Article 200 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-04 10:46:29
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 200
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 200
अनुच्छेद 200 भारतीय संविधान के भाग VI(राज्य) के अंतर्गत अध्याय III(राज्य का विधानमंडल) में आता है। यह विधेयकों पर राज्यपाल की सहमति(Assent to Bills) से संबंधित है। यह प्रावधान राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों पर राज्यपाल के कार्यों और अधिकारों को परिभाषित करता है।
"जब कोई विधेयक, जो किसी राज्य के विधानमंडल द्वारा पारित किया गया हो, राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है, तब वह
(क) उस विधेयक को अपनी सहमति दे देगा; या
(ख) यदि वह धन विधेयक न हो, तो वह अपनी सहमति रोक सकता है; या
(ग) वह उस विधेयक को, यदि वह धन विधेयक न हो, राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित कर सकता है;
परंतु यह कि यदि वह विधेयक धन विधेयक है, तो वह उसे राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित नहीं करेगा, सिवाय इसके कि वह अनुच्छेद 360 के अधीन वित्तीय आपातकाल के दौरान ऐसा करे।
जब कोई विधेयक इस प्रकार राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित किया जाता है, तब राष्ट्रपति या तो उस विधेयक को अपनी सहमति दे देगा या अपनी सहमति रोक सकता है:
परंतु यह कि यदि वह अपनी सहमति रोकता है, तो वह विधेयक को संशोधनों सहित या बिना संशोधनों के उस विधानमंडल को, जिसके द्वारा वह पारित किया गया था, वापस कर सकता है, और जब वह विधेयक उस विधानमंडल द्वारा फिर से पारित कर दिया जाता है, संशोधनों सहित या बिना संशोधनों के, और राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है, तो वह उस विधेयक पर अपनी सहमति नहीं रोकेगा।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 200 राज्यपाल को विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों पर निर्णय लेने का अधिकार देता है, जिसमें सहमति देना, सहमति रोकना, या विधेयक को राष्ट्रपति के पास आरक्षित करना शामिल है। यह सुनिश्चित करता है कि विधायी प्रक्रिया में संवैधानिक संतुलन बना रहे। इसका लक्ष्य लोकतांत्रिक शासन, संवैधानिक जवाबदेही, और संघीय ढांचे में केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय को बनाए रखना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित है, जो प्रांतीय गवर्नरों को विधेयकों पर सहमति का अधिकार देता था। यह ब्रिटिश संसदीय प्रणाली में राजा की सहमति की परंपरा को दर्शाता है। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, विधानमंडल और कार्यपालिका के बीच संतुलन सुनिश्चित करने के लिए यह प्रावधान बनाया गया, जो केंद्र में अनुच्छेद 111(संसद के लिए) के समानांतर है। प्रासंगिकता: यह प्रावधान राज्यपाल को विधायी प्रक्रिया में संवैधानिक संरक्षक की भूमिका देता है।
अनुच्छेद 200 के प्रमुख तत्व
राज्यपाल के विकल्प: जब कोई विधेयक विधानमंडल द्वारा पारित होकर राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है, तो वह
(क) विधेयक को सहमति दे सकता है।
(ख) यदि विधेयक धन विधेयक नहीं है, तो सहमति रोक सकता है।
(ग) यदि विधेयक धन विधेयक नहीं है, तो उसे राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित कर सकता है।
अपवाद: धन विधेयक को राष्ट्रपति के लिए आरक्षित नहीं किया जा सकता, सिवाय वित्तीय आपातकाल(अनुच्छेद 360) के दौरान। उदाहरण: 2025 में, एक राज्यपाल ने गैर-धन विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजा।
राष्ट्रपति की भूमिका: यदि विधेयक राष्ट्रपति को आरक्षित किया जाता है, तो वह: सहमति दे सकता है। सहमति रोक सकता है। विधेयक को संशोधनों सहित या बिना संशोधनों के विधानमंडल को वापस कर सकता है। यदि विधानमंडल विधेयक को दोबारा पारित करता है, तो राज्यपाल को सहमति देनी होगी। उदाहरण: राष्ट्रपति ने विधेयक वापस किया, और विधानमंडल ने इसे दोबारा पारित कर राज्यपाल की सहमति प्राप्त की।
महत्व: संवैधानिक संतुलन: विधानमंडल और कार्यपालिका के बीच संतुलन। संघीय ढांचा: केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय। लोकतांत्रिक जवाबदेही: विधानमंडल की इच्छा की प्राथमिकता। पारदर्शिता: विधेयक पर निर्णय प्रक्रिया में स्पष्टता।
प्रमुख विशेषताएँ: राज्यपाल: सहमति, रोक, या आरक्षण। राष्ट्रपति: अंतिम विचार। धन विधेयक: सीमित आरक्षण। दोबारा पारित: अनिवार्य सहमति।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के बाद: कई विधेयकों पर राज्यपालों ने सहमति रोकी। 2010 के दशक: राष्ट्रपति को आरक्षित विधेयकों पर विवाद। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में विधेयक सहमति प्रक्रिया का डिजिटल रिकॉर्ड।
चुनौतियाँ और विवाद: राज्यपाल का विवेक: सहमति रोकने या आरक्षित करने पर पक्षपात के आरोप। राष्ट्रपति का हस्तक्षेप: केंद्र-राज्य संबंधों पर तनाव। न्यायिक समीक्षा: राज्यपाल के निर्णय की वैधता पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 198: धन विधेयकों की प्रक्रिया। अनुच्छेद 199: धन विधेयक की परिभाषा। अनुच्छेद 111: संसद के लिए सहमति।
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jp Singh
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