिका के बीच तनाव।न्यायिक समीक्षा: नियुक्ति प्रक्रिया की वैधता पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 214: उच्च न्यायालयों की स्थापना। अनुच्छेद 216: उच्च न्यायालयों का गठन। अनुच्छेद 124: सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति।
Conclusion
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