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Article 211 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-04 11:13:20
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 211

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 211
अनुच्छेद 211 भारतीय संविधान के भाग VI(राज्य) के अंतर्गत अध्याय III(राज्य का विधानमंडल) में आता है। यह न्यायालयों के संबंध में चर्चा पर प्रतिबंध(Restriction on discussion in the Legislature) से संबंधित है। यह प्रावधान राज्य विधानमंडल में सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के आचरण पर चर्चा को प्रतिबंधित करता है।
"किसी राज्य के विधानमंडल के किसी सदन में सर्वोच्च न्यायालय या किसी उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश के अपने कर्तव्यों के निर्वहन में आचरण के संबंध में कोई चर्चा नहीं होगी, सिवाय इसके कि वह इस संविधान के अधीन उस न्यायाधीश को हटाने के लिए प्रस्ताव पर हो।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 211 न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए राज्य विधानमंडल में सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के आचरण पर चर्चा को प्रतिबंधित करता है। यह केवल तभी चर्चा की अनुमति देता है जब वह न्यायाधीश को हटाने के लिए संवैधानिक प्रक्रिया(महाभियोग) के तहत हो। इसका लक्ष्य न्यायपालिका की स्वतंत्रता, लोकतांत्रिक शासन, और संवैधानिक संतुलन को सुनिश्चित करना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित है, जो न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा करता था। यह ब्रिटिश संसदीय प्रणाली में न्यायपालिका की स्वायत्तता की परंपरा को दर्शाता है। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, न्यायपालिका और विधायिका के बीच शक्ति पृथक्करण को मजबूत करने के लिए यह प्रावधान बनाया गया, जो केंद्र में अनुच्छेद 121(संसद के लिए) के समानांतर है। प्रासंगिकता: यह प्रावधान न्यायपालिका को विधायी हस्तक्षेप से बचाता है।
अनुच्छेद 211 के प्रमुख तत्व
यायाधीशों के आचरण पर प्रतिबंध: राज्य विधानमंडल(विधानसभा या विधान परिषद) में सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के आचरण पर चर्चा निषिद्ध है। अपवाद: चर्चा केवल तब हो सकती है जब वह महाभियोग प्रस्ताव(अनुच्छेद 124(4) या 217(1)(ख) के तहत) से संबंधित हो। उदाहरण: 2025 में, किसी न्यायाधीश के आचरण पर सामान्य चर्चा को विधानसभा में रोका गया।
महाभियोग प्रक्रिया: न्यायाधीश को हटाने के लिए चर्चा केवल संवैधानिक प्रक्रिया के तहत अनुमत है, जिसमें संसद की मंजूरी और राष्ट्रपति का आदेश शामिल है। उदाहरण: महाभियोग प्रस्ताव पर संसद में चर्चा, न कि राज्य विधानमंडल में।
महत्व: न्यायपालिका की स्वतंत्रता: न्यायाधीशों को विधायी दबाव से सुरक्षा। शक्ति पृथक्करण: विधायिका और न्यायपालिका के बीच संतुलन। लोकतांत्रिक शासन: संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता। संवैधानिक जवाबदेही: केवल महाभियोग के माध्यम से जवाबदेही।
प्रमुख विशेषताएँ: प्रतिबंध: न्यायाधीशों के आचरण पर चर्चा। अपवाद: महाभियोग प्रस्ताव। न्यायपालिका: स्वतंत्रता की रक्षा। संविधान: प्रक्रिया का अनुपालन।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के बाद: न्यायाधीशों के आचरण पर चर्चा को रोका गया। 1993: जस्टिस वी. रामास्वामी के महाभियोग पर संसद में चर्चा, न कि राज्य विधानमंडल में। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में विधानमंडल की कार्यवाही में इस प्रतिबंध का सख्त पालन।
चुनौतियाँ और विवाद: प्रतिबंध का दुरुपयोग: विधायी चर्चा को सीमित करने के आरोप। महाभियोग की दुर्लभता: प्रक्रिया की जटिलता पर सवाल।न्यायिक समीक्षा: प्रतिबंध की वैधता पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 121: संसद में न्यायाधीशों पर चर्चा का प्रतिबंध। अनुच्छेद 124: सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का हटाना। अनुच्छेद 217: उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का हटाना।
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