Recent Blogs

Article 212 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-04 11:15:55
searchkre.com@gmail.com / 8392828781

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 212

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 212
अनुच्छेद 212 भारतीय संविधान के भाग VI(राज्य) के अंतर्गत अध्याय III(राज्य का विधानमंडल) में आता है। यह विधानमंडल की कार्यवाही की वैधता पर न्यायालयों द्वारा प्रश्न नहीं उठाए जाने(Courts not to inquire into proceedings of the Legislature) से संबंधित है। यह प्रावधान राज्य विधानमंडल की कार्यवाही की वैधता पर न्यायालयों के हस्तक्षेप को प्रतिबंधित करता है।
"(1) किसी राज्य के विधानमंडल की कार्यवाही की वैधता पर, यह तर्क देकर कि कार्यवाही नियमित रूप से नहीं की गई, किसी न्यायालय में प्रश्न नहीं उठाया जाएगा।
(2) कोई भी अधिकारी या सदस्य, जिसके पास इस संविधान के अधीन विधानमंडल की कार्यवाही को विनियमित करने की शक्ति निहित है, इस संविधान के अधीन अपने कर्तव्यों के निर्वहन में किसी न्यायालय के समक्ष उत्तरदायी नहीं होगा।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 212 राज्य विधानमंडल की कार्यवाही की वैधता को न्यायिक समीक्षा से बचाता है, विशेष रूप से प्रक्रियात्मक अनियमितताओं के आधार पर। यह विधानमंडल की स्वायत्तता और शक्ति पृथक्करण के सिद्धांत को मजबूत करता है। इसका लक्ष्य लोकतांत्रिक शासन, संवैधानिक जवाबदेही, और संघीय ढांचे में विधायी स्वतंत्रता को सुनिश्चित करना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित है, जो प्रांतीय विधानमंडलों की कार्यवाही को न्यायिक हस्तक्षेप से बचाता था। यह ब्रिटिश संसदीय प्रणाली में संसदीय संप्रभुता की परंपरा को दर्शाता है। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, विधायिका और न्यायपालिका के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए यह प्रावधान बनाया गया, जो केंद्र में अनुच्छेद 122(संसद के लिए) के समानांतर है। प्रासंगिकता: यह प्रावधान विधानमंडल को स्वतंत्र रूप से कार्य करने की अनुमति देता है।
अनुच्छेद 212 के प्रमुख तत्व
खंड(1): कार्यवाही की वैधता पर प्रतिबंध: विधानमंडल की कार्यवाही की वैधता पर न्यायालय में प्रश्न नहीं उठाया जा सकता, यदि आधार केवल प्रक्रियात्मक अनियमितता हो। उदाहरण: 2025 में, एक विधानसभा की प्रक्रिया पर कोर्ट में चुनौती खारिज, क्योंकि यह अनुच्छेद 212 के अधीन थी।
खंड(2): अधिकारियों की उन्मुक्ति: विधानमंडल की कार्यवाही को विनियमित करने वाले अधिकारी(जैसे, अध्यक्ष, सभापति) या सदस्य अपने संवैधानिक कर्तव्यों के निर्वहन में न्यायालय के प्रति उत्तरदायी नहीं होंगे। उदाहरण: विधानसभा अध्यक्ष के निर्णय को कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकी।
महत्व: विधायी स्वायत्तता: विधानमंडल की कार्यवाही में स्वतंत्रता। शक्ति पृथक्करण: न्यायपालिका का हस्तक्षेप सीमित। लोकतांत्रिक शासन: विधानमंडल की संप्रभुता। संवैधानिक जवाबदेही: प्रक्रियात्मक स्वतंत्रता।
प्रमुख विशेषताएँ: प्रतिबंध: प्रक्रियात्मक अनियमितता पर समीक्षा। उन्मुक्ति: अधिकारियों और सदस्यों की। न्यायपालिका: सीमित हस्तक्षेप। संविधान: शक्ति पृथक्करण।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के बाद: विधानमंडल की कार्यवाही पर कोर्ट की समीक्षा सीमित। 2007: राजा राम पाल बनाम लोकसभा अध्यक्ष मामले में कार्यवाही की स्वायत्तता की पुष्टि। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में कार्यवाही का डिजिटल रिकॉर्ड, पर न्यायिक समीक्षा पर प्रतिबंध।
चुनौतियाँ और विवाद: प्रक्रियात्मक अनियमितता: संवैधानिक उल्लंघन और अनियमितता में अंतर पर बहस। न्यायिक हस्तक्षेप: गंभीर संवैधानिक उल्लंघन पर समीक्षा की माँग।न्यायिक समीक्षा: अनुच्छेद 212 की सीमा पर कोर्ट की व्याख्या।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 122: संसद की कार्यवाही पर समीक्षा प्रतिबंध। अनुच्छेद 194: विधानमंडल के विशेषा
Conclusion
Thanks For Read
jp Singh searchkre.com@gmail.com 8392828781

Our Services

Scholarship Information

Add Blogging

Course Category

Add Blogs

Coaching Information

Add Blogging

Add Blogging

Add Blogging

Our Course

Add Blogging

Add Blogging

Hindi Preparation

English Preparation

SearchKre Course

SearchKre Services

SearchKre Course

SearchKre Scholarship

SearchKre Coaching

Loan Offer

JP GROUP

Head Office :- A/21 karol bag New Dellhi India 110011
Branch Office :- 1488, adrash nagar, hapur, Uttar Pradesh, India 245101
Contact With Our Seller & Buyer