Article 207 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-04 11:05:25
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 207
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 207
अनुच्छेद 207 भारतीय संविधान के भाग VI(राज्य) के अंतर्गत अध्याय IV(राज्य की कार्यपालिका) में आता है। यह विशेष उपबंध, जो धन विधेयकों और अन्य वित्तीय विधेयकों से संबंधित हैं(Special provisions as to financial Bills) से संबंधित है। यह प्रावधान धन विधेयकों और अन्य वित्तीय विधेयकों को प्रस्तुत करने और पारित करने की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है।
"(1) कोई विधेयक, जो अनुच्छेद 199 में परिभाषित धन विधेयक नहीं है, लेकिन जिसमें कराधान, उधार लेना, प्रत्याभूति देना, किसी वित्तीय दायित्व का वहन करना, या किसी राज्य की संचित निधि पर कोई व्यय भारित करना शामिल है, केवल तभी विधानमंडल के किसी सदन में प्रस्तुत किया जाएगा जब उस राज्य के राज्यपाल की सिफारिश प्राप्त हो।
(2) कोई विधेयक, जो किसी कर को अधिरोपित करता हो, या उसमें संशोधन करता हो, या जो किसी राज्य की संचित निधि पर कोई व्यय भारित करता हो, या जो किसी वित्तीय दायित्व को वहन करने के लिए उपबंध करता हो, उसमें कोई संशोधन इस प्रकार प्रस्तावित नहीं किया जाएगा कि वह उस कर को कम कर दे या समाप्त कर दे, या उस व्यय को बढ़ा दे, सिवाय इसके कि वह विधानसभा में प्रस्तावित किया जाए।
(3) इस अनुच्छेद के अधीन प्रस्तुत कोई विधेयक, यदि वह धन विधेयक नहीं है, तो उसे उस राज्य की विधान परिषद, यदि कोई हो, में प्रस्तुत नहीं किया जाएगा, जब तक कि वह पहले विधानसभा में प्रस्तुत न किया गया हो।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 207 धन विधेयकों और अन्य वित्तीय विधेयकों(जो धन विधेयक नहीं हैं, लेकिन वित्तीय मामलों से संबंधित हैं) की प्रस्तुति और संशोधन की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है। यह सुनिश्चित करता है कि वित्तीय विधेयकों पर राज्यपाल की सिफारिश और विधानसभा की प्रभुता बनी रहे। इसका लक्ष्य लोकतांत्रिक शासन, संवैधानिक जवाबदेही, और संघीय ढांचे में वित्तीय प्रक्रिया की पारदर्शिता और व्यवस्था को बनाए रखना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित है, जो प्रांतीय विधानमंडलों में वित्तीय विधेयकों की प्रक्रिया को नियंत्रित करता था। यह ब्रिटिश संसदीय प्रणाली में हाउस ऑफ कॉमन्स की वित्तीय प्रभुता को दर्शाता है। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, वित्तीय विधेयकों में विधानसभा की प्राथमिकता सुनिश्चित करने के लिए यह प्रावधान बनाया गया, जो केंद्र में अनुच्छेद 117(संसद के लिए) के समानांतर है। प्रासंगिकता: यह प्रावधान वित्तीय विधेयकों की प्रस्तुति और संशोधन में अनुशासन और विधानसभा की प्रभुता सुनिश्चित करता है।
अनुच्छेद 207 के प्रमुख तत्व: खंड(1): राज्यपाल की सिफारिश: कोई विधेयक, जो धन विधेयक नहीं है, लेकिन जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं, केवल राज्यपाल की सिफारिश के बाद ही प्रस्तुत किया जा सकता है: कराधान। उधार लेना। प्रत्याभूति देना। वित्तीय दायित्व का वहन। संचित निधि पर व्यय का भार। उदाहरण: 2025 में, एक कर संशोधन विधेयक राज्यपाल की सिफारिश के बाद प्रस्तुत।
खंड(2): संशोधन पर प्रतिबंध: वित्तीय विधेयकों में संशोधन जो निम्नलिखित प्रभाव डालते हों, केवल विधानसभा में प्रस्तावित किए जा सकते हैं: कर को कम करना या समाप्त करना। संचित निधि पर व्यय बढ़ाना। यह विधान परिषद को इन मामलों में हस्तक्षेप से रोकता है। उदाहरण: विधान परिषद द्वारा कर कम करने का संशोधन अस्वीकार।
खंड(3): विधानसभा की प्राथमिकता: वित्तीय विधेयक(धन विधेयक को छोड़कर) को विधान परिषद में प्रस्तुत करने से पहले विधानसभा में प्रस्तुत करना अनिवार्य है। उदाहरण: 2025 में, एक वित्तीय विधेयक पहले विधानसभा में प्रस्तुत।
महत्व: वित्तीय प्रभुता: विधानसभा की वित्तीय मामलों में प्राथमिकता। लोकतांत्रिक जवाबदेही: निर्वाचित विधानसभा का नियंत्रण। संघीय ढांचा: राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता। पारदर्शिता: वित्तीय विधेयकों में राज्यपाल की सिफारिश।
प्रमुख विशेषताएँ: राज्यपाल: सिफारिश अनिवार्य। विधानसभा: संशोधन और प्रस्तुति में प्राथमिकता। विधान परिषद: सीमित भूमिका। वित्तीय विधेयक: विशिष्ट प्रक्रिया।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के बाद: वित्तीय विधेयकों पर राज्यपाल की सिफारिश लागू। 1990 के दशक: संशोधन पर विधान परिषद की भूमिका पर विवाद। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में वित्तीय विधेयक प्रक्रिया का डिजिटल रिकॉर्ड।
चुनौतियाँ और विवाद: राज्यपाल की सिफारिश: देरी या पक्षपात के आरोप। विधान परिषद की भूमिका: सीमित शक्ति पर सवाल।न्यायिक समीक्षा: वित्तीय विधेयक प्रक्रिया की वैधता पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 199: धन विधेयक की परिभाषा। अनुच्छेद 203: अनुदान की माँगें। अनुच्छेद 204: विनियोग विधेयक। अनुच्छेद 117: संसद के लिए वित्तीय विधेयक।
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jp Singh
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