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Article 203 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-04 10:57:22
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 203

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 203
अनुच्छेद 203 भारतीय संविधान के भाग VI(राज्य) के अंतर्गत अध्याय IV(राज्य की कार्यपालिका) में आता है। यह अनुदान की मांगों और व्यय की प्रक्रिया(Procedure in Legislature with respect to estimates) से संबंधित है। यह प्रावधान राज्य विधानमंडल में वार्षिक वित्तीय विवरण(बजट) के तहत अनुदान की मांगों और व्यय की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है।
"(1) अनुच्छेद 202 के खंड(2) के खंड(क) में निर्दिष्ट व्यय, जो किसी राज्य की संचित निधि पर भारित हैं, विधानमंडल के किसी सदन में विचार के लिए प्रस्तुत किए जाएंगे, लेकिन मतदान के अधीन नहीं होंगे।
(2) अनुच्छेद 202 के खंड(2) के खंड(ख) में निर्दिष्ट व्यय उस राज्य की विधानसभा में विचार और मतदान के लिए प्रस्तुत किए जाएंगे।
(3) इस संविधान के अधीन, विधानसभा को निम्नलिखित शक्तियाँ होंगी:
(क) अनुच्छेद 202 के खंड(2) के खंड(ख) में निर्दिष्ट किसी व्यय के लिए अनुदान की माँग को स्वीकार करने या अस्वीकार करने की शक्ति;
(ख) अनुच्छेद 202 के खंड(2) के खंड(ख) में निर्दिष्ट किसी व्यय के लिए अनुदान की माँग को कम करने की शक्ति।
(4) यदि कोई विधान परिषद हो, तो वह उन अनुदान की माँगों पर विचार कर सकती है जो उसे विधानसभा द्वारा प्रेषित की गई हों, और अपनी सिफारिशें विधानसभा को भेज सकती है, लेकिन ऐसी सिफारिशें विधानसभा को बाध्य नहीं करेंगी।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 203 वार्षिक वित्तीय विवरण(बजट) के तहत व्यय और अनुदान की मांगों की प्रक्रिया को परिभाषित करता है। यह विधानसभा को वित्तीय मामलों में प्रभुता प्रदान करता है, जबकि विधान परिषद को केवल सलाहकार भूमिका देता है। इसका लक्ष्य लोकतांत्रिक शासन, संवैधानिक जवाबदेही, और संघीय ढांचे में राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता और पारदर्शिता को सुनिश्चित करना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित है, जो प्रांतीय विधानमंडलों में बजट और अनुदान की प्रक्रिया को नियंत्रित करता था।
यह ब्रिटिश संसदीय प्रणाली में हाउस ऑफ कॉमन्स की वित्तीय प्रभुता को दर्शाता है। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, राज्यों में वित्तीय प्रक्रिया को व्यवस्थित करने के लिए यह प्रावधान बनाया गया, जो केंद्र में अनुच्छेद 113(संसद के लिए) के समानांतर है। प्रासंगिकता: यह प्रावधान वित्तीय नियोजन में विधानसभा की प्रभुता और जवाबदेही सुनिश्चित करता है।
अनुच्छेद 203 के प्रमुख तत्व
खंड(1): संचित निधि पर भारित व्यय: अनुच्छेद 202(2)(क) के तहत संचित निधि पर भारित व्यय(जैसे, राज्यपाल का वेतन, उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की पेंशन) विधानमंडल में विचार के लिए प्रस्तुत होंगे, लेकिन मतदान के अधीन नहीं होंगे। उदाहरण: 2025 में, उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन पर चर्चा हुई, लेकिन मतदान नहीं हुआ।
खंड(2): मतदेय व्यय: अनुच्छेद 202(2)(ख) के तहत अन्य व्यय विधानसभा में विचार और मतदान के लिए प्रस्तुत होंगे। उदाहरण: शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए अनुदान की मांगों पर मतदान।
खंड(3): विधानसभा की शक्तियाँ: विधानसभा को निम्नलिखित शक्तियाँ होंगी: (क) अनुदान की मांग को स्वीकार या अस्वीकार करना। (ख) अनुदान की मांग को कम करना। उदाहरण: 2025 में, विधानसभा ने एक विभाग के अनुदान को कम किया।
खंड(4): विधान परिषद की भूमिका: यदि विधान परिषद हो, तो वह अनुदान की मांगों पर सिफारिशें दे सकती है, लेकिन ये सिफारिशें विधानसभा को बाध्य नहीं करेंगी। उदाहरण: विधान परिषद ने सिफारिशें दीं, लेकिन विधानसभा ने उन्हें अस्वीकार किया।
महत्व: वित्तीय प्रभुता: विधानसभा की अनुदान पर नियंत्रण। लोकतांत्रिक जवाबदेही: निर्वाचित विधानसभा की प्राथमिकता। संघीय ढांचा: राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता। पारदर्शिता: व्यय और अनुदान की प्रक्रिया में स्पष्टता।
प्रमुख विशेषताएँ: संचित निधि: गैर-मतदेय व्यय। विधानसभा: अनुदान पर पूर्ण नियंत्रण। विधान परिषद: सलाहकार भूमिका। अनुदान: स्वीकार, अस्वीकार, या संशोधन।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के बाद: अनुदान की मांगों पर विधानसभाओं ने नियंत्रण लागू किया। 1990 के दशक: अनुदान अस्वीकृति पर विवाद। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में अनुदान प्रक्रिया का डिजिटल रिकॉर्ड।
चुनौतियाँ और विवाद: अनुदान पर असहमति: राजनीतिक दलों के बीच टकराव। विधान परिषद की भूमिका: सलाहकार भूमिका पर सवाल।न्यायिक समीक्षा: अनुदान प्रक्रिया की वैधता पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 202: वार्षिक वित्तीय विवरण। अनुच्छेद 204: विनियोग विधेयक। अनुच्छेद 113: संसद के लिए अनुदान।
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